पटियाला के राजा को फकीर बना कर ही छोड़ेंगे पीके
अब तक लोग कैप्टन अमरिंदर में महाराजा की छवि ही देखते आए हैं - उसकी वजह भी है उन्होंने इस इमेज को बाकायदा मेंटेन भी किया है. अब प्रशांत की कोशिश है कि लोगों की नजर में महाराजा का अक्स धूमिल पड़ जाए.
-
Total Shares
पंजाब दी लस्सी के शौकीनों के बीच कांग्रेस को कॉफी के कद्रदानों की तलाश है. कॉफी के ये कद्रदान पंजाब की 2.9 करोड़ की आबादी में 18-35 साल के 90 लाख नौजवान हैं, जो साल भर के भीतर ही इस बात का फैसला सुनाने वाले हैं कि अगली बार सूबे की कमान किसे सौंपी जाए?
74 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह उन नौजवानों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं - और कदम कैसे बढ़ाने हैं इसका रिमोट प्रशांत किशोर खुद ऑपरेट करते हैं.
सरे राह समर्थक
अब तक लोग कैप्टन अमरिंदर में महाराजा की छवि ही देखते आए हैं - उसकी वजह भी है उन्होंने इस इमेज को बाकायदा मेंटेन भी किया है. अब प्रशांत की कोशिश है कि लोगों की नजर में महाराजा का अक्स धूमिल पड़ जाए. कैप्टन लोगों से ऐसा संवाद स्थापित करें कि जो भी एक बार उनसे बात करे शाहरूख की तरह फैन हो जाए.
ज्यादा दिन नहीं हुए, मलेरकोटला में दो हजार नौजवानों की भीड़ से अमरिंदर कहते हैं, “मैं 73 का हो चुका हूं. मेरा वक्त अब खत्म हो रहा है. मैं यह सब आपके लिए कर रहा हूं. पंजाब के अगले सूबेदार आप हैं.” फिर, वो पूछते हैं, “फेसबुक पर आपमें से कितने लोग मेरे मित्र हैं?”
मौके पर मौजूद इंडिया टुडे के पत्रकार असित जॉली अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि कम से कम 500 हाथ ऊपर उठ जाते हैं.
“अब ठीक है दोस्तों!” कैप्टन बड़ी संजीदगी से उनका आभार जताते हैं.
इसे भी पढ़ें: पंजाब चुनाव से पहले सिख पॉलिटिक्स के उलझे दांव पेंच
जैसे ही कैप्टन निकलने लगते हैं, एक सिख युवक गुस्से में पूछता है, “कांग्रेस की सरकार ने 1984 में हरमंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) में फौज भिजवाई थी. क्या आपको लगता है कि यह सही कदम था?”
अमरिंदर तपाक से पंजाबी टोन में ही जवाब देते हैं, “गलत सी” (गलत था). कैप्टन उसे बड़े प्यार से याद दिलाते हैं कि इसी मसले पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी. इतना ही नहीं वो आगे कहते हैं, “चार साल बाद 1988 में मैंने मंत्री का पद छोड़ दिया था, जब अकाली सरकार ने हरमंदर साहब में पुलिस भिजवा दी थी.” कैप्टन ऑपरेशन ब्लैक थंडर का जिक्र कर रहे हैं. कैप्टन के इस जवाब बीस साल के उस नौजवान पर इतना असर होता है कि वो उनके समर्थन में भीड़ में शामिल होकर पीछे पीछे चलने लगता है.
अब लस्सी नहीं कॉफी का जमाना है... |
सवालों का जवाब देने के मामले में कैप्टन को माहिर माना जाता है और नौजवानों को भी उनका ये अंदाज खूब भा रहा है. कहा तो यहां तक जाता है कि अगर किसी ने कैप्टन से सवाल पूछ लिया तो वह उसे जवाब देकर थका देते हैं.
हाजिर जवाब कैप्टन
एक कार्यक्रम में एक छात्र सवाल पूछता है, “आप मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. असली कमान किसके हाथ में होगी? आपके या उस गिरोह के, जो आपको घेरे रहता है?”
कैप्टन बिलकुल कूल होकर जवाब देते हैं, “मुख्यमंत्री के रूप में किसी को भी सक्षम लेकिन वफादार लोगों की जरूरत होती ही है.” ऐसा ही एक और सवाल पूछा जाता है तो कैप्टन जवाब देते हैं, “कोई भी कोने में अकेले बैठकर काम नहीं कर सकता. मेरे पास अपना दिमाग है. मैं सुनता सबकी हूं, लेकिन फैसला सबको सुनने के बाद खुद ही लेता हूं.”
बदले बदले महाराजा
चाहे वो पटियाला में कैप्टन का खानदानी घर न्यू मोतीबाग हो या चंडीगढ़ का आवास - खूब रौनक है लेकिन हर किसी का अंदाज थोड़ा बदला हुआ है. पुलिसवाले तक विनम्रता से पेश आ रहे हैं. ये सब छवि बदलने की उस कवायद का हिस्सा है जिसके सूत्रधार प्रशांत किशोर हैं.
एक दौर था जब दिन चढ़ने के बाद ही कैप्टन की सुबह होती थी. अब 11 बजे की जगह कैप्टन आजकल सुबह 7 बजे ही लोगों के बीच हाजिर हो जाते हैं. जाहिर है उठते और पहले ही होंगे.
इसे भी पढ़ें: तीसरा युद्ध हो न हो, पंजाब की चुनावी जंग तो पानी पर ही होगी
उस दौर में सांझ ढलने के बाद कैप्टन किसी से मिलते तक नहीं थे लेकिन साढ़े छह बजे तो उनका कार्यक्रम 'कॉफी विद कैप्टन' शुरू ही होता है जो आठ बजे तक चलते है. अब दिन भर वो लोगों के बीच रहते हैं. इनमें कार्यकर्ता भी होते हैं और आम जनता भी. निश्चित रूप से लोगों को इस बदले हुए कैप्टन को देखकर, उनके बारे में सोच कर हैरानी होती होगी. वैसे अब ये उनकी रोजमर्रा की आदत बन चुकी है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता अरुण जेटली को शिकस्त देने के साथ ही कैप्टन सूबे की सियासत में कांग्रेस का मजबूत चेहरा बन कर उभरे. यही वजह रही कि राहुल गांधी के नेतृत्व पर उंगली उठाने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें पंजाब में कांग्रेस का फिर से कैप्टन बना दिया. खास बात ये रही कि इसके लिए उस शख्स को हटाया गया जो राहुल गांधी की पसंद थे - प्रताप सिंह बाजवा.
इसे भी पढ़ें: केजरीवाल के लिए डबल बेनिफिट स्कीम होगी पंजाब की सत्ता
अब कैप्टन के चुनावी सारथी प्रशांत किशोर की कोशिश है कि जैसे भी हो उनकी छवि पटियाला महल की दीवारों की कैद से निकल कर आम हो जाए. अब तक उन दीवारों की तरफ नजर उठाकर देखने से भी हिचकने वाला आम आदमी उनसे जुड़ा महसूस कर सके - और अगर कोई खुद को आम आदमी का स्वाभाविक रहनुमा बताने की कोशिश करे तो लोग खुले दिमाग से दोनों की तुलना कर फर्क करें और फिर फैसला करें.
वैसे जो भी पंजाब में मुकाबला दिलचस्प होगा. एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से जूझते बादलों के साये में एक तरफ अफसर से आम आदमी के नेता बने अरविंद केजरीवाल होंगे तो दूसरी तरफ राजा से फकीर बनने की कोशिश में लगे कैप्टन अमरिंदर सिंह.
आपकी राय