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Updated: 27 दिसम्बर, 2020 05:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर शिवसेना (Shiv Sena) के ताजा विचार भी एनसीपी नेता शरद पवार की टिप्पणी का फॉलो अप लग रहा है. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को किसी NGO जैसा बताया गया है - और ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी की ही तरह सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठाया जा रहा हो!

शिवसेना ने देश की तमाम चुनौतियों से लेकर किसान आंदोलन तक हर मुश्किल के लिए यूपीए की अगुवाई कर रहे कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. सामना के जरिये शिवसेना ने राहुल गांधी को सामने रखते हुए ये भी सवाल उठाया है कि कांग्रेस के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष भी नहीं है. ये जरूर कहा गया है कि सोनिया गांधी ने यूपीए अध्यक्ष की जिम्मेदारी को बखूबी संभाला है, लेकिन उनकी मदद करने वाले अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा अब नहीं रहे - लिहाजा कांग्रेस के अगले अध्यक्ष और यूपीए के भविष्य को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है.

सामना की ये टिप्पणी कार्यकारी संपादक संजय राउत के उस बयान को आगे बढ़ा रही है जिसमें यूपीए चेयरमैन के लिए शरद पवार की उम्मीदवारी को लेकर एनसीपी ने इंकार कर दिया था. संजय राउत का कहना रहा, 'शरद पवार में देश का नेतृत्व करने के सारे गुण हैं... पवार के पास बहुत अनुभव है और उन्हें देश के मुद्दों का ज्ञान है - वो जनता की नब्ज भी पहचानते हैं.'

मुद्दे की बात ये है कि सामना के जरिये शिवसेना की टिप्पणी को कैसे देखा जाये - यूपीए की प्रासंगिकता पर सवाल. राहुल गांधी के नेतृत्व और उसके चलते कांग्रेस के भविष्य पर सवाल. फिर ममता बनर्जी की मदद में आगे बढ़ रहे शरद पवार का साथ देने की पूरे विपक्षी खेमे के नेताओं से अपील - कुछ बातें तो सीधे सीधे समझ में आ रही हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जो साइड इफेक्ट से तैयार होने वाली हैं. राजनीति में साइड इफेक्ट से तैयार होने वाली चीजें ज्यादा खतरनाक होती हैं.

शिवसेना की नजर में राहुल गांधी VS. शरद पवार

शिवसेना के विस्तृत और आलोचनात्मक राजनीतिक निबंध पर ध्यान दें तो बीच बीच में राहुल गांधी की तारीफ भी की गयी है, लेकिन फिर बातें वही सब हैं जब जो बीजेपी की तरफ से आती हैं - जिसमें सत्ता पक्ष की जिम्मेदारियों पर सवाल उठने पर विपक्ष को ही निशाना बनाया जाता रहा है.

शिवसेना की नजर में राहुल गांधी निजी तौर पर मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपनी तरफ से काफी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं कुछ कमी रह जा रही है. शिवसेना का कहना है, किसानों के विरोध प्रदर्शन को महीना भर होने जा रहा है, लेकिन सत्ता पक्ष को इसकी फिक्र नहीं है. शिवसेना की नजर में सत्ता पक्ष इसलिए बेफिक्र हो गया है क्योंकि विपक्ष की उसे परवाह तक नहीं है. शिवसेना इसके लिए सरकार से ज्यादा विपक्ष को जिम्मेदार मानती है. शिवसेना ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के किसानों के सपोर्ट में राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालने का भी जिक्र किया है. लिखा है, प्रियंका गांधी को दिल्ली की सड़क पर हिरासत में लिया गया और राहुल गांधी का मजाक उड़ाया गया. साथ में जोड़ दिया है, महाराष्ट्र में सरकार को काम करने से रोका जा रहा है - ये पूरी तरह लोकतंत्र के खिलाफ है. 

sharad pawar, rahul gandhi, sonia gandhiराहुल गांधी और सोनिया गांधी पर निशाना शिवसेना खुद साध रही है या शरद पवार के लिए अपना कंधा मुहैया कराया है.

राहुल गांधी, शरद पवार और विपक्षी नेताओं के बाद कांग्रेस के साथियों के साथ राष्ट्रपति से मिल चुके हैं और कृषि कानूनों को वापस लेने को लेकर किसानों के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन भी सौंप चुके हैं - और अब हिंदी कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता 'वीर तुम बढ़े चलो' पर पैरोडी बना कर किसानों के प्रदर्शन का सपोर्ट किया है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक चव्हाण ने यूपीए पर शिवसेना की बातों का प्रतिकार किया है, लेकिन दिल्ली से कोई रिएक्शन नहीं आया है. अशोक चव्हाण का कहना है कि जो पार्टी यूपीए का हिस्सा नहीं है, उसे उस पर टिप्पणी करने की जरूरत नहीं होनी चाहिये. शरद पवार की राहुल गांधी को लेकर 'निरंतरता की कमी' वाली टिप्पणी पर भी दिल्ली में किसी ने कुछ भी नहीं कहा था. जो भी पलटवार हुआ वो महाराष्ट्र कांग्रेस की तरफ से ही हुआ था. कांग्रेस नेता ने अपने रिएक्शन में यहां तक कह डाला था कि ऐसा हुआ तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार के लिए ठीक नहीं होगा.

कांग्रेस नेतृत्व के इस मुद्दे पर संयम बरतने की एक बड़ी वजह ये भी लगती है कि वे चाह कर भी महाराष्ट्र सरकार से समर्थन वापस नहीं ले सकते. साल भर पहले जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर विचार विमर्श चल रहा था और तब जो कांग्रेस में डर बना हुआ था वो आज भी कायम है. तब जोरदार चर्चा रही कि कांग्रेस के सरकार बनाने की कोशिशों से दूरी बनाने का प्रयास हुआ तो कांग्रेस टूट जाएगी. अब अगर कांग्रेस ने गठबंधन से हटने का कोई फैसला लिया तो कांग्रेस टूटेगी ही नहीं, कांग्रेस के पास बचेगा क्या ये सोचने और समझने वाली बात होगी. ऐसी किसी भी कोशिश की भनक लगते ही कांग्रेस विधायक एनसीपी या शिवसेना में चले जाएंगे, ये खतरा हमेशा ही बना हुआ है.

फिलहाल ऐसा क्यों लग रहा है जैसे शरद पवार ही शिवसेना के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहे हों - और कोशिश ये हो कि राष्ट्रीय स्तर पर कुछ हाथ लगे न लगे, महाराष्ट्र में तो कांग्रेस को खत्म कर ही दिया जाये. ऐसी ही कवायद चुनावों के दौरान भी महसूस की गयी थी. एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन में भी शरद पवार का दिमाग इसी दिशा में चल रहा था, चुनावों के दौरान ऐसी कई चर्चाएं रहीं. कांग्रेस के पास तब एनसीपी के साथ गठबंधन के बगैर चुनाव लड़ने का कोई स्कोप भी नहीं लग रहा था. वैसे कांग्रेस ने जैसे महाराष्ट्र का चुनाव लड़ा वैसे ही, झारखंड और बिहार में भी गठबंधन में पीछे खड़े होकर रही, दिल्ली विधानसभा चुनावों को छोड़ कर. दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो यहां तक महसूस किया गया जैसे बीजेपी के आने के भय से कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए अपनी तरफ से मैदान ही खुला छोड़ दिया हो.

UPA प्रासंगिकता पर सवाल

शिवसेना ने सामना में देश के दोनों राजनीतिक गठबंधनों की भी तुलना करते हुए अपनी राय दी है - एनडीए में बीजेपी पूरी ताकत के साथ सत्ता में है. एनडीए के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व है और अमित शाह जैसा राजनीतिक प्रबंधक है - लेकिन यूपीए में ऐसा कोई नहीं दिखाई देता.

अव्वल तो शिवसेना ने कांग्रेस नेतृत्व या यूपीए को लेकर कोई नयी बात नहीं कही है. जो भी कहा है वे वही बातें हैं जो राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले किसी भी व्यक्ति के दिमाग में चल रही होंगी. हो सकता है, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के मन में भी कहीं न कहीं ये बातें हों. हमेशा न सही, लेकिन चुनाव नतीजों के बाद तो ये सवाल सामने उभरता ही होगा.

शिवसेना से पहले ये सारे सवाल कांग्रेस के भीतर ही उठे हैं. गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में G-23 से जुड़े कपिल सिब्बल जैसे नेताओं के मन में भी ये ही सवाल हैं - और जो चिट्ठियां सोनिया गांधी को लिखी गयी हैं उनमें भी कोई अलग चीज नहीं है. ऐसी ही बातों को लेकर कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की मौजूदगी में 5 घंटे तक मीटिंग भी कर चुकी हैं, हालांकि, मीटिंग से कोई नतीजा निकला हो ऐसा नहीं लगता. कम से कम गुलाम नबी आजाद ने मीटिंग के बाद जो कुछ कहा उससे तो ऐसा ही लगता है.

शिवसेना ने जो सवाल उठाया है वो बहुत हद तक वाजिह चिंताएं ही लगती हैं. शिवसेना की नजर में विपक्ष का जो हाल हुआ है उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता - बल्कि ये जिम्मेदारी आगे बढ़ कर विपक्ष को ही लेनी होगी.

लेकिन विरोधी दल के लिए, शिवसेना कहती है, एक सर्वमान्य नेता की जरूरत होती है, लेकिन देश का विपक्ष इस मामले में पूरी तरह दिवालिएपन के साथ हाशिये पर जा पहुंचा है. तभी तो विरोधी दलों की हैसियत किसी उजड़े हुए गांव की जमींदारी जैसी हो चली है लिहाजा कोई उसे गंभीरता से ले भी तो क्यों कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण भले कह रहे हों कि जो यूपीए में है ही नहीं उसकी टिप्पणी का क्या मतलब? लेकिन शिवसेना की तरफ से जो सवाल उठाया जा रहा है वो बेमतलब तो नहीं लगता.

वैसे यूपीए को लेकर शिवसेना अगर शरद पवार की बात कर रही है, तो एनसीपी तो यूपीए का हिस्सा है ही. वैसे शिवसेना ने देश के विपक्षी खेमे के ऐसे दलों का नाम भी गिनाया है जो यूपीए का हिस्सा नहीं हैं लेकिन देश की राजनीति पर उनका भी काफी असर है. उनमें से कई तो ऐसे भी हैं जिनका सपोर्ट सत्ता पक्ष की ओर है.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, पंजाब के बादल परिवार का अकाली दल, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी. शिवसेना ने ध्यान दिलाया है कि ये सारे राजनीतिक दल किसानों और कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी के खिलाफ हैं, लेकिन इनमें से कोई भी यूपीए में नहीं है.

शिवसेना का यही सवाल भी है - ऐसे दलों को यूपीए में शामिल किये बिना सरकार को घेरने का प्रयास कामयाब नहीं होने वाला है.

शिवसेना की बातों से ऐसा लगता है जैसे शरद पवार को अगर यूपीए का चेयरमैन बनाया जाये तो ऐसे दल भी यूपीए का हिस्सा बन सकते हैं जो राहुल गांधी के फिर से अध्यक्ष बन जाने पर ही अपना रवैया नहीं बदलने वाले हैं.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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