President Election मोदी के खिलाफ 2024 से पहले विपक्ष के लिए अंतिम मॉक ड्रिल है
2024 के आम चुनाव (Mission 2024) को देखते हुए विपक्ष के एकजुट (Opposition Unity) होने का सर्वोत्तम मॉडल राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) ही है - क्योंकि प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरह पहले से ही किसी का कोई रिजर्वेशन नहीं है, लेकिन कुछ नेताओं की आपसी असहमति बहुत बड़ी बाधा भी है.
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राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) की तैयारियां तो चुनाव आयोग के तारीख की घोषणा से पहले से ही चल रही है. अब तो ये भी मालूम हो चुका है कि 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे और 21 जुलाई को नतीजा आ जाएगा. नामांकन की प्रक्रिया 29 जून तक खत्म हो जाएगी.
बीजेपी नेतृत्व के साथ साथ कांग्रेस नेतृत्व भी विपक्ष (Opposition Unity) की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव में मजबूती के साथ उतरने की तैयारी चल रही है, जिसे 2024 के आम चुनाव के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण समझा जा सकता है - और इस बार लगता है ऐसा होने वाला है जो अब तक नहीं हुआ है.
ऐसा लगता है कांग्रेस पहली बार राष्ट्रपति चुनाव में अपने किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की पहल नहीं कर रही है. यहां तक कि 2017 में दलित मुद्दे पर हुए चुनाव में भी कांग्रेस नेता मीरा कुमार को विपक्ष का उम्मीदवार बनाया गया था.
कांग्रेस के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस के भी किसी नेता के उम्मीदवार न बनने की खबर आ रही है - और इन सब के पीछे एक ही वजह है कि विपक्षी खेमे में किसी एक के नाम पर असहमति का कोई स्कोप न छूटे.
अगर वास्तव में किसी एक नाम पर पूरे विपक्ष में आम सहमति बन जाती है, हालांकि ये नामुमकिन सा ही है, तो ये असंभव को संभव बनाने जैसा ही टास्क पूरा होना समझा जाएगा - वैसे भी ये राष्ट्रपति चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ 2024 के आम चुनाव (Mission 2024) से पहले विपक्ष के लिए अंतिम मॉक ड्रिल ही समझा जाना चाहिये.
ये जो आदर्श विपक्षी मॉडल है!
राष्ट्रपति चुनाव और दो साल बाद होने वाले आम चुनाव एक बात कॉमन है, और एक बड़ा फर्क भी है - और राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी नजर आती है, पूरा विपक्ष उसे ही 2024 के लिए आदर्श मॉडल मान कर मिशन में जुट जाये तो चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एक और भविष्यवाणी सही साबित हो सकती है - 2024 में बीजेपी को हराना नामुमकिन नहीं है.
प्रधानमंत्री की तरह कुर्सी जैसी लड़ाई नहीं है: चुनाव के प्रत्यक्ष और परोक्ष रूपों के छोड़ भी दें तो दोनों ही चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच जोर आजमाइश होनी है. फर्क ये है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरह राष्ट्रपति चुनाव में किसी का कोई रिजर्वेशन नहीं है. जैसे बाकी नेताओं को अलग रख कर देखें तो भी प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस की दावेदारी टस से मस होने का नाम ही नहीं लेती.
ऐसा उम्मीदवार जो सबको मंजूर हो: इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से लगता है कि 2017 के मुकाबले राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को चैलेंज करने की तैयारी बेहतर तरीके से हो रही है, लेकिन मुश्किल ये है कि पिछली बार के मुकाबले विपक्ष ज्यादा बिखरा हुआ है.
अब तक की प्रोग्रेस रिपोर्ट ये है कि समान विचार वाले राजनीतिक दलों के बीच हो रही चर्चा में सभी का जोर इसी बात पर है कि कैसे एक ऐसा उम्मीदवार खोजा जाये जो सबको मंजूर हो. अच्छी बात ये है कि अभी तक कांग्रेस की तरफ से ऐसी कोई दावेदारी सामने नहीं आयी है कि राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तो कांग्रेस से ही होगा.
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो हिम्मत सोनिया गांधी ने दिखायी है, प्रधानमंत्री पद को लेकर भी वैसा ही रुख अपनायें तो मिशन 2024 की राह आसान हो जाएगी
जैसे 2017 में विपक्षी उम्मीदवार बनायी गयीं मीरा कुमार कांग्रेस की ही नेता हैं - और अगर ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति के इतिहास में ये पहला मौका होगा जब राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं होगा.
