जानिए, क्यों खास हैं राहुल गांधी 2.0
आक्रामक राहुल गांधी अच्छी सेहत पाने के इच्छुक लोगों के लिए आदर्श किरदार साबित हो सकते हैं. छुट्टियों पर जाइए, और जीवन के एक नए दृष्टिकोण के साथ वापस आइये.
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राहुल गांधी अपनी चर्चित छुट्टियों से वापस आए, लेकिन एक नए प्रतिद्वंदी के साथ- राहुल गांधी 2.0. अगर भूमि अधिग्रहण पर उनका "सूट बूट की सरकार" या इंटरनेट न्यूट्रलिटी पर उनके भाषण से कहीं पहुंचा जा सकता है तो यही कि कांग्रेसी युवराज नरेंद्र मोदी सरकार से उनका विपक्ष बन लोहा लेने पूरी तैयारी से वापस आये हैं.उनका काम से गायब होना घरों आफिसों में गॉसिप का मसाला बना हुआ था. सोशल मीडिया में मज़ाक उड़ाते कितने ही पोस्टर शेयर हुए. कांग्रेस पार्टी के लोगों के लिए ये कितने ही तकलीफदेह सवालों की वजह भी बना हुआ था जो बता नहीं पाते थे कि क्यों भारतीय राजनीति के ऐसे कठिन दौर में उनका पार्टी उपाध्यक्ष गायब हो जाता है. बीजेपी ने भी इस स्थिति का खूब फायदा उठाया.
हालाँकि, दूसरी चीजों के साथ, केदारनाथ की 16 किमी की यात्रा और किसानों से मिलने के लिए देशभर के दौरे ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष हिम्मत हार गए हैं. एक नई ताजगी के साथ, राहुल गांधी मुस्तैद भाव से सबके सामने हैं. मुझे नहीं पता इन 56 दिनों में उन्होंने किससे बात की. अपनी प्रेमिका, दोस्तों, परिवार या फिर खुद से. लेकिन आक्रामक राहुल गांधी अच्छी सेहत पाने के इच्छुक लोगों के लिए आदर्श किरदार साबित हो सकते हैं. छुट्टियों पर जाइए, और जीवन के एक नए दृष्टिकोण के साथ वापस आइये. बहरहाल, ये दूसरी बात है कि आपके नियोक्ता इस आईडिया से ज्यादा खुश नहीं होंगे. यहाँ वे कारण हैं कि क्यों हमें राहुल गांधी 2.0 की प्रशंसा करनी चाहिए.
1. वे मतदाताओं के लिए एक नई उम्मीद लेकर लौटे हैं:आप उस राहुल गांधी की झलक देखिये जो 2004 में भारतीय राजनीति में कदम रखता है. उसमें इतना दम है कि वो देशभर में किसानों से भी उतनी ही सहजता से मिल रहा है जितनी आसानी से संसद में उसने इंटरनेट न्यूट्रलिटी पर अपनी बात रखी. सही कारणों से ख़बरों में बना हुआ है और उसे यही गति कायम रखनी चाहिए. शायद वो इस वीडियो में एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा दिए गए संदेश को समझ गए हैं-
2. वे युवाओं में उम्मीद वापस लेकर आये हैं:युवा नेता ने सबक सीख लिया है. गिरना लाज़िम है, लेकिन गिरकर उठना और फिर चलना मायने रखता है. हाँ, 2014 में आम चुनाव हुए थे. उसी साल के अंत में दिल्ली विधानसभा चुनाव भी हुए थे. राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर ये बड़े मसले थे. लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि वो उन्मादी भीड़ बेहतर न हो जाये. जख्म यादों में चले जायेंगे लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि एक अनिच्छुक नेता सूरज के नीचे आत्मविश्वास से भरा दिखाई पड़ता है.
3. "स्मार्टफोन पीढ़ी " के माता पिताओं के लिए भी वो एक उम्मीद लेकर आये हैं:56 दिन और एक भी ऐसी फोटो नहीं जिससे उनके बैंकाक में होने की पुष्टि की जा सके. ऐसे माहौल में जब बाल कटवाने या नाख़ून रंगने को भी लोग सोशल मीडिया में शेयर करते हैं, राहुल गांधी के "गायब" हो जाने से भी माँ बाप की इच्छाओं को बल मिला है. जिसमें वो बच्चों से गैजेट्स पर निर्भरता कम करने को कहते हैं. अभी भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर ऐसे ही मुस्तैदी से राहुल गांधी आगे बढ़ते रहे जैसा की आजकल कर रहे हैं, तो 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को कड़ा मुकाबला मिलने वाला है.
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