प्रियंका गांधी का यूपी चुनाव की ओर पहला कदम पार्टी के पीछे हटने का संकेत!
प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को चुनावी गठबंधन (Alliance Politics in UP) की संभावना क्यों नजर आ रही है, जबकि सपा और बसपा (SP and BSP) ने अकेले मैदान में उतरने का ऐलान कर रखा है - क्या कांग्रेस 2022 में यूपी में सरकार बनाने के दावे से पीछे हट रही है?
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ही छवि देखी जाती रही है. ये बात अलग है कि अब तक प्रियंका गांधी वाड्रा के खाते में अब तक इंदिरा गांधी जैसी कोई उपलब्धि दर्ज नहीं हो पायी है, बल्कि राहुल गांधी का चुनाव क्षेत्र अमेठी बीजेपी नेता स्मृति ईरानी के हाथों गंवा देने का दाग भी लग चुका है.
ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान बदसलूकी की शिकार अनीता देवी से मिलने पहुंच प्रियंका गांधी वाड्रा से लखीमपुर खीरी में पत्रकारों ने जब कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में सवाल किया तो प्रियंका गांधी ने एक खास लहजे में जवाब दिया. ये लहजा इंदिरा गांधी न होकर उनके पिता राजीव गांधी का लगा.
मुख्य सवाल से पहले पत्रकारों ने पूछा - क्या वो भविष्य में चुनाव लड़ेंगी? 2019 के आम चुनाव के बाद ये सवाल प्रियंका गांधी से यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूछा गया है - जाहिर है विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर प्रियंका गांधी के जबाव से कांग्रेस की रणनीति समझने की कोशिश है. आम चुनाव के दौरान तो प्रियंका गांधी ने इस सवाल पर खूब घुमाया था. प्रियंका गांधी के लोक सभा चुनाव लड़ने के सवाल पर राहुल गांधी भी गोल मोल जवाब दे दिया करते थे.
रायबरेली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग में प्रियंका गांधी वाड्रा ने बनारस का नाम लेकर चुनाव लड़ने की चर्चा को खूब हवा भी दी. जब प्रियंका गांधी से कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने चुनाव लड़ने की बात छेड़ी तो प्रियंका गांधी ने ये कहते हुए बात को घुमा दिया कि 'वाराणसी से क्यों नहीं?' असल में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के उम्मीदवार हुआ करते हैं, लिहाजा उनके खिलाफ मैदान में उतरने की प्रियंका गांधी ने नाम की चर्चा होने लगी थी.
विधानसभा चुनाव लड़ने के सवाल प्रियंका गांधी वाड्रा बोलीं, "हम देखेंगे." जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे तो अक्सर उनकी तरफ से ये दो शब्द सुनने को जरूर मिलते रहे. कहीं भी उनका भाषण चल रहा हो, या किसी मुद्दे को लेकर कोई सवाल पूछा जाता हो, मुस्कुराते हुए वो बोल ही देते - हम देखेंगे. एक बार तो कार्टून में भी उनके कैरिकेचर का डायलॉग लिखा गया था - 'हम देख रहे थे, हम देख रहे हैं - और हम देखेंगे कि...'
अगला सवाल जब सीधे पूछ लिया गया तो प्रियंका गांधी वाड्रा थोड़ा झल्ला सी गयीं - और फिर बोलीं, "क्या मैं आपको अभी सब कुछ बता दूं?’’
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर कांग्रेस की तरफ से अक्सर ही संकेत देने की कोशिश रही है कि प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा सकता है और गाहे-ब-गाहे ये सवाल कांग्रेस नेताओं से भी पूछ लिया जाता है. यूपी में मुस्लिम वोट को रिझाने की कोशिशें प्रियंका गांधी की तरफ से तो देखने को मिली ही है, इन दिनों कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, बीएसपी से आये नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ जोर शोर से जुटे हुए हैं - जगह जगह कराया जा रहा कांग्रेस का उलेमा सम्मेलन इसी कड़ी का हिस्सा है. प्रियंका गांधी के सीएम फेस होने को लेकर पूछे जाने पर हाल ही में सलमान खुर्शीद ने भी अपनी तरफ से पॉजिटिव संकेत ही दिये थे.
सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ सपा और बसपा (SP and BSP) के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के बीच मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर प्रियंका गांधी की झल्लाहट और यूपी में गठबंधन की संभावनाओं (Alliance Politics in UP) से इनकार न करना आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीतियों में बड़े बदलाव का संकेत देने लगा है - जैसे कांग्रेस ने सरकार बनाने के मामले में कदम पीछे खींच लिया हो.
यूपी में गठबंधन की राह पर बढ़ती कांग्रेस
प्रियंका गांधी के लखीमपुर खीरी जाकर अनीता यादव से मुलाकात करने पर बीजेपी की तरफ से रिएक्शन आ गया है. योगी आदित्यनाथ सरकार में जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने कांग्रेस महासचिव को अलका राय से भी मिल लेने की सलाह दी है.