और विपक्षी खेमे की राजनीति में ये सबसे बड़ी निर्बाध रणनीति हो सकती है. फिर भी किसी के लिए ये दावा करना मुश्किल होगा कि ऐसा हुआ तो विपक्ष के उम्मीदवार के जीत की संभावना बन सकती है. हां, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई को मजबूत जरूर बनाये जा सकता है.
अच्छी बात ये है कि कांग्रेस नेतृत्व और तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना और लेफ्ट दलों के बीच प्राथमिक तौर पर विचार विमर्श भी हो चुका है. लेकिन इतने से ही काम तो नहीं बनने वाला है. कुछ पार्टियां तो स्पष्ट तौर पर इधर या उधर या न्यूट्रल होने की कोशिश करती हैं. आखिरी वक्त में न्यूट्रल होने का दिखावा करने वाले भी किसी एक साइड हो जाते हैं. स्वाभाविक भी है, जब दो ही पक्ष हों तो किसी एक तरफ तो होना ही पड़ेगा.
चाहे वो नवीन पटनायक की BJD हो या फिर जगनमोहन रेड्डी की YSRCP, दोनों का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो वे ज्यादा करीब बीजेपी के ही नजर आते हैं. पिछली बार तो समाजवादी पार्टी ने आखिरी वक्त में मीरा कुमार को वोट देने का फैसला किया था, लेकिन इस बार अखिलेश यादव और मायावती का क्या रुख होता है, देखना होगा - सबसे बड़ा सवाल अरविंद केजरीवाल का स्टैंड क्या होगा?
केजरीवाल के साथ कैसा सलूक होगा: 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में दलित राजनीति हावी रही, लेकिन आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के साथ अछूत जैसा ही व्यवहार किया गया. फिर आम आदमी पार्टी ने विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को ही वोट दिया था. वक्त भले ही पांच साल का गुजरा हो, लेकिन ये बात अब बहुत पुरानी लगती है.
सवाल ये है कि अरविंद केजरीवाल का इस बार क्या रुख होगा? कहीं कैंडिडेट को आधार बनाकर अरविंद केजरीवाल एनडीए के साथ तो नहीं चले जाएंगे? वैसे भी पांच साल में ही अरविंद केजरीवाल की हैसियत काफी बदल चुकी है - अब दिल्ली और पंजाब दो-दो राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार है.
आज की मुश्किल ये नहीं है कि विपक्ष अरविंद केजरीवाल को साथ लेता है या नहीं, ज्यादा बड़ी मुश्किल ये है कि अरविंद केजरीवाल इस बार पक्ष या विपक्ष में से किसी एक के साथ जाने को तैयार होते भी हैं या नहीं?
केवल अरविंद केजरीवाल ही क्यों - तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव भी तो अलग से ही अखिल भारतीय तैयारी में जुटे हैं, रुख तो उनका भी महत्वपूर्ण होगा. अभी तक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी दोनों में केसीआर पर हमला करने के मामले में होड़ लगी हुई है. ये भी नहीं भूलना चाहिये कि प्रशांत किशोर के जरिये केसीआर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी पहले ही ऑफर कर चुके हैं.
हाल फिलहाल केसीआर और केजरीवाल में सियासी जुगलबंदी भी देखने को मिली थी. केसीआर ने दिल्ली दौरे में मॉडल स्कूल और मोहल्ला क्लिनिक चलाने की बारीकियां तो देखी ही, पंजाब दौरे में भी वो केजरीवाल के साथ नजर आये. सबसे खास बात तो ये रही कि केसीआर ने किसान आंदोलन के पीड़ित परिवारों को तीन-तीन लाख रुपये का मुआवजा भी दिया.
ऐसा न हो कि राष्ट्रपति चुनाव में इस बार एक तीसरा मोर्चा भी खड़ा हो जाये? एक एनडीए का उम्मीदवार, दूसरा यूपीए वाले विपक्ष का उम्मीदवार और तीसरा गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस केसीआर-केजरीवाल का उम्मीदवार.
फिर तो इसी पैटर्न पर आने वाले आम चुनाव में तीसरे मोर्चे की गुंजाइश भी बन ही जाएगी - और ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए सब अच्छा अच्छा ही होगा!
सोनिया की पहल रंग लाएगी क्या?
अब तक सामने आयी जानकारी के हिसाब से कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में भले न आने वाला हो, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की पहल सोनिया गांधी की तरफ से ही हो रहा है.
खबर है कि सोनिया गांधी ने इस दिशा में एक बड़ी बाधा पार भी कर ली है - ममता बनर्जी से बातचीत की. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस को किनारे कर 2024 के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहीं ममता बनर्जी ने यहां तक बोल दिया था कि हर बार सोनिया गांधी से क्यों मिलना - संविधान में कहीं ऐसा लिखा है क्या?
