प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'पसमांदा नीति' के मायने क्या हैं?
राजनीति की स्थापित परिपाटी से अलग पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पहले देशज पसमांदा (Pasmanda Muslim) को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और महत्त्वपूर्ण राज्य के शासन में भागीदारी दिलवाई. लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी धार्मिक भेदभाव के सभी जरूरतमंदों तक पहुंचवाया. अब जाकर अपने कार्यकर्ताओ को निर्देश दे रहें हैं कि समाज में पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का प्रयास करें.
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बीते दिनों हैदराबाद में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अन्य धर्मों के वंचितों विशेष रूप से वंचित पसमांदा के लिए कार्य करने के निर्देश के साथ ही मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय का प्रश्न राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा के केंद्र में है.
जहां एक ओर देशज पसमांदा समाज और पसमांदा कार्यकर्ताओं में इसको लेकर उत्साह का माहौल है कि पहली बार राष्ट्रव्यापी स्तर पर उनके सुख-दुःख की चर्चा हो रही है. तो, दूसरी ओर अशराफ वर्ग और तथाकथित लेफ्ट लिबरल सेकुलर खेमे में इसे संदेह की दृष्टि से देखते हुए लगातार नकारात्मक बहस चलाई जा रही है. मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय को आंतरिक मामला बताते हुए इसे मुस्लिम समाज को बांट कर वोट की राजनीति करने का भी आरोप लगाया जा रहा है. यहां तक की कुछ तथाकथित पसमांदा कार्यकर्ताओं का भी यही रुख है. शायद भारतीय जनता पार्टी की अब तक की छवि इसका कारण हो, लेकिन लोग यह भूल रहें हैं कि आज से पच्चीस वर्ष पहले की भाजपा और आज की भाजपा में बहुत अंतर हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी की स्नेह यात्रा देशज पसमांदा मुस्लिमों के साथ हिंदुओं का सांप्रदायिक सौहार्द को फिर से बहाल करेगी.
भाजपा की मौजूदा कामयाबी का एक बड़ा कारण हिंदू समाज में सामाजिक न्याय को एड्रेस करते हुए दलित पिछड़ों की वंचित जातियों को संगठन और सरकार में भागेदारी देना रहा है. ऐसा कर भाजपा ने सवर्णवादी पार्टी की छवि से निकलने का लगभग सफल प्रयास किया है. अब यही नीति वो मुस्लिम समाज पर भी आजमाना चाहती है. भाजपा की सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास और अंत्योदय की नीति के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रारंभ से ही गंभीर रहें हैं. जो भाजपा के संगठन, केंद्र और राज्य सरकारों में स्पष्ट दिखाई भी दे रहा हैं.
यहां तक कि कलाकार/खिलाड़ियों की श्रेणी से मनोनीत होने वाले सांसदों में भी पहली बार वंचित समाज के कलाकार और खिलाड़ी दिख रहें हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ना तो परम्परागत शासक वर्ग से आते हैं और ना ही उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि किसी राजनीतिक परिवार की रही है. शायद यही कारण प्रतीत होता है कि वे वंचित समाज के दुःख-दर्द को भली भांति समझते हैं और उसके प्रति गंभीर भी रहें हैं. अब उनकी नजर देश के दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक समाज, मुस्लिम के वंचित तबके देशज पसमांदा की ओर है.
राजनीति में अब तक की यह परिपाटी रही है कि राजनेता जनता से वादे और आश्वासन कर वोट मांगता है. लेकिन, पीएम मोदी हमेशा लीक से अलग हटकर राजनीति करने में माहिर हैं. उन्होंने पहले देशज पसमांदा को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और महत्त्वपूर्ण राज्य के शासन में भागीदारी दिलवाई. लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी धार्मिक भेदभाव के सभी जरूरतमंदों तक पहुंचवाया. फिर अब जाकर अपने कार्यकर्ताओ को निर्देश दे रहें हैं कि समाज में जाकर उन्हें जोड़ने का प्रयास करें. इससे यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि यह सिर्फ वोट की राजनीति भर है. क्योंकि, जो व्यक्ति बिना देशज पसमांदा के वोटों के लगातार दो बार प्रधानमंत्री चुना जा सकता है. वह तीसरी बार भी बिना उनके वोटों के जीतने में सक्षम है.
पीएम नरेंद्र मोदी की अब तक की नीति से यह बात साफ प्रतीत होती है कि वे वंचित समाज के उत्थान के लिए दृणप्रतिज्ञ हैं. उनका ध्यान मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय को स्थापित कर देशज पसमांदा को मुख्यधारा में लाना है. जो अंत्योदय का भी लक्ष्य है. यही नहीं उन्होंने ईसाई समाज के वंचितों के लिए भी अपनी चिंता जताई है. रही बात वोट की राजनीति की तो लोकतंत्र में किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान अधिक से अधिक वोटरों को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न रहता है. विशेष रूप से लंबे समय से सत्ता में बनी पार्टी जिसे सत्ता विरोधी लहर का डर बना रहता है.
भाजपा अपनी लोकप्रियता और सफलता से अब उस पोजीशन पर पहुंच चुकी है. जहां उसे सत्ता विरोधी लहर की भरपाई करने के लिए अपने पारंपरिक वोटों के अतिरिक्त अन्य समाज में अपने समर्थक तलाश करना है. जो उनकी सत्ता के समर्थन का केंद्र नही रहा. और, जहां से उसे वोट और समर्थन मिल सके. ऐसे में देशज पसमांदा समाज जो कुल मुस्लिम जनसंख्या का लगभग 90% भाग है. और, वाकई बहुत पिछड़ा है को भारत की विकास यात्रा में जोड़ने की बात करना सही रणनीति प्रतीत होती है.
जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पसमांदा का लगभग 8% वोट मिल सकता है. तो, फिर इससे बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर देशज पसमांदा को भाजपा के संगठन और सरकार में समुचित भागेदारी मिलती है. तो, पसमांदा समाज का वोट भाजपा की तरफ नहीं जाएगा. वैसे भी देशज पसमांदा का यह इतिहास रहा है कि उसने उस समय कांग्रेस पार्टी को झोली भर-भर के वोट दिया है. जब उसे हिंदू पार्टी के रूप में प्रचारित किया जाता था और सांप्रदायिकता अपने चरम पर थी.
देश में सांप्रदायिकता के इतिहास और इस समय के सांप्रदायिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित स्नेह यात्रा का कॉन्सेप्ट भारतीय समाज के आपसी वैमनस्य के बादल को छांट कर सामाजिक सौहार्द को पुनः बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. ज्ञात रहें कि सांप्रदायिकता के भुक्तभोगी हिंदू और मुस्लिम समाज का वंचित तबका ही अधिक होता है. दंगे और मॉब लिंचिंग से पीड़ित देशज पसमांदा समाज के लिए स्नेह यात्रा निश्चय ही मरहम का काम करेगी. और, उसके मनमस्तिष्क में बैठी भाजपा की नकारात्मक छवि में जरूर सकारात्मक बदलाव आएगा.
ऐसा अनुमान है कि इस पसमांदा नीति से एक ओर वंचित हिन्दू एवं वंचित पसमांदा के आपसी संबंध सुधारने का प्रयास और दूसरी ओर मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय से देशज पसमांदा को मुख्यधारा में लाने के प्रयास से भाजपा सरकार की मुस्लिम विरोधी छवि बहुत हद तक धुल भी जाएगी. और, सरकार की अंतरराष्ट्रीय छवि पहले से बेहतर होगी. फिलहाल मोदी सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी छवि के कारण उसके लोकतांत्रिक किरदार पर सवालिया निशान लगा हुआ है. समझा जाता है कि ऐसी सरकार के तहत सामाजिक शांति और स्थायित्व नहीं रह सकता.
पीएम मोदी से पहले इस देश में परंपरागत रूप से हिंदू सवर्ण और मुस्लिम अशराफ वर्ग ही सत्ता पर अपना प्रभाव रखते आ रहे थे. लेकिन, उन्होंने हिंदू समाज में सामाजिक न्याय को चरितार्थ करते हुए पहले वंचित हिंदू आदिवासी, दलित और पिछड़ों को सत्ता के गलियारे में पहुंचाना सुनिश्चित किया. और, अब बारी मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय को स्थापित कर वंचित देशज पसमांदा के उत्थान की योजना है. अब तक के अपने रणनीतियों और योजनाओं में सफल होते आए पीएम मोदी यह काम भी बखूबी कर सकते हैं. और, सही मायने में राष्ट्र उदय होगा, जहां वंचित हिंदू और वंचित पसमांदा मुख्यधारा की शोभा बनेगा.
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