राहुल गांधी और राज ठाकरे दोनों एक ही नाव पर सवार हैं
राहुल गांधी के पास नेताओं से बात की फुरसत नहीं होने की शिकायतें असम और अरुणाचल से भी आई थीं. एक नेता का तो यहां तक कहना था कि जब वो बात करते हैं तो नेताओं से ज्यादा उनकी दिलचस्पी अपने डॉगी में होती है.
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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे को भी वैसे ही विरोध फेस करने पड़ रहे हैं जैसी चुनौतियों से राहुल गांधी काफी दिनों से जूझ रहे हैं. राहुल गांधी को यूपी सहित चार राज्यों में हुए चुनाव ने झटके दिये तो राज ठाकरे को बीएमसी और दूसरे नगर निगमों के नतीजों ने. हार के बाद से ही एमएनएस और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में नेता और कार्यकर्ता इनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं. महिला कांग्रेस की नेता बरखा सिंह ने तो यहां तक कह दिया है कि राहुल गांधी कोई भगवान तो हैं नहीं.
दिल्ली
दिल्ली महिला कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद अजय माकन पर बदतमीजी का आरोप लगाने और राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने वाली बरखा शुक्ला सिंह को कांग्रेस ने 6 साल के लिए पार्टी निकाल दिया है. बरखा के खिलाफ कार्रवाई पर दिल्ली कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि वो अपनी निजी शिकायतें निबटा रही हैं और पार्टी को ऐसे नाजुक वक्त में नुकसान पहुंचा रही हैं जब एमसीडी चुनाव सिर पर हैं. बीबीसी से बातचीत में बरखा ने कहा - 'सोनिया गांधी अब बीमार रहती हैं और उनकी सक्रियता कम होने के बाद पार्टी तिनका-तिनका बिखर गई है और आगे भी बिखरेगी. अगर इसे नहीं संभाला गया, तो पार्टी का नाम लेने वाला कोई नहीं होगा.'
बरखा ने राहुल गांधी पर जम कर भड़ास निकाली और बताया कि वो साल भर से कांग्रेस उपाध्यक्ष से मिलना चाहती हैं, लेकिन उनके पास वक्त नहीं है.
बरखा ने बीबीसी से कहा, 'एक साल हो गए उनसे समय मांगते हुए. उन्होंने एक बार भी ये नहीं सोचा कि एक महिला उनसे एक साल से मिलने का समय मांग रही है. आप खुदा तो नहीं हो गए ना.'
आखिर कब तक चुप रहेंगे?
दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अरविंदर सिंह लवली ने भी नेतृत्व के बारे में ऐसी ही राय जाहिर की थी. बरखा ने भी बगैर कांग्रेस नेताओं का नाम लिये एक बयान में कहा था कि वे मानते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस की अगुवाई करने के लिए मानसिक रूप से उपयुक्त नहीं है, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं और इसकी वजह उन्हें भी नहीं मालूम. बरखा के अनुसार, राहुल गांधी पार्टी के भीतर के मुद्दों पर विचार करने को लेकर अक्सर अनिच्छुक नजर आते हैं.
राहुल गांधी के पास नेताओं से बात की फुरसत नहीं होने की शिकायतें असम, और अरुणाचल से भी आई थीं. एक नेता का तो यहां तक कहना था कि जब वो बात करते हैं तो नेताओं से ज्यादा उनकी दिलचस्पी अपने डॉगी में होती है.
यूपी चुनाव में हार के बाद शीला दीक्षित के बेटे और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने भी राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाये थे. तब राहुल ने कहा था, 'हर हार के बाद आत्मविश्लेषण की बात की जाती है, लेकिन सच यही है कि आज तक विश्लेषण हुआ ही नहीं.' संदीप दीक्षित का सवाल रहा कि जब हार के लिए जिम्मेदार लोग ही उसके बारे में तहकीकात करेंगे को तो हासिल क्या होगा?
यूपी में हार की ज़िम्मेदारी को लेकर संदीप दीक्षित का कहना रहा, 'ये सबकी जिम्मेदारी बनती है. किसी को छोड़ा नहीं जा सकता, चाहे वह राहुल गांधी ही क्यों ना हों... उनकी भी जिम्मेदारी है.'
मुंबई
जिस पार्टी में नेता की जबान ही पार्टी का संविधान हो और उसके इलाके के लिए कानून की किताब हो - और नेता के एक इशारे पर उसके कार्यकर्ता लोगों पर कहर बन कर टूट पड़ते हों - वहां भी सवाल उठने लगे हैं. जहां नेता के फरमान पर कोई सवाल करने के बारे में सोचता तक न हो वहां भी बगावत का बिगुल बजने लगे तो क्या कहेंगे?
सच तो यही है कि एमएनएस चीफ राज ठाकरे को पहली बार ऐसी हकीकत से रूबरू होना पड़ा है जिसकी कभी उन्होंने शायद ही कभी कल्पना भी की होगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एमएनएस के कुछ नेताओं ने राज ठाकरे से मिल कर कार्यकर्ताओं की भावनाओं के बारे में बताया है. पता चला है कि एमएनएस कार्यकर्ता भी इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं क पार्टी के पास महाराष्ट्र की राजनीति में असर डालने वाला न तो कोई वैचारिक स्टैंड है और न ही कोई ठोस रणनीति है. एमएनएस के पास ऐसा कोई कार्यक्रम भी नहीं जिसके बूते पार्टी को आगे लेकर जाया जा सके.
सवाल है कि राज ठाकरे के सामने ऐसी चुनौती उभरी तो कैसे? इस बात का जवाब तो बीएमसी और महाराष्ट्र के नगर निगमों के नतीजे ही दे चुके हैं. एमएनस को 10 नगर निगमों में महज 13 सीटें मिल पायी हैं. पांच साल पहले पार्टी के 112 पार्षद थे. महाराष्ट्र विधानसभा में भी 2009 में उसके 13 एमएलए थे, जबकि 2014 में चुन कर आए एक मात्र विधायक ने भी फरवरी में इस्तीफा दे दिया.
क्या ये सब दक्षिण के तट से बही बयार के चलते हो रहा है? तमिलनाडु से चला सियासी तूफान दिल्ली पहुंचते पहुंचते सुनामी की शक्ल धारण कर लिया और फिर मुंबई को भी अपनी चपेट में ले लिया. लोकतंत्र में विरोध की आवाज बताती है कि सेहत ठीक है बस थोड़ा हाजमा गड़बड़ है, लेकिन शिवसेना और कांग्रेस के लिए भी हेल्थ रिपोर्ट ऐसी ही है क्या?
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