ममता बनर्जी के साथ साथ विपक्षी एकता के लिए परदे के पीछे प्रयासरत एनसीपी नेता शरद पवार से भी सोनिया गांधी की बातचीत हो चुकी है. आगे की तैयारी के लिए सोनिया गांधी मौजूदा कांग्रेस नेताओं में सीनियर और भरोसेमंद मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार की तलाश के लिए कॉन्टैक्ट पर्सन बनाया है. मल्लिकार्जुन खड़गे राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी हैं.
कांग्रेस के दूत मिशन पर हैं: सोनिया गांधी का संदेश लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे मिशन पर निकल पड़े हैं - और गौर करने वाली बात ये है कि वो काम करते हुए नजर भी आ रहे हैं. सीपीआई सांसद विनय विश्वम ने इस बात की तस्दीक भी की है. विपक्षी नेताओं से मुलाकात से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे फोन पर संपर्क करते हुए आगे बढ़ रहे हैं.
सीपीआई नेता विनय विश्वम ने ट्विटर पर लिखा है, 'मल्लिकार्जुन खड़गे जी ने फोन किया था और राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक साझा उम्मीदवार को लेकर सलाह मशविरा किया. मैंने उनसे कहा कि CPI ऐसे किसी भी कॉमन कैंडिडेट का सपोर्ट समर्थन करेगी जो धर्मनिरपेक्ष विचार वाला हो और प्रगतिशील नजरिया रखता हो.' विनय विश्वम को खड़गे ने भरोसा दिलाया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बिलकुल ऐसा ही चाहती हैं.
Mallikarjun Khargeji called and consulted about a common candidate for Presidential election.I told him that CPI w'd support a common candidate with secular credentials and progressive outlook.He replied that Madam soniaji and Congress Party also have the same position.
— Binoy Viswam (@BinoyViswam1) June 9, 2022
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की पहल के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे ने एनसीपी नेता शरद पवार के घर सिल्वर ओक पहुंच कर मुलाकात की है. बाद में मल्लिकार्जुन खड़गे ने मीडिया को बताया कि वो सोनिया गांधी के आदेश पर पवार से मिले - और तय किया गया है कि समान विचार वाले दलों की तरफ से एक ही उम्मीदवार तय किया जाये.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने बताया कि सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के सभी नेताओं से बात करने को कहा है - चाहे वो टीएमसी नेता ममता बनर्जी हों या डीएमके, समाजवादी पार्टी या दूसरे दलों के नेता.
शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे का नाम भी मल्लिकार्जुन खड़गे की लिस्ट में शुमार है और उनका कहना है कि जब तक मीटिंग नहीं हो जाती, कैंडिडेट के नाम पर कोई बात नहीं होगी. कहते हैं, 'मेरा काम कोशिशों को आगे बढ़ाना भर है.'
सर्वमान्य कैंडिडेट चुनने की चुनौती: एक ऐसा कैंडिडेट जो सबकी पसंद का हो विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है. ऐसी चीजें नामुमकिन सी होती हैं क्योंकि कोई एक नेता सबको पसंद आये ही. किसी न किसी को तो समझौता करना ही होगा - और बड़ा सवाल यही है कि समझौता कौन करेगा और करेगा भी तो किस मजबूरी में?
सोनिया गांधी की इस पहल में सबसे अच्छी बात यही है कि सबकी एक मीटिंग बुलाने से पहले किसी प्रस्तावित नाम पर आम राय बनाने की कोशिश नहीं लगती. जैसे अब तक होता आया है. अब तक तो ऐसा ही होता रहा कि कांग्रेस की तरफ से कोई नाम बता दिया जाता था और सबको फोन पर या मिल कर समझाने की कोशिश की जाती रही. जो मान गया वो साथ हो गया, जो नहीं माना उसका कोई कर भी क्या सकता है?
देखा जाये तो विपक्ष के पास ये मौका सबसे बड़ा इसलिए भी है क्योंकि बीजेपी को भी अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए एनडीए के बाहर के सहयोगी की जरूरत पड़नी ही है. अब तक ये देखा भी गया है कि बीजेडी और YSRCP नेता एनडीए से अलग होते हुए भी बीजेपी के साथ ही खड़े रहे हैं.
और एक पखवाड़े के भीतर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल भी चुके हैं - मुलाकात का मुद्दा जो भी हो, ये तो निश्चित है कि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दोनों नेताओं के रुख जानने की कोशिश किये ही होंगे. रुख जो भी एनडीए कैंडिडेट के लिए सहयोग तो पक्का ही मांगे होंगे.
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