कश्मीर घाटी में जब हिंदुओं से चिनार छीना गया, वहां बबूल तो तभी उग आए थे
एक कश्मीरी पंडित ने अपनी आप बीती में वो बातें बताईं जो ये साबित करने के लिए काफी हैं कि कश्मीर की समस्या का असल कारण वहां रहने वाले लोग हैं जो आतंकवादियों को अपने घर में पनाह दे रहे हैं.
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चारों तरफ हंगामा है बरपा मोदी ये करिये मोदी वो करिये चुनाव हैं मोदी कुछ तो करेंगे ही. पाकिस्तान से बात करिये पाकिस्तान के साथ युद्ध करिये. ये शोर ये हंगामा केवल और केवल वो लोग मचा रहें है जिनके लिए कश्मीर सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा है. मैं कश्मीरी हूं. कश्मीरी हिन्दू हूं. मेरी अपनी समस्याएं हैं, क्योंकि मुझे कश्मीर में आज़ादी से रहने की अनुमति नहीं है. वो इसीलिए क्योंकि मैंने कश्मीर से प्यार किया. उसकी हर समस्या को अपनी समस्या समझा है. और जितना मैंने समझा है उससे बहुत लोग असहमत होंगे. पर आज के कश्मीर को शायद एक आम कश्मीरी हिन्दू के शब्दों की और उसके भावनाओं की सबसे ज़्यादा आवश्यकता है.
कल जब जवानों की शहादत पर पटाखे फूट रहे थे तब अभी तक जितने सवाल भी टीस की तरह मेरे मन में फूट रहे थे उनके जवाब मुझे मिल गए. मैंने कई बार कहा है राज करना और रहना इन दोनों में अंतर है. इसीलिए कश्मीर जल रहा है और वहां सड़े हुए विचारों की बू फैलने लगी है क्योंकि उनको घमंड है कि उन्होंने चिनार हमसे छीन लिया. यही है कश्मीर की समस्या. हमें ये मान लेना चाहिए कि वहां के स्थानीय लोग कश्मीर को अपना नहीं मानते अगर मानते तो वो कश्मीर को जलने नहीं देते. जब उस 8 वर्ष के बच्चे ने मेरी गाड़ी पर पत्थर फेंका तो लगा कि कश्मीर ने अब केसर के फूलों को पानी देने की जगह नफरत के बीज बोने शुरू कर दिए है ऐसे में क्या ये कहना ठीक है कि कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है?
एक कश्मीरी पंडित द्वारा बताया गया कश्मीर सेक्युलर नहीं आतंकवादी पैदा कर रहा है
किसी को मारने के बाद जश्न मनाना क्या सिखाते है ये माता-पिता अपने बच्चों को? पाकिस्तान से पहले तो इन मात-पिता को सबख सिखाया जाए जो आतंकवादियों को पैसों के लिए अपने घरों में पाल रहे हैं.
क्या सच में ये लोग कश्मीर को चाहते हैं? जो लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं उनके लिए क्या देश और क्या परिवार. समाज के हर वर्ग ने कभी ये नहीं माना कि वहां के स्थानीय लोग वहां की हर समस्या की जड़ बन गए हैं. कश्मीर जाते हुए हमारे ड्राइवर को एक 17 साल के लड़के ने कहा, जब बंद है जब हम नहीं कमा रहे हैं, तो तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? गाड़ी में लगे गुरू गोबिंद के चित्र को उठाकर एक 4 साल के बच्चे ने गाली दी और बोला कि क्यों इसकी पूजा करते हो. क्या ऐसे विचार वाले लोग कश्मीर के योग्य हैं?
इन लोगों के लिए आंसू बहाने वाले 'एलीट' लोगों ने दुनिया को सिर्फ ये पढ़ाया कि कश्मीर एक अलग देश है और कश्मीर के मुसलमानों पर केवल अत्याचार होता है. इन सभी को मेरा न्योता एक बार तो स्वीकार करना चाहिए और एक-एक घर में जाकर देखना चाहिए कि कौन कितनी समस्या में है. ये करोड़ों के कालीन पर सोने वाले शव किसी के लिए जीना नहीं जानते. मेरी मानें तो इन आतंकवादियों की लाशें भी इनके परिवारों को नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि इन्हीं लाशों को शहादत की सलामी ठोकी जाती है. बंद कर दीजिये कश्मीर की मस्जिदों में होने वाली देश-विरोधी तकरीरों को और इनके मदरसों को जहां सिर्फ नफरत करना सिखाया जाता है. आदिल अहमद डार के पिता को देखकर तो बिलकुल भी नहीं लगा कि उन्हें बेटे के जाने का कोई गम है. ऐसे पिता के विचारों पर एक सर्जिकल स्ट्राइक कर देनी चाहिए. कश्मीर की समस्या मनोवैज्ञानिक है और सामाजिक भी, इसीलिए पाकिस्तान से पहले सर्जिकल स्ट्राइक इन नकारात्मक और नफरतों के बीज बोने वालों पर हो.
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