New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 31 अक्टूबर, 2021 01:03 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) यानी पीके की कंपनी आईपैक (I-PAC) इस समय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है. तृणमूल कांग्रेस को 2026 तक अपनी कंपनी की सेवाएं देने के लिए करार कर चुके प्रशांत किशोर इन दिनों गोवा में पार्टी के लिए संभावनाएं खोजते हुए नजर आ रहे हैं. कई पार्टियों के लिए सफल चुनावी प्रबंधन कर चुके प्रशांत किशोर अपनी राजनीतिक भविष्यवाणियों के लिए मशहूर हैं. और, प्रशांत किशोर इस बार अपनी एक नई 'राजनीतिक भविष्यवाणी' की वजह से सुर्खियों में आ गए हैं.

दरअसल, गोवा के एक म्यूजियम में हुए कार्यक्रम में प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि भाजपा भी भारतीय राजनीति में कांग्रेस की तरह दशकों तक बनी रहेगी. पार्टी जीते या हारे, भाजपा कहीं जाने वाली नहीं है. भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर 30 फीसदी वोट हासिल किया है. तो, यह इतनी आसानी से जाने वाली नही है. इस धोखे में मत रहिएगा कि लोग नाराज है और मोदी को हरा देंगे. हो सकता है कि लोग मोदी को हरा दें. लेकिन, भाजपा कहीं नहीं जा रही है. राहुल गांधी के साथ यही समस्या है कि उन्हें लगता है कि ये वक्त की बात है और लोग उन्हें सत्ता से बाहर कर देंगे. ऐसा नहीं होने वाला है. भारत में मतदाताओं की लड़ाई एक-तिहाई बनाम दो-तिहाई के बीच नजर आती है. भाजपा को केवल एक तिहाई लोग वोट या समर्थन दे रहे हैं. लेकिन, दो-तिहाई मतदाता कई राजनीतिक दलों में बंटे हुए हैं.

Prashant Kishor Narendra Modiप्रशांत किशोर की इस भविष्यवाणी को किसी भी तौर पर हल्के में नहीं लिया जा सकता है.

जैसा कि, राजनीति को लेकर कहा जाता है कि कोई भी नेता या रणनीतिकार यूं ही अपने शब्दों को खर्च नही करते हैं. और, इन शब्दों के पीछे गहरे निहितार्थ होते हैं. तो, कहना गलत नहीं होगा कि प्रशांत किशोर की इस भविष्यवाणी को किसी भी तौर पर हल्के में नहीं लिया जा सकता है. हां, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि प्रशांत किशोर की इस बात को आप भविष्यवाणी भी मान सकते हैं और राजनीतिक टिप्पणी भी. लेकिन, दोनों ही सूरतों में इस मायने बदलते हुए नजर नहीं आते हैं. पीके का ये बयान जितना कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजाने वाला है, उतना ही भाजपा के लिए भी सिरदर्द बनता दिख रहा है. आइए जानते हैं कैसे?

मोदी चेहरा ना रहें, लेकिन फेस उनके जैसा ही चाहिए

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर का कई पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत का एक ऑडियो चैट लीक हुआ था. भाजपा के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने खुद ही इस चैट को वायरल किया था. जिसमें कहा गया था कि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक 'कल्ट' के रूप में स्थापित हो गए हैं. इसके बाद कहा जाने लगा था कि प्रशांत किशोर ने भी मान लिया है कि बंगाल में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी भी दावा कर रही थी कि पश्चिम बंगाल में भाजपा 200 के पार जाने वाली है. लेकिन, इस ऑडियो के वायरल होने के बाद प्रशांत किशोर ने डंके की चोट पर कहा था कि अगर भाजपा पश्चिम बंगाल में 100 सीटें भी ले आई, तो मैं चुनावी रणनीति का काम छोड़ दूंगा. खैर, भाजपा दहाई के अंक को पार नहीं कर पाई और प्रशांत किशोर को कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन, पीके ने इस बात को साबित कर दिया था कि चुनावी गणित को उनसे बेहतर समझने वाला कोई भी नहीं है.

नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़े गए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और वाम दलों का सफाया करते हुए खुद को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित कर लिया था. करीब 38 फीसदी वोट प्रतिशत के साथ भाजपा ने ये भी साबित कर दिया था कि राज्य में उसका मतदाता बेस तैयार हो चुका है. ये बात साफ हो गई कि बंगाल में भाजपा ने जनाधार बना लिया है. लेकिन, सत्ता से वो दूर रही. हालांकि, सत्ता से दूरी के बावजूद भाजपा को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सका. 

आसान शब्दों में कहा जाए, तो अगर राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का ग्राफ गिरता है, तो भी उसे राजनीति से बाहर नहीं किया जा सकता है. क्योंकि, बंटे हुए मतदाताओं की वजह से पार्टी कम से कम देश की राजनीति से बाहर नहीं होगी. और, साझा विपक्ष की तैयारियों में ही राजनीतिक दलों के बीच खिंची सियासी तलवारें इस ओर इशारा भी कर रही हैं. हां, ये जरूर कहा सकता है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर तैयार हुआ वोटबैंक उनके हिंदुत्व, राष्ट्रवाद जैसे मामलों पर थोड़ा सा भी कमजोर पड़ने उन्हें हटाने में परहेज नहीं करेगा. लेकिन, इसके लिए भाजपा के पास चेहरों की एक लंबी फेहरिस्त है, जो इन मतदाताओं के हिसाब से बदलकर सामने आते रहेंगे. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भाजपा में आगे भी मोदी जैसी छवि वाले नेता के लिए हमेशा जगह रहेगी.

Narendra Modiपीएम नरेंद्र मोदी का अपना एक अलग ही जनाधार है.

अगले साल उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये बात भाजपा के लिए किसी सबक से कम नहीं है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी का अपना एक अलग ही जनाधार है. और, इस जनाधार के सहारे भविष्य में भाजपा राजनीति के केंद्र में तो बनी रहेगी. पीके ने यहां केंद्र से मतलब निश्चित रूप से देश की सत्ता की ही बात की होगी. लोग मोदी को हटा सकते हैं. लेकिन, केवल इस जनाधार के सहारे ही भविष्य में हर बार बहुमत से चुनाव नहीं जीता जा सकता है. खासकर राज्यों में विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती हैं. इसे समझने के लिए पश्चिम बंगाल के उदाहरण से बढ़िया राज्य क्या हो सकता है?

कांग्रेस को मुगालते से नहीं मिलेगी सत्ता

प्रशांत किशोर ने इस कार्यक्रम में भारत के मतदाताओं के बीच एक-तिहाई बनाम दो-तिहाई की लड़ाई की बात करते हुए भाजपा को एक तिहाई और दो-तिहाई में कई राजनीतिक दलों के हिस्से का बंटवारा बताया था. पीके ने स्पष्ट तौर से कहा था कि ऐसा कांग्रेस के कमजोर होने की वजह से है. अगर देश में कांग्रेस के धीरे-धीरे हुए पतन को देखेंगे, तो पता चलेगा कि 90 के दशक के बाद कांग्रेस का ध्यान पूरी तरह से केंद्र की सत्ता पाने की ओर ही रहा. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि राजीव गांधी के कुछ फैसलों, मंडल कमीशन की सिफारिशों के लागू होने और राम जन्मभूमि आंदोलन समेत कई मुद्दों ने राज्यों में कांग्रेस को कमजोर कर दिया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस के 'अच्छे दिन' बीती सदी में ही पूरे हो गए थे. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश सरीखे प्रदेशों में कांग्रेस का प्रभाव कमजोर होने लगा. इन राज्यों में कमजोर होने पर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जड़ों की ओर रुख करने की बजाय केंद्र की सत्ता में बने रहने की ही जुगत भिड़ाने में लगा रहा.

