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Updated: 30 अक्टूबर, 2015 03:27 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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बिहार चुनाव में कौन जीतेगा और पटाखे कहां फूटेंगे....इस बहस के बीच केरल का रुख कीजिए. नहीं, हम बीफ विवाद की बात नहीं कर रहे. विषय तो यहां भी चुनाव ही है. लेकिन इसे आप अनूठा और शायद भारतीय राजनीति में अपनी तरह का पहला प्रयोग कह सकते हैं, जहां एक प्राइवेट कंपनी ही चुनावी मैदान में कूद पड़ी है. भारत की ज्यादातर पार्टियों की छवि और उनके काम का अंदाज परंपरागत रहा है. पिछले 50-60 वर्षों में कई पार्टियों ने जन्म लिया. लेकिन उनमें से ज्यादातर कहीं न कहीं किसी दूसरी पुरानी पार्टी से टूटीं और अपनी जमीन तलाशने में सफल हुई. अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने जरूर ज्यादा सुनियोजित तरीके से राजनीति में प्रवेश किया.

खैर, अब बात उस कंपनी की जो केरल के पंचायत चुनाव में भाग्य आजमाने उतरी है. वैसे, कंपनियों या प्राइवेट फर्म के अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव में हिस्सा लेने की चर्चा हमेशा से होती रही है. धनबल या किसी खास पार्टी को अघोषित समर्थन देकर. खुल कर भले ही कोई पार्टी इसका दावा नहीं करती हो लेकिन अंदरखाने तो यह बातें चलती ही रहती हैं. अचानक रातों-रात हमारे चुनाव यूं ही तो इतने हाईटेक नहीं हो गए. कहीं न कहीं कुछ झोल होता रहता है, यह सभी जानते हैं.

केरल के एर्नाकुलम जिले में 5 नवंबर को पंचायत चुनाव के तहत वोट डाले जाने हैं. लेकिन यहां की एक गारमेंट कंपनी अन्ना-किटेक्स ग्रुप ने इस पंचायत चुनाव में अपने उम्मीदवार उतार कर एक नई रवायत शुरू की है. कंपनी ने किझाक्कांबलम ग्राम पंचायत के सभी 19 वार्डो पर 'ट्वेंटी20' के बैनर तले अपने प्रतिनिधि खड़े किए हैं. दरअसल, 'ट्वेंटी20' कंपनी की चैरिटेबल संस्था है जिसका निर्माण उसने 2013 में किया था. उसके सभी उम्मीदवार इसी संस्था से हैं. यह संस्था कंपनी के कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) के तहत काम करती है. अब सवाल यहीं से खड़ा होता है. CSR और चुनाव दो अलग-अलग चीजें हैं. चुनाव दरअसल पूरी तरह से एक राजनीतिक प्रक्रिया है. तो क्या राजनीति को भी CSR के दायरे में लाया जा सकता है? यह बहस का हिस्सा है. संविधान के जानकार इसकी बेहतर विवेचना कर सकते हैं.

किटेक्स ग्रुप केरल की सबसे बड़ी गारमेंट कंपनी है. इसके 15,000 कर्मचारी हैं और कंपनी का सलाना टर्नओवर करीब 1000 करोड़ रुपये है. कंपनी के उम्मीदवार दावा कर रहे हैं कि वे अगर जीत हासिल करते हैं तो किझाक्कांबलम गांव को आदर्श गांव में तब्दील कर देंगे. जबकि विरोधी उम्मीदवार और पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि कंपनी अपने बिजनेस के हितों को देखते हुए पंचायत पर अपना अधिकार जमाना चाहती है.

मौजूदा समय में इस पंचायत पर कांग्रेस का कब्जा है. कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कंपनी कुछ मसलों पर पंचायत के फैसलों से नाराज थी. मसलन, पंचायत ने जल-प्रदूषण और कुछ अन्य मुद्दों के कारण कंपनी को लाइसेंस देने से मना कर दिया था. पंचायत से कुछ और विवाद भी होते रहे. बस, कंपनी ने इससे निपटने का दूसरा रास्ता निकाल लिया. लेकिन किटेक्स ग्रुप की यह कोशिश किस हद तक कामयाब होगी, यह देखने वाली बात है.

कंपनी का यह प्रयोग अगर सफल होता है तो भारत का लोकतांत्रिक भविष्य क्या होगा, इस पर अभी से बहस जरूरी है. क्या कंपनियां पंचायत चुनाव से ऊपर उठकर विधान सभा या लोक सभा की ओर भी रुख कर सकती हैं? एक दूसरी संस्था बनाकर अगर कोई कंपनी सीधे तौर पर चुनावों में उतरने लगी तो क्या होगा? यह डराने वाली बात है या कोई बेहतर शुरुआत? इन सभी पहलुओं पर चर्चा करनी होगी. वैसे यह भी दिलचस्प है कि किसी प्राइवेट कंपनी के चुनाव में उतरने की शुरुआत भी उस राज्य से हुई जहां वामपंथ का बोलबाला रहा है!

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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