प्रशांत किशोर भाजपा के साथ हैं या खिलाफ?
पहले प्रशांत किशोर ने भाजपा की विरोधी पार्टी कांग्रेस की नवनिर्वाचित महासचिव प्रियंका गांधी की तारीफ की. ये बात तो पार्टी पचा गई, लेकिन अब प्रशांत किशोर का शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलना नाराजगी का सबब बन सकता है.
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लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा की सहयोगी पार्टी जेडीयू के उपाध्यक्ष और जाने माने चुनाव-रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक ऐसी राह पर चलते दिख रहे हैं, जो भाजपा को पसंद नहीं आएगी. हाल ही में जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया था तो उन्होंने इसे दूरगामी परिणाम वाला निर्णय बताया. लेकिन अब प्रशांत किशोर ने जो किया है, वो तो भाजपा की टेंशन को और भी अधिक बढ़ाते हुए एक अलग ही लेवल पर ले जाएगा.
शिवसेना-भाजपा की तल्खियों के बीच प्रशांत किशोर ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात की है. लोकसभा चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे से प्रशांत किशोर की मुलाकात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कयास ये भी हैं कि क्या वह शिवसेना और भाजपा के बीच की कड़ी बनकर वहां गए थे और दोनों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं? या फिर वह भाजपा और शिवसेना की दूरी का राजनीतिक फायदा उठाने गए हैं. और सिर्फ शिवसेना के लिए चुनाव कैंपेन की रणनीति बनाने का प्रस्ताव दे रहे हैं? यूं तो शिवसेना के नेता संजय राउत ने इसे राजनीतिक नहीं, बल्कि एक शिष्टाचार मुलाकात कहा है, लेकिन एक राजनीतिक रणीतिकार का किसी राजनीतिक पार्टी के मुखिया से मिलना राजनीतिक ना हो, ये मुमकिन नहीं लगता.
शिवसेना को प्रशांत किशोर की तरफ से राजनीतिक रणनीति बनाने का ऑफर भाजपा के लिए टेंशन से कम नहीं है.
वो बातें, जो हमें पता चलीं
प्रशांत किशोर और उद्धव ठाकरे की मुलाकात के दौरान वहां मौजूद रहे एक शिवसेना सांसद ने इंडिया टुडे को बताया कि प्रशांत किशोर ने शिवसेना के लिए राजनीतिक रणनीति बनाने में मदद की बात कही है. उन्होंने न सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने का प्रस्ताव रखा, बल्कि उसके बाद इसी साल सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों की चुनाव प्रचार रणनीति भी बनाने की बात कही. हालांकि, प्रशांत किशोर ने ये साफ कर दिया कि वह शिवसेना और भाजपा के बीच किसी भी तरह के गठबंधन में कोई भूमिका नहीं निभाएंगे. ना ही वह शिवसेना और जेडीयू को एक साथ लाने की कोई कोशिश करेंगे. उन्होंने कहा कि उनकी राजनीतिक रणनीति सिर्फ शिवसेना के लिए होगी और सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित रहेगी.
बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी (जेडीयू) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर का एक अन्य पार्टी (शिवसेना) के लिए रणनीति बनाएगा, जिससे भाजपा की ठनी हुई है, ये बात वाकई गले नहीं उतरती. यहां सवाल ये है कि आखिर प्रशांत किशोर किसके साथ हैं? वह भाजपा के साथ हैं या खिलाफ? माना कि वह भाजपा में नहीं है, लेकिन वह भाजपा की सहयोगी पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, ना कि किसी फर्म के मालिक जो विभिन्न पार्टियों के लिए राजनीतिक रणनीति बनाए. उन्होंने शिवसेना को चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन ये कैसे भूल गए कि अब वह एक राजनीतिक पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, जो भाजपा की सहयोगी है?
प्रशांत किशोर जब सक्रिय राजनीति में उतरे थे, तो उन्होंने स्पष्ट किया था कि अब उनका i-pac कंपनी से कोई नाता नहीं रहेगा. जिसकी स्थापना उन्होंने चुनाव कैंपेन की रणनीति बनाने के लिए की थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मोदी के कैंपेन की कमान संभाली थी. फिर यूपी, और बाद में पंजाब में कांग्रेस के लिए रणनीति तैयार की. अब i-pac की टीम आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने में जुटी है.
प्रशांत किशोर यदि पर्दे के पीछे से भी शिवसेना की मदद करते हैं, तो वह कम से कम महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनेगा. खासतौर पर तब, जब भाजपा-शिवसेना का गठबंधन नहीं होता है. भाजपा-शिवसेना की तल्खियों के बीच प्रशांत किशोर का उद्धव ठाकरे से मिलना 'दूल्हे राजा' फिल्म की याद दिलाता है. जब कादर खान अपने नौकर जॉनी लीवर से पूछते हैं कि 'तू मेरी तरफ है या इसकी तरफ...'.
प्रियंका की तारीफ में क्या कहा था?
जब कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया था तो उन्हें बधाई देते हुए प्रशांत किशोर ने कहा था- भारत की राजनीति आखिरकार वो एंट्री हो ही गई, जिसका सबसे बेसब्री से इंतजार था. जहां एक ओर लोग उनकी टाइमिंग, भूमिका और उनके पद को लेकर बहस कर सकते हैं, वहीं मेरे लिए सबसे बड़ी खबर ये है कि उन्होंने आखिरकार राजनीति में उतरने का फैसला लिया. प्रियंका गांधी को बधाई और शुभकामनाएं. आपको बता दें कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान ही प्रियंका गांधी को सामने लाने का सुझाव दिया था, लेकिन शायद कांग्रेस का इरादा प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव के लिए बचाकर रखने का था.
One of the most awaited entries in Indian politics is finally here! While people may debate the timing, exact role and position, to me, the real news is that she finally decided to take the plunge! Congratulations and best wishes to Priyanka Gandhi.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) January 23, 2019
लोकसभा चुनावों को देखते हुए राजनीतिक गलियारे में कयास लगने अभी शुरू ही हुए थे कि शिवसेना नेता संजय राउत मीडिया के सामने आ गए और कहा कि ये राजनीति मुलाकात नहीं, बल्कि एक शिष्टाचार भेंट थी. उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं था.
Sanjay Raut, Shiv Sena on JDU leader and strategist Prashant Kishore: He is a leader of one of NDA's allies and he met Uddhav ji in that regard. See it as a courtesy visit and not a political visit. pic.twitter.com/ofNTIOEchO
— ANI (@ANI) February 5, 2019
खैर, कयासों के बीच जो बातें इंडिया टुडे को पता चली हैं, उन बातों को भी नकार नहीं सकते. भले ही कोई कुछ भी कहे, लेकिन एक राजनीति रणनीतिकार का एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया से मिलना कई सवाल उठाता है. प्रशांत किशोर 2014 में भाजपा को जीत का ताज पहना चुके हैं और कांग्रेस के लिए भी रणनीति बना चुके हैं. ऐसा लग रहा है कि वह अभी भी खुद को एक पॉलिटिकल मैनेजमेंट फर्म का मालिक समझ रहे हैं और ये भूल गए हैं कि वह जेडीयू के उपाध्यक्ष हैं, जो भाजपा की सहयोगी है. भले ही जेडीयू को इससे कोई आपत्ति ना हो, लेकिन शिवसेना को प्रशांत किशोर की तरफ से राजनीतिक रणनीति बनाने का ऑफर भाजपा के लिए टेंशन की ही बात है.
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