2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता पर यूपीए गठबंधन के सहारे काबिज रही. लेकिन, राज्यों में कमजोर होती गई. महाराष्ट्र में एनसीपी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी सरीखे नेताओं ने कांग्रेस को इन राज्यों में हाशिये पर पहुंचा दिया है. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, असम में हिमंता बिस्व सरमा के तौर पर इन राज्यों में कांग्रेस ने खुद की ही जड़ों पर कुल्हाड़ी चला ली है. खैर, नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ साझा विपक्ष जैसी कोशिश को लेकर अभी भी कांग्रेस का नजरिया राहुल गांधी को पीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाने वाला ही है. प्रशांत किशोर ने साफ इशारा करते हुए बताया है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस मुगालते में हैं कि वक्त के साथ लोग भाजपा से तंग आकर मोदी को सत्ता से बाहर कर देंगे. लेकिन, ऐसा होने वाली नही है. नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए उनकी ताकत को समझना होगा. और, कांग्रेस इस ताकत को समझने के लिए कहीं से भी तैयार नहीं दिखती है.

Rahul Gandhi Priyanka Gandhiकांग्रेस का नजरिया राहुल गांधी को पीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाने वाला ही है.

अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लगातार कोशिश कर रही हैं कि पार्टी में किसी तरह से दोबारा जान फूंकी जा सके. हाथरस, लखीमपुर खीरी, आगरा में हुई घटनाओं के पीड़ितों से मिलकर प्रियंका गांधी के नाम का माहौल तो सूबे में बन ही गया है. और, प्रियंका गांधी के तेवर देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह किसी भी हाल में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने कांग्रेस को एक कमजोर दल के रूप में पेश करने के मूड में नही हैं. अगर अखिलेश यादव गठबंधन करने के लिए राजी नही होते हैं, तो कांग्रेस नेता के तौर पर प्रियंका गांधी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सपा को सत्ता से दूर रखने में कोई कोताही नहीं बरतेंगी. ऐसा ही कुछ, बिहार में राहुल गांधी द्वारा आरजेडी के विरोध को दरकिनार करते हुए कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने के फैसले में भी नजर आता है. बिहार में होने वाले उपचुनाव को लेकर महागठबंधन में दरार भी पड़ चुकी है. जनअधिकार पार्टी के सुप्रीमो पप्पू यादव भी कांग्रेस के साथ मंच साझा करने लगे हैं.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो अब कांग्रेस यूपी, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंचाकर अपना महत्व साबित करने की ओर बढ़ चली है. 2024 से पहले होने वाले तमाम राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से क्षेत्रीय दलों को सीधी चुनौती दी जा रही है. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये कदम कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है. अगर ऐसा होता है, तो जिस दो-तिहाई वोट के बंटे होने की बात प्रशांत किशोर ने की है, उसका और ज्यादा बंटवारा हो जाएगा. प्रशांत किशोर ने अपनी बातों में कांग्रेस को कमजोर बताया है. और, जमीनी स्थिति देखी जाए, तो काफी हद तक कांग्रेस उसी हालत में नजर आती है.

क्या टीएमसी के बना रहे हैं माहौल या विपक्ष को सलाह?

प्रशांत किशोर फिलहाल 2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव तक तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए ही चुनावी कैंपेन करते रहेंगे. इस दौरान कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ ही 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी को मिले कई सियासी दलों के समर्थन से एक नैरेटिव चल पड़ा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को टक्कर सिर्फ 'दीदी' ही दे सकती हैं. ममता बनर्जी भी अगले साल होने वाले पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को तैयार नजर आ रही हैं.

इस बात की पूरी संभावना है कि प्रशांत किशोर ने ये बयान नरेंद्र मोदी के सामने ममता बनर्जी को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने के लिए किया हो. लेकिन, इसका ममता बनर्जी को कोई तात्कालिक फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है. वहीं, प्रशांत किशोर के इस बयान को विपक्ष के लिए एक सलाह के तौर पर भी देखा जा सकता है. क्योंकि, एक-तिहाई वोटों के सामने बहुमत का दो-तिहाई वोट के कमजोर पड़ने का गणित कोई बहुत बड़ी रणनीति नहीं है. अगर विपक्ष एकजुट होकर भाजपा या मोदी की ताकत का मुकाबला करने की कोशिश करता है, तो किसी भी तरह की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय