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Updated: 19 जुलाई, 2022 05:54 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी के मामले में नुपुर शर्मा ने फिर से देशभर में दर्ज मुकदमों को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि 'नुपुर शर्मा के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने की राहत हाईकोर्ट की ओर से दी जा सकती है. हमारी चिंता है कि याचिकाकर्ता के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हों. सिर तन से जुदा की मिल रही धमकियों के मद्देनजर नुपुर शर्मा को स्टैंडिंग काउंसिल के जरिये हाईकोर्ट में पेश होने की राहत दी जाती है. नुपुर शर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमों में कार्रवाई पर रोक लगाई जाती है.'

आसान शब्दों में कहा जाए, तो सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने 10 अगस्त तक नुपुर शर्मा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. बताना जरूरी है कि नुपुर शर्मा ने नई याचिका में सुप्रीम कोर्ट की सख्त मौखिक टिप्पणियों की वजह से जान का खतरा बढ़ने की बात कही थी. और, नुपुर शर्मा की नई याचिका उन पर टिप्पणी करने वाले जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने ही दोबारा दायर की गई थी. इस बार सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनवाई के दौरान कोई मौखिक टिप्पणी नहीं की गई. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि पैगंबर टिप्पणी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने जो आज कहा, वह 1 जुलाई को क्यों नही कहा?

Prophet Remark Row why Supreme Court not grants interim relief to Nupur Sharma before Beheadding Threatsसुप्रीम कोर्ट को एक लाइन के पिछले ऑर्डर की जगह यही बातें पहले साफ कर देनी चाहिए थीं.

पहले क्यों साफ नहीं की तमाम बातें?

नुपुर शर्मा के वकील मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि '1 जुलाई को दिए गए ऑर्डर के बाद बहुत सी चीजें हुई हैं. नुपुर शर्मा को गंभीर धमकियां मिली हैं. एक शख्स के पाकिस्तान से आने की भी खबरें हैं. पटना में पकड़े गए लोगों के पास से नुपुर शर्मा का पता निकला है. नुपुर शर्मा के लिए हर जगह पर जाकर एफआईआर रद्द करवाना जान के लिए एक गंभीर खतरा है.' जिस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 'उस सीमा में हम ​​सुधार कर रहे हैं, हमारा यह इरादा नहीं था कि आपको हर जगह जाना पड़े.' इतना ही नहीं, 1 जुलाई को वैकल्पिक उपायों की बात करने वाले जजों ने इस बार ये भी साफ किया कि नुपुर शर्मा को हाईकोर्ट में खुद पेश होने की जरूरत नहीं है. बताना जरूरी है कि 1 जुलाई को की गई मौखिक टिप्पणियों को लेकर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक जमकर आलोचना हुई थी. 

जिसके बाद दोबारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जजों ने किसी भी तरह की मौखिक टिप्पणी की जगह खुद को केवल मामले के पहलुओं से ही जोड़े रखा. जबकि, पिछली सुनवाई में जजों की ओर से केवल एक लाइन का ऑर्डर देकर अपना न्यायिक दायित्व निभा लिया गया था. क्या उस समय जजों को इस्लामिक कट्टरपंथियों से मिल रही धमकियों का अंदाजा नहीं था? इतना ही नहीं, क्या सुप्रीम कोर्ट इस बात से भी अनभिज्ञ था कि नुपुर शर्मा को उनकी विचारधारा के नाम पर भी निशाना बनाया जा सकता है. क्योंकि, नूपुर शर्मा के खिलाफ उन्हीं राज्यों में मामले दर्ज हुए थे, जो विपक्षी राजनीतिक दलों की सरकार वाले हैं. पश्चिम बंगाल में तो पुलिस ने नुपुर शर्मा के खिलाफ लुकआउट नोटिस तक जारी कर दिया था. और, ये सब सुनवाई से पहले ही हो चुका था.

'सिर तन से जुदा' के विचारों ने खूब फैलाया जहर

1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने एक लाइन का ऑर्डर जारी किया था. जिसमें नुपुर शर्मा को अपने खिलाफ दर्ज मामलों को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट का रुख करने को कहा गया था. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने उस सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए उदयपुर हत्याकांड से लेकर देश के कई हिस्सों में मुस्लिमों द्वारा की गई हिंसा के लिए नुपुर शर्मा को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था. जिससे एक बड़े वर्ग में ये धारणा मजबूत हुई थी कि उदयपुर में इस्लामिक जिहादियों द्वारा गला रेत कर की गई कन्हैयालाल की हत्या, अमरावती में की गई हत्या के साथ देश के कई हिस्सों में की गई सांप्रदायिक हिंसा सही थी.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो सुप्रीम कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों से 'सिर तन से जुदा' के विचारों को परोक्ष समर्थन मिल गया था. क्योंकि, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने हिंसा को गलत नहीं ठहराया था. बल्कि, पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी करने वाली नुपुर शर्मा को ही हिंसा भड़काने का दोषी मान लिया था. जिसके बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों और इन कट्टरपंथियों के बचाव में सोशल मीडिया से लेकर सड़क पर उतरने वाले बौद्धिक वीरों ने सुप्रीम कोर्ट की इन्हीं मौखिक टिप्पणियों को लेकर खूब जहर उगला था. जिसका नतीजा ये निकला कि अजमेर की दरगाह के कुछ खादिमों समेत देशभर के कट्टरपंथियों को नुपुर शर्मा का 'सिर तन से जुदा' करने के बयान देने की ताकत पैदा हो गई. इन्हें लगने लगा कि गुस्ताख-ए-रसूल को मिलने वाली 'सिर तन से जुदा' की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने स्थापित कर दिया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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