राहुल गांधी कभी केजरीवाल तो कभी मोदी की नकल क्यों कर रहे हैं?
राहुल से मिलने वाले उन्हें जमीनी हकीकत समझने वाले नेता बता रहे हैं जिसे मुद्दों की गहरी समझ हो. वो देश की समस्याओं की बात कर रहे हैं और दूसरे देशों से उनकी तुलना भी कर रहे हैं. कुछ तो बात है...
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राहुल गांधी की विदेश यात्रा अक्सर उनकी छुट्टियों को लेकर चर्चित रहती है. मौजूदा दौरा काफी अलग लग रहा है. वो लोगों से मिल रहे हैं, बात कर रहे हैं और अपनी बात जोरदार तरीके से कह भी रहे हैं.
ये तो साफ है कि राहुल का दौरा खास तौर पर प्लान किया गया है - और इसके पीछे राजीव गांधी के सलाहकार रह चुके सैम पित्रोदा का दिमाग है. ऐसा क्यों लग रहा है कि राहुल गांधी कभी मोदी तो कभी केजरीवाल की स्टाइल का नकल कर रहे हैं.
कुछ कुछ मोदी जैसा
राहुल गांधी के बर्कले यूनिवर्सिटी में भाषण की तुलना मोदी के मैडिसन स्कवायर के कार्यक्रम से तुलना हो रही थी. राहुल गांधी का ये कार्यक्रम भी मोदी के शिक्षण संस्थानों में भाषण के 24 घंटे के भीतर ही रखा गया था. मोदी के कार्यक्रम को तो बेहद कामयाब बताया गया था. मोदी के इवेंट को किसी रॉक स्टार के शो जैसा देखा गया था. दिलचस्प बात ये है कि राहुल गांधी की भी विदेशों में वैसी ही तारीफ सुनने को मिल रही है.
क्या राहुल गांधी मन की बात कर रहे हैं?
राहुल गांधी फिलहाल अमेरिका में बसे भारतीयों, अमेरिकी नेताओं, यूनिवर्सिटी के छात्रों और फैकल्टी के अलावा ग्लोबल थिंकर्स और विशेषज्ञों से मिल रहे हैं. एक अमेरिकी अखबार के संपादकीय टीम से भी उन्होंने मुलाकात की है.
राहुल से मिलने वाले उन्हें जमीनी हकीकत समझने वाले नेता बता रहे हैं जिसे मुद्दों की गहरी समझ हो. वो देश की समस्याओं की बात कर रहे हैं और दूसरे देशों से उनकी तुलना भी कर रहे हैं. वो बता रहे हैं कि किस तरह भारत और अमेरिका दोनों के सामने बेरोजगारी की समस्या है. मोदी भी अपने भाषण में ऐसी ही बातें किया करते हैं. राहुल गांधी का कहना है कि जिस तरह भारत में बेरोजगारी के चलते मोदी का उभार हुआ उसी तरह अमेरिका में ट्रंप चुन कर व्हाइट हाउस पहुंचे.
राहुल गांधी भी भारत की बातों को वैसे ही उठा रहे हैं जैसे मोदी उठाया करते थे. विदेशों में मोदी प्रवासी भारतीयों की खूब तारीफ करते हैं. राहुल गांधी भी कह रहे हैं कि भारत में जब भी बड़े बदलाव हुए हैं तो उनके पीछे प्रवासी भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है.
...और कुछ केजरीवाल जैसा
राहुल गांधी लोगों से ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं. मोदी और केजरीवाल दोनों ही अपने अपने तरीके से ऐसा करते हैं. मोदी का ज्यादा जोर भव्यता पर होता है तो केजरीवाल का सादगी के साथ आम लोगों के बीच फिट होने की. राहुल गांधी दोनों ही नेताओं की कामयाब टिप्स के साथ आगे बढ़ रहे हैं.
लोग सुनने भी लगे हैं...
जब केजरीवाल ने पहली बार सरकार बनायी और कुछ ही दिन इस्तीफा दे दिये तो उनकी खूब आलोचना हुई. केजरीवाल के विरोधियों ने तो उन्हें भगोड़ा ही साबित कर दिया. केजरीवाल और उनकी टीम ने इस बात पर गौर किया और अगले चुनाव में अपनी '49 दिन की सरकार' के लिए बाकायदा बार बार माफी मांगी. केजरीवाल की माफी का ये तरीका बेहद कारगर साबित हुआ.
राहुल भी हकीकत को समझ रहे हैं. राहुल गांधी और उनकी टीम को भी मालूम तो होगा ही कि किस तरह सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाया जाता है. उनकी ऐसी छवि पेश की जाती है जैसे उन्हें न तो हालात की समझ है और न ही राजनीति में उनकी दिलचस्पी है. शायद इसीलिए राहुल ने वंशवाद की बात छेड़ी है. राहुल ने समझाने की कोशिश की है कि ये हकीकत है और इसी के साथ लोगों को उन्हें स्वीकार करना होगा. इस क्रम में वो अभिषेक बच्चन तक का उदाहरण देते हैं.
राहुल गांधी इमानदारी से सरेआम गलतियां स्वीकार कर रहे हैं. भाषण के दौरान आस्तीन चढ़ाना और एस्केप वेलॉसिटी जैसी बातें करना तो उन्होंने छोड़ ही दिया है, मोदी पर हमले भी उनके नपे तुले नजर आ रहे हैं. ऐसा लगता है राहुल गांधी केजरीवाल की स्टाइल में आये बदलाव को भी अपना चुके हैं. जिस तरह पहले केजरीवाल मोदी को कायर और मनोरोगी बताया करते थे राहुल भी उनके लिए खून की दलाली जैसी बातें करते रहे, लेकिन अब वो बात नहीं है. केजरीवाल भी संभल कर बातें कर रहे हैं और राहुल गांधी भी. अब मोदी की बात करते वक्त राहुल गांधी तंज भी कसते हैं और तारीफ भी करते हैं. राहुल गांधी साफ साफ स्वीकार कर रहे हैं कि कांग्रेस के बड़े नेताओं गलतियां हुईं. राहुल तो यहां तक कहते हैं कि 2012 में कांग्रेस में गुरूर आ गया था और आगे जाकर पार्टी को उसी की कीमत चुकानी पड़ी.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने कहा, "लोग हमसे नाराज थे क्योंकि हम 30 हजार नौकरियां देने का वादा पूरा नहीं कर सके." राहुल गांधी में आये इस बदलाव का क्रेडिट सैम पित्रोदा को दिया जा रहा है जो इन दिनों हर कदम पर उनके साथ हैं. सैम पित्रोदा कहते भी हैं - राहुल गांधी की नकारात्मक छवि बना दी गई है.
छुट्टियों से लौटने के बाद राहुल गांधी कुछ न कुछ धमाका तो करते ही रहे हैं - उनके विरोधियों को इस बार बड़े धमाके के लिए तैयार रहना चाहिये. जो लोग उनके लिए सोशल मीडिया पर 'पप्पू पास... ' जैसी बातें लिखते हैं, उन्हें भी शायद अपना तरीका बदलना पड़े - 'पप्पू प्रोफेसर... '
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