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Updated: 13 जनवरी, 2021 12:42 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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2014 में जिस वक्त पीएम मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, राजनीतिक पंडितों का एक वर्ग था जिसने तमाम तरह के विमर्श किये और नतीजा ये निकाला कि भाजपा की इस जीत और जिस तरह देश मोदीमय हुआ है उसके दूरगामी परिणाम सिर्फ भाजपा के पक्ष में होंगे. ऐसा ही हुआ. हम केंद्र की बात नहीं करेंगे मगर राज्यों का जिक्र जरूर होगा. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव उपरोक्त कयासों की बानगी भर था. सूबे की जनता ने एक क्षेत्रीय दल के रूप में समाजवादी पार्टी को सिरे से खारिज किया और भाजपा को बहुमत दिया. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हुए. 2022 में फिर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं. अखिलेश कहां हैं? किसी को कोई खबर नहीं है. बसपा की भी हालत किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में विपक्ष के नाम पर सिर्फ कांग्रेस है.

उत्तर प्रदेश में यदि कोई दल भाजपा और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की नीतियों की आलोचना कर रहा है तो वो केवल और केवल कांग्रेस है. ऐसा क्यों हुआ? बात वजहों की हो तो प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने और उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालने को एक बड़ी वजह के रूप में देखा जा सकता है. कहना गलत नहीं है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रियंका गांधी ने अपने अथक प्रयासों और मेहनत से वो कर दिखाया है जिसकी कल्पना न तो राहुल गांधी ने की. और जिसके बारे में सानिया गांधी ने भी शायद ही कभी सोचा हो. 

Priyanka Gandhi, Birthday, Congress, UP, Yogi Adityanath, Opposition, BJP, उत्तर प्रदेश के अंतर्गत जैसे प्रयास प्रियंका गांधी के हैं उन्हें शायद ही कोई हलके में ले पाए

आलोचक भले ही प्रियंका गांधी और उनके प्रयासों को 'फेलियर' बता कर खारिज कर दें. मगर इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि केंद्र के अलावा तमाम राज्यों में मर चुकी कांग्रेस को यदि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में किसी ने संजीवनी दी है तो वो सिर्फ प्रियंका ही हैं. जिस तरह प्रियंका गांधी फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रही हैं और जैसे उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला है, राजनीतिक पंडितों का एक वर्ग वो भी है जो इस बात को लेकर एक राय रखता है कि संवाद और जनसंचार के अंतर्गत राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में बहुत अंतर है.

जैसे उनके प्रयास हैं. यदि आगामी चुनाव में कांग्रेस बतौर मुख्यमंत्री उनका नाम प्रस्तावित कर देती है तो इससे कांग्रेस को बहुत बड़ा फायदा मिलेगा. हम प्रियंका की तारीफ यूं ही नहीं कर रहे. उत्तर प्रदेश को लेकर उनका रुख कैसा है? किस रणनीति पर वो काम कर रही हैं? गर जो इस बात का अवलोकन करना हो तो कहीं और क्या ही जाना हम प्रियंका की ट्विटर प्रोफाइल का रुख कर सकते हैं. प्रियंका ट्विटर पर केवल उन मुद्दों पर फोकस करती हैं जो उत्तर प्रदेश से जुड़े होते हैं.

चाहे कोरोनाकाल में लोगों की जाती हुई नौकरियां हों बेरोजगारी हो या फिर प्रवासी मजदूर. प्रदेश के क्राइम से लेकर महिला सुरक्षा के मुद्दों तक पर जिस तरह प्रियंका गांधी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को घेरा है. कई मौके आए हैं जब हमें सीएम योगी आदित्यनाथ, राज्य सरकार और मंत्री विधायक बगले झांकते मिले हैं. जैसा रवैया राजनीति को लेकर प्रियंका का है वो मुद्दे भूलती नहीं हैं. इस बात को भी राजनीतिक पंडित उनकी एक बड़ी खासियत के रूप में देखते हैं.

बात अगर प्रियंका गांधी और भाई राहुल गांधी के बीच तुलना की हो. तो वो चीज जो प्रियंका को राहुल से अलग करती है वो ये कि वो मुद्दों को लेकर कंफ्यूज नहीं होतीं. और न ही उनकी बातों में बड़बोलापन होता है. पूर्व में दिए गए प्रियंका के किसी भी बयान को उठा लीजिये और उसी दौर में राहुल गांधी द्वारा दिये गए किसी बयान से उसकी तुलना कर लीजिए बात शीशे की तरह साफ हो जाएगी. मिलेगा कि जब प्रियंका कोई बात कहती हैं तो उसका होम वर्क उन्होंने किया होता है जोकि राहुल गांधी के मामले में नहीं होता.

कह सकते हैं कि पीएम मोदी और भाजपा को घेरने की मंशा रखने वाले राहुल गांधी अक्सर ही जल्दबाजी में होते हैं. बात आलोचना की हो तो पूर्व में तमाम मौके ऐसे आए हैं जब पति रोबर्ट वाड्रा के कारण प्रियंका की तीखी आलोचना हुई है. मगर ये प्रियंका की काबिलियत ही है कि उन्होंने अपने काम से उन अलीचनाओं को न केवल उन्नीस रखा. बल्कि उन्हें कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. जिस तरह प्रियंका ने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस बनाया हुआ है उसे उनकी यूएसपी कहना अतिश्योक्ति न होगा.

हर नेता में काबिलियत और खामियां दोनों होती हैं. प्रियंका भी इससे अछूती बिल्कुल नहीं हैं. यदि आज प्रियंका आलोचकों की आलोचना झेल रही हैं तो उसकी एक बड़ी वजह जहां कांग्रेस पार्टी है तो वहीं उनका गांधी परिवार से होना है. ध्यान रहे कि यदि आज कांग्रेस की दुर्गति हुई है तो उसकी एक बड़ी वजह गांधी परिवार की तानाशाही और वो रवैया है जिसने देश में भ्रष्टाचार को जगह दी. यानी तमाम तरह की मेहनत के बावजूद कांग्रेस ने जो कुछ भी 70 सालों में बोया था अब जब उसकी फसल काटने की बारी आई तो ये जिम्मेदारी भी प्रियंका गांधी को ही उठानी पड़ी.

बहरहाल, चूंकि प्रियंका आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी की तरफ से उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारियां निभा रही हैं. साथ ही जिस तरह वो बिखरे हुए लोगों को संगठित कर रही हैं हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि एक नागरिक के रूप में हम कमज़ोर कहकर प्रियंका को कुछ पल के लिए भले ही इग्नोर कर दें. लेकिन उनको पूर्णतः खारिज करना अपने आप में एक बड़ी मूर्खता होगी. सवाल कई हैं जिनके जवाबों के लिए हमें केवल और केवल इंतजार करना होगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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