किसान आंदोलन के मुद्दे पर राहुल गांधी की लेटलतीफी ने दिया अकाली दल को हमले का मौका
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) किसानों के मुद्दे पर सड़क पर उतरे ही थे कि हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur) ने 84 के सिख दंगों (84 Delhi Sikh Riots) को लेकर धावा बोल दिया है - अब तो उन्हें किसान आंदोलन से पहले कांग्रेस का ही बचाव करना होगा.
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मालूम नहीं राहुल गांधी (Rahul Gandhi) देर कर देते हैं या हो जाती है. किसानों आंदोलन को तो वो पहले से ही कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी की तरह देख रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ बड़े दिनों बाद एक ऐसा मुद्दा मिला था जिस पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए बचाव करना मुश्किल हो रहा है. विरोध प्रदर्शन की मजबूत नींव रखने के मकसद से ट्रैक्टर रैली भी किये थे, लेकिन सड़क पर उतरने में काफी देर कर दी.
ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने किसानों का मुद्दा छोड़ कर कहीं और फोकस हो गये हों, वो ट्विटर पर लगातार एक्टिव रहे और अलग अलग नेताओं के साथ दो बार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिल कर ज्ञापन भी सौंपे - जब दिल्ली पुलिस ने अचानक कांग्रेस मुख्यालय के आस पास धारा 144 लागू कर दी तो भी प्रियंका गांधी ने मार्च निकाला और गिरफ्तारी भी हुई.
7 दिसंबर से कांग्रेस सांसदों की एक टीम जंतर मंतर पर धरने पर भी बैठी रही - धरने में कांग्रेस सांसदों का साथ देने शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जैसे नेता तो जंतर मंतर गये भी लेकिन राहुल गांधी या प्रियंका गांधी में से कोई झांकने तक भी नहीं गया. उलटे धरना देने वाले सांसद ही राहुल गांधी के विदेश दौरे पर चले जाने के चलते प्रियंका गांधी को आकर रिपोर्ट करते रहे.
अव्वल तो राहुल गांधी को किसानों के