अनीता यादव केस में लखीमपुर खीरी में योगी सरकार ने एक डिप्टी एसपी के साथ कई पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया था. एक वायरल वीडियो से मालूम हुआ था कि कैसे ब्लॉक प्रमुख चुनाव में नामांकन के लिए जाने वाली समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार की प्रस्तावक अनीता यादव के साथ बदसलूकी की गयी. उनकी साड़ी खींची गयी - और हाथ पकड़ा गया.
जब सपा और बसपा यूपी में अकेले लड़ने का फैसला कर चुकी हैं तो प्रियंका गांधी भला किसके साथ गठबंधन की उम्मीद कर रही हैं?
अलका राय गाजीपुर के मोहम्मदाबाद से बीजेपी की विधायक हैं. अलका राय ने प्रियंका गांधी को कई पत्र लिखे थे और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अपने पति कृष्णानंद राय की हत्या का आरोपी बताते हुए उसके पंजाब से यूपी टांसफर किये जाने में बाधा न बनने की अपील की थी. बाद में काम तो हो गया लेकिन प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दखल से.
चूंकि अनीता यादव से मुलाकात के बाद प्रियंका गांधी ने हर महिला को बहन बताते हुए लड़ाई लड़ने की घोषणा की थी, लिहाजा बीजेपी नेता को भी अलका राय से मुलाकात का सुझाव देने का बहाना मिल गया.
सवाल ये है कि अगर प्रियंका गांधी वाड्रा लखीमपुर खीरी जाकर अनीता यादव से मिल सकती हैं, तो गाजीपुर जाकर अलका राय से क्यों नहीं?
एक सिंपल दलील ये है कि अनीता यादव भी तो कोई आम पीड़ित हैं नहीं? फिर भी अनीता यादव की लड़ाई लड़ने और इंसाफ दिलाने का प्रियंका गांधी का वादा राजनीति में पार्टी लाइन से इतर एक अच्छी पहल लगती है - और अगर एक पीड़ित के साथ ही खड़े होने की बात है तो फिर अलका राय से परहेज क्यों होनी चाहिये?
अलका राय भले ही बीजेपी के टिकट देने पर चुनाव लड़ीं और विधायक बन गयीं, लेकिन सच तो यही है कि उनको आज तक इंसाफ नहीं मिल पाया है. कृष्णानंद राय की हत्या के आरोपी छूट चुके हैं.
ऐसे में इंसाफ के इंतजार में जिस छोर पर अनीता यादव खड़ी हैं, उसी छोर पर अलका राय भी नजर आती हैं. ये ठीक है कि प्रियंका गांधी कह रही हैं कि पिछले डेढ़ साल से वो उन लोगों के साथ खड़ी हैं जो तकलीफ में हैं.
राजनीतिक वजह को अलग रख कर देखें तो प्रियंका गांधी वाड्रा नरसंहार की घटना के बाद सोनभद्र के उभ्भा के पीड़ितों तक भी पहुंची थीं - और उन्नाव में रेप की शिकार पीड़ित के परिवार तक भी. हाथरस में पुलिस प्रशासन के रुकावट डालने के बावजूद पीड़ित परिवार से मिलने घर तक पहुंच गयी थीं.
अब अगर अनीता यादव से प्रियंका गांधी लखनऊ से लखीमपुर खीरा जाकर मिलती हैं और अलका राय को लेकर मौन धारण कर लेती हैं तो इसे सिर्फ राजनीतिक नजरिये से देखा जाएगा. फिर अनीता यादव को आम पीड़ितों से अलग रख कर देखना होगा.
जुर्म की शिकार होने की बात अपनी जगह है लेकिन ये भी है कि अनीता यादव ब्लॉक प्रमुख चुनाव में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार की प्रस्तावक रहीं - ऊपर से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी प्रियंका गांधी के इस सपोर्ट का स्वागत किया है.
जैसे डॉक्टर कफील खान और CAA विरोध प्रदर्शनों में शामिल पुलिस एक्शन के शिकार मुस्लिम परिवारों के घर प्रियंका गांधी वाड्रा के दौरे को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है - क्या अनीता यादव के मामले में मंशा बिलकुल वही नहीं लगती?
अगर पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के प्रियंका गांधी का पहुंचना मुस्लिम वोट बैंक का सपोर्ट हासिल करने की कोशिश है, तो क्या अनीता यादव से कांग्रेस महासचिव की कोशिश को समाजवादी पार्टी से करीबी बढ़ाने और उसके आगे चुनावी गठबंधन की कोशिश से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता?
बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की मोर्चेबंदी
सोनिया गांधी ने पंजाब को लेकर जो फैसला लिया है वो सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ जाता है. जिस बात के विरोध के चलते एक बार अमरिंदर सिंह को सोनिया और राहुल गांधी ने दिल्ली से बैरंग लौटा दिया और जिस बात के लिए उनको चिट्ठी लिखनी पड़ी वो भी नहीं मानी गयी. अमरिंदर के कट्टर विरोधी नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने अमरिंदर सिंह से पांच साल पुराना हिसाब भले ही बराबर कर लिया हो, लेकिन चुनाव के मुहाने पर खड़ी पार्टी के लिए जोखिम बढ़ा दी है.
अब न तो अमरिंदर सिंह खुल कर चुनावी लड़ाई लड़ सकेंगे, न ही सिद्धू की तरफ से मिल जुल कर काम करने की कोई कोशिश होगी. कदम कदम पर दोनों मनमानी करेंगे और नतीजे भी वही आएंगे जैसी लड़ाई लड़ी जाएगी.
एक तरफ तो कांग्रेस नेतृत्व जगह जगह को सत्ता हासिल करने से रोकने की कोशिश में जुटा लगता है, लेकिन पंजाब में तो कुल्हाड़ी पर ही पैर दे मारा है - कांग्रेस नेतृत्व के इस फैसले ने पंजाब की बाजी छीन लेने को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में नयी रेस शुरू करा दी है.
पंजाब के साथ ही उत्तर प्रदेश में होने जा रहे चुनाव में तो लगता है जैसे कांग्रेस अपना कदम पीछे खींच लेने का फैसला कर चुकी हो. पहले तो लगता था कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना कर बीजेपी को शिकस्त देते हुए सत्ता हासिल करने की कोशिश करेगी, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के यूपी में गठबंधन की संभावनाएं तलाशते नजर आने के बाद तस्वीर बहुत धुंधली नहीं लग रही है.
आम चुनाव के बाद से राज्यों के विधानसभा चुनावों में हर जगह अलग अलग स्टैटेजी अपनाती नजर आयी है. महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ चुनाव लड़ी और हरियाणा में अपने दम पर, लेकिन फिर झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम के साथ. दिल्ली चुनाव आते आते ऐसा लगा जैसे रस्म अदायगी हो रही हो. दिल्ली में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने ज्वाइंट रैली करने जैसे प्रयोग किये, लेकिन ऐसा लगा जैसे अंदर ही अंदर कांग्रेस आम आदमी पार्टी से गठबंधन न करने के बावजूद अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट कर रही हो - सत्ता मिले न मिले, बीजेपी को तो कतई न मिले.
महाराष्ट्र और झारखंड की तरह बीजेपी ने हाल ही में तमिलनाडु में भी डीएमके के साथ गठबंधन किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का स्टैंड दिल्ली जैसा ही नजर आया. चुनावी गठबंधन तो कांग्रेस ने असम में भी किया था और केरल में पहले से ही रहा है. कहने को चुनावी गठबंधन तो पश्चिम बंगाल में भी हुआ था लेफ्ट और अब्बास सिद्दीकी के साथ, लेकिन वो दिखावे जैसा ही लगा था - राहुल गांधी ने जिस तरह बंगाल चुनाव से दूरी बनाये रखी, साफ तौर पर लगा कि बीजेपी को रोकने की कवायद चल रही थी.
आम चुनाव में राहुल गांधी की सीट अमेठी गंवा देने के बाद सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान यूपी में प्रियंका गांधी की सक्रियता देखकर तो ऐसा ही लगा जैसे कांग्रेस बीजेपी को हटाकर खुद सरकार बनाने की कोशिश में हो, ताकि हार का बदला पूरा हो सके - लेकिन अब ऐसी कोई संभावना न के बराबर लग रही है.
अब तो ऐसा लगता है जैसे लखीमपुर खीरी पहुंच कर प्रियंका गांधी वाड्रा ने फिर से अखिलेश यादव की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने का संकेत दिया और कांग्रेस महासचिव की इस पहल का स्वागत करके अखिलेश यादव से संकेत भी दे दिया है कि जरूरी नहीं की वो निराश ही करेंगे. समझा जाता है कि 2017 में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच हुआ गठबंधन राहुल गांधी के अखिलेश यादव का फोन न उठाने के चलते टूट गया था, लेकिन प्रियंका गांधी की ताजा पहल गिले शिकवे दूर करने की नयी कोशिश ही लगती है.
अगर वास्तव में प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में गठबंधन के रास्ते बीजेपी को सत्ता में लौटने से रोकने का प्रयास कर रही हैं और राहुल गांधी, सोनिया गांधी भी इस आइडिया से इत्तेफाक रखते हैं तो राजनीतिक तौर पर ये बेहतर कदम साबित हो सकता है.
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