Agnipath Scheme के उपद्रवी विरोधियों पर जुमे के दंगाइयों जैसी कार्रवाई क्यों नहीं?
जुमे की नमाज के बाद मुसलमानों द्वारा किया गया उपद्रव अराजक था. सरकारों ने उपद्रवियों के चेहरे बेनकाब किए, मास्टरमाइंडों के घरों पर बुल्डोजर चलवाए. सब ठीक है. लेकिन गुरुवार को मोदी सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ छात्रों के उपद्रव पर सरकारें खामोश बैठी रहीं. पुलिस तो ऐसी संवेदनशील नजर आई, कि पूछिए मत. क्या कोई उपद्रव जायज और दूसरा जायज होता है?
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तारीख- 16 जून 2022
दिन- जुमा (शुक्रवार) से ठीक एक दिन पहले यानी गुरुवार
देश एक बार फिर उपद्रवियों के निशाने पर है. इस बार मुद्दा रसूल की शान में गुस्ताखी न होकर नौकरी है. सेना में नौकरी. फ़ौज में भर्ती के लिए लॉन्च की गई अग्निपथ स्कीम सरकार के गले की हड्डी बन गयी है. चाहे वो बिहार हो या फिर राजस्थान यूपी से लेकर हरियाणा तक युवा सड़कों पर उतर आए हैं और इस स्कीम का विरोध कर रहे हैं. वो अलग बात है कि जो दृश्य सामने आए हैं वो विरोध न होकर उपद्रव हैं. कहीं ट्रेन की बोगी जला दी गयी है. कहीं पर लोग पटरियां उखाड़ रहे हैं. कहीं पुलिस पर पथराव हो रहा है. कहीं रोडवेज की बसों के शीशे फोड़े जा रहे हैं. हाई वे जाम करने से लेकर अपनी गतिविधियों से जनजीवन प्रभावित करने तक प्रदर्शनकारी विरोध का नाम देकर देश की संपदा को, संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. और ये सब सिर्फ इसलिए हो रहा है ताकि देश की सुरक्षा के लिए की जाने वाले नौकरी के लिए सरकार को झुकाया जा सके. इस पूरे मामले में जो सबसे दिलचस्प पक्ष है वो अलग अलग राज्य सरकारों की पुलिस का है. वो पुलिस जो जुमे को नमाज के बाद रसूल पर अभद्र टिप्पणी के खिलाफ सड़क पर उतरे मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से पीट रही थी, गोली और आंसू गैस के गोले चला रही थी आज इनकी लल्लो चप्पो में व्यस्त है. आज पुलिस का एक्शन सिर्फ एक फॉर्मेलिटी हैं और पुलिस बहुत सुलझी हुई नजर आ रही है.
सेना में भर्ती के नाम पर अग्निवीरों का प्रदर्शन तमाम तरह के सवाल खड़े करता है
विषय बहुत सीधा है. जैसे जुमे को नमाज के बाद मुसलमानों द्वारा किया गया उपद्रव अराजक है. वैसा ही गुरुवार को छात्रों का उपद्रव भी निंदनीय है. सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान कोई भी करे, बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. चूंकि इस मामले की तरह जुमे को हुई हिंसा भी प्रदर्शन से हिंसा में परिवर्तित हुई, तो ये खुद ब खुद साफ़ हो जाता है कि योजना एक जैसी ही थी और हिंसा के नाम पर सड़क पर उतरे और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोग भी एक जैसे थे. यूं भी दंगाइयों का न तो धर्म होता है न जाती वो दंगाई होते हैं, अपराधी होते हैं. सामाजिक ताना बाना बिगाड़ने वाले होते हैं.
New variant of “patriotism” to serve the nation. They literally made it #Agnipath ! pic.twitter.com/D27it9xhjQ
— The Hawk Eye (@thehawkeyex) June 16, 2022
अगर सरकार जुमे को सड़क पर उतरे दंगाइयों के पोस्टर चिपका रही है. उनके घर बुलडोजर से गिरा रही है. उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर रही है. उन्हें घरों से निकाल कर उनके ऊपर लट्ठ बजाए जा रहे हैं. तो उसे यही रुख उन लोगों के लिए भी रखना होगा जिन्होंने चाहे वो मुंगेर, सहरसा, आरा छपरा और मुजफ्फरपुर हो या फिर अलीगढ़, मेरठ, मुजफ्फरनगर और राजस्थान के अलग अलग शहरों में बवाल काटा और वो किया जिसकी इजाजत न तो कानून ही देता है और न संविधान.
जैसे जुमे के दंगे में साजिश रची गयी, छोटे छोटे पॉकेट्स से घटना के मास्टर माइंडस को गिरफ्तार किया गया, जिस तरह उनपर बुलडोजर चला सवाल ये है कि अग्निवीरों के मामले पर क्यों नहीं? जब देश में सरकार अराजक तत्वों / दंगाइयों के खिलाफ है तो उसे सिलेक्टिव होना शोभा बिलकुल भी नहीं देता है.
Where are the defence reporters who were preaching if you don't want your house demolished, don't indulge in violence. What will happen to these frustrated army aspirants now? Vehicles burnt at DC office #Agnipath https://t.co/4eSz7IrTkR
— Gargi Rawat (@GargiRawat) June 16, 2022
दंगाई चाहे किसी भी धर्म, जाति, पंथ, विचारधारा का हो सबसे माकूल बात यही है कि वो एक दंगाई है जिसकी गतिविधियां कभी भी देश और उसके हित में नहीं होंगी इसलिए पार्टी कोई भी हो, सरकारों को किसी दंगाई पर एक ही रुख रखना चाहिए. उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई वोटबैंक देखकर न की जाए.
Those who did this don't deserve to be in any Government or private service. Burning public property is unacceptable. Crime against country. Whether #Agnipath is a game changer or not, arsonists can never be #Agniveers.Opposition has to be democratic.Anarchy clearly unacceptable pic.twitter.com/nriCUC3DYM
— GAURAV C SAWANT (@gauravcsawant) June 16, 2022
सेना में भर्ती की योजना अग्निपथ के विरोध में हुई हिंसा के बीच हमने पुलिस को असहाय देखा है. शायद इसीलिए कि उपद्रवी वे युवा हैं जो वोट देकर सरकारें बनवा रहे हैं. जबकि मुसलमानों का वोट बन रही सरकारों के हक में नहीं जा रहा है. काश कि मुसलमान भी बीजेपी और उन पार्टियों को वोट दे रहे होते तो उनका भी उपद्रव सिर-आंखों पर लिया जा रहा होता.
From #FarmLaws to #Agnipath. They will protest every significant change that may help the country. Protests will not stop until every opposition party runs out of unemployed people to hit the streets. Unemployment will not end without significant changes. #catch22 @narendramodi
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) June 16, 2022
मौजूदा घटनाक्रम में हम फिर उसी बात को दोहराना चाहेंगे कि अब जब बात बुलडोजर न्याय की आ ही गयी है तो काश बुलडोजर न्याय सभी के लिए समान होता. देश की सम्पत्ति जलाने वालों के बिना जात, धर्म, पंथ, विचार और विचारधारा देखे पोस्टर चिपकाए जाते और क्षति को बिना किसी रहम के पूरी कठोरता से वसूला जाता. क्योंकि अब तक हम यही कहते और सुनते हुए आ रहे हैं कि कानून सभी के लिए समान है तो फिर अब जब कानून की परीक्षा की घड़ी है तो उसे निपक्ष रहकर दोषियों को दंड देना चाहिए. खैर, विरोध के नाम पर हिंसा की और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की कोई गुंजाईश नहीं है. जो भी ऐसा कर रहे हैं, न वो अपने धर्म का फायदा कर रहे हैं और न ही अपने मुद्दे का भला कर रहे हैं.
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