राहुल गांधी का तेवर और भाजपा का जोश, क्या कहता है?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद से सदस्यता खत्म हो गई हो लेकिन इसका उन्हें कोई मलाल दिखता नहीं दिख रहा है. कांग्रेस के दूसरे नेता अभिषेक मनु सिंधवी सेशन कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उपयुक्त अदालत में जाने के लिए अपनी तैयारियों में लग गए हैं.
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राहुल गांधी तेवर में हैं. दुनिया उनके तेवर देख रही है. वह कहते हैं, मैं सावरकर नहीं बल्कि गांधी हूं और गांधी कभी माफी नहीं मांगते. मोदी सरनेम को लेकर उनके बयान पर भले ही उनकी संसद से सदस्यता खत्म हो गई हो पर इसका उन्हें कोई मलाल दिखता नहीं. कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंधवी सेशन कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध उपयुक्त अदालत में जाने के लिए अपनी तैयारियों में लग गए हैं. कांग्रेस के लोग कल यानी रविवार को देश भर में सत्याग्रह करेंगे. इस सत्याग्रह से क्या निकलेगा, देखने वाली बात होगी.
कुछ चीजें आपने नोटिस की होंगी. जैसे, केजरीवाल का राहुल के समर्थन में आ जाना. बेहद तीखा बयान देना. तेजस्वी, केसीआर, ममता बनर्जी, ललन सिंह, अखिलेश यादव, शरद पवार जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप भी राहुल के समर्थन में आ गए हैं. माना जा रहा है कि विपक्षी एका अगर हो गई तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मुश्किल हो सकती है. वैसे, भाजपा ने एक नया शिगूफा भी छोड़ दिया है. यह शिगूफा है-मोदी सरनेम का ओबीसीकरण. बेशक राहुल गांधी ने अपने बयान में ओबीसी शब्द का जिक्र नहीं किया है.
लेकिन भाजपा ने इस शब्द को उठा लिया, सिर-माथे पर लगाया और एकसुर में तमाम प्रवक्ता बोल उठेः ओबीसी समाज का विरोध, उसे बदनाम करने की कांग्रेसी चाल नहीं चलेगी. भाजपा ओबीसी का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगी. अब इसका काट क्या हो? कांग्रेस बार-बार कह रही है कि राहुल गांधी ने ओबीसी शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया लेकिन भाजपा के प्रवक्ता हर जगह ओबीसी शब्द का उच्चारण कर रहे हैं. यूपी के चीफ मिनिस्टर ने कह ही दियाः राहुल गांधी को ओबीसी समाज से माफी मांगनी ही पड़ेगी. इसे कहते हैं राजनीति. जो बोला नहीं, वह राहुल के मुंह में डाल दिया और फिर से माफीनामे की रटन चालू.
कांग्रेस में सिर्फ राहुल ही हैं, जो फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बोल तो रहे हैं पर उनमें वह कांफिडेंस दिख नहीं रहा है. बाकी लोग भी अपने तई इसकी मुखालफत कर रहे हैं परंतु उनकी मुखालफत में वह दम नहीं जो राहुल में दिख रहा है.
अब सवाल यह उठता है कि क्या ओबीसी वाले मसले को भाजपा और धार देगी? जवाब है, हां. इसके पीछे का तर्क यह है कि देश भर में लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटर ओबीसी समाज के हैं. नरेंद्र मोदी को पता है कि इस मैजिकल नंबर का इस्तेमाल कैसे करना है. उनकी पार्टी कर भी रही है. कांग्रेस अब तक कोई काट नहीं खोज पाई है इसका और जिस तरीके से भाजपा इसे लेकर आगे बढ़ रही है, उससे तो यही लगता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा बेहद प्रमुखता के साथ ओबीसी कार्ड खेलेगी. भाजपा को इसमें मजा आता है और रस भी मिलता है. वोट मिलते हैं, सो अलग.
अब सुनिए अखिलेश यादव को. अखिलेश यादव ने शनिवार को दो टूक कहा कि अगर कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ आ जाती है तो सब मजबूत हो जाएंगे, विपक्ष स्ट्रांग हो जाएगा. फिर भाजपा का मुकाबला किया जा सकता है. चलो, एक मिनट के लिए अखिलेश की बात कांग्रेस मान भी लेती है, 2024 में भाजपा सच्चाच्युत भी हो जाती है (जिसकी कोई संभावना नहीं दिख रही है अभी) तो कांग्रेस का क्या होगा? देश की सबसे पुरानी पार्टी के दिन ऐसे हो जाएंगे कि उसे क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गलबहियां करनी पड़ेगी? ये राजनीति है और राजनीति में कभी भी, कुछ भी हो सकता है.
दरअसल, आने वाले दिनों में कांग्रेस को होशो-हवास में काम करना होगा. हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनी वाली कहावत को मानना होगा. अन्यथा, अभी राहुल की मेंबरशिप खत्म हुई है तो इसे फुलस्टॉप मानने की भूल कांग्रेस को नहीं करनी चाहिए. अगर राहुल तेवर में हैं तो भाजपा भी अटैकिंग मोड में है, जोश में है. यह सियासत को समझने वालों को बखूबी पता है.
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