भारत को धमकाने से पहले थोड़ा सोच लें राहिल
यह एक स्वंयसिद्ध सच है कि किसी लड़ाई की कीमत एक सैनिक से बेहतर कोई नहीं जानता है. बावजूद इसके पाक सेना प्रमुख राहिल शरीफ का भारत को धमकी देना मूर्खतापूर्ण लगता है.
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पाक सेना प्रमुख राहिल शरीफ ने पाकिस्तान के विजय दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भारत को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर हमारे दुश्मन ने कोई भी हरकत की तो उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
अब राहिल के बारे में थोड़ी रिसर्च कीजिए और आप पाएंगे कि राहिल इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना भाषा में बात करने वाले आखिरी व्यक्ति होने चाहिए. जाहिर तौर पर भारत-पाक के बीच होने वाला कोई भी युद्ध दोनों ही देशों पर असहनीय आर्थिक बोझ डालेगा. इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत ने 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए हुई जंग जीती थी. लेकिन इसके लिए चुकाई गई कीमत न सिर्फ लोगों की जानों के संदर्भ में बल्कि आर्थिक नुकसान और इसकी गुट-निरपेक्ष छवि के लिए भी बहुत नुकसानदायक साबित हुई थी.
अमेरिका-चीन के गठजोड़ द्वारा पाकिस्तान की मदद का जवाब देने के लिए भारत को व्यापक सामरिक संधि (दूसरे शब्दों में भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि) करनी पड़ी थी. जोकि इसकी गुट-निरपेक्षता को एक दिखावा साबित करती है. लड़ाई के बाद आर्थिक मोर्चे पर गंभीर असर हुआ और और हमारे गरीब तबके के लिए मुश्किलें बढ़ गईं. वास्तव में हमारे देश के इतिहास में पहली और आखिरी बार महंगाई दर 25 फीसदी को पार कर गई. इससे संकट की झड़ी लग गई और नतीजा अस्थिरता, सरकार विरोधी आंदोलनों और अंततः आपातकाल के रूप में सामने आया. तो क्या वह खर्च सहन करने योग्य था या नहीं, इसका आंकलन इतिहासकार आने वाले वर्षों में करेंगे. और यह स्पष्ट जीत थी.
लेकिन राहिल शरीफ को यह बात व्यक्तिगत तौर पर जाननी चाहिए. न सिर्फ वह सैनिकों के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं, उनके अंकल (मेजर राजा अजीज भट्टी) और भाई (मेदर शब्बीर शरीफ) पाकिस्तान के प्रसिद्ध वॉर हीरोज रहे हैं. इन दोनों ने पाकिस्तान के सर्वोच्च वीरता सम्मान निशान-ए-हैदर जीता, लेकिन मरणोपरांत. भट्टी ने 1965 में लाहौर के मोर्चे पर एक डोगराई में बर्की की जंग में जान गंवाई जबकि शब्बीर की मौत 1971 की जंग में फजिलका में हुई थी.
वास्तव में, उनके कई पाकिस्तानी फैंस एक युवा सैन्य अधिकारी की फोटो यह कहते हुए पोस्ट कर हैं कि यह राहिल शरीफ हैं, जिन्होंने 1965 में बहादुरी से लड़े. लेकिन 1965 में राहिल महज 10 साल के थे और सेना में उनकी नियुक्ति 1976 में हई थी. दरअसल यह तस्वीर उनके अंकल की है.
पाकिस्तान में शायद ही ऐसा कोई शहर जहां उनके स्वर्गीय अंकल या भाई के नाम पर कोई लैंडमार्क न हो. यहां तक कि पाकिस्तान के जानकार लोगों के मुताबिक यही कारण था कि उन्होंने नवाज शरीफ को मुशर्रफ के केस में नरमी बरतने को विवश किया क्योंकि मुशर्रफ उनके भाई के सहपाठी थे और अगर कहानियों पर यकीन करें तो, राहिल के भाई शब्बीर के अंतिम संस्कार में टूट चुके राहिल को संभालने में मुशर्रफ का हाथ था.
यह एक स्वंयसिद्ध सच है कि किसी लड़ाई की कीमत एक सैनिक से बेहतर कोई नहीं जानता है. इस मामले में हमारे सामने राहिल का उदाहरण है, जिन्हें युद्ध के कारण हुई व्यक्तिग क्षति का भी अहसास है, हालांकि वह उनके देशवासियों के लिए वीरता है. आपने उनसे युद्ध के बारे में बोलते हुए कहीं ज्यादा ऐहतियात और जिम्मेदारी भरी भाषा की उम्मीद की होगी.
(यह लेख लेखक के फेसबुक वॉल से लिया गया है.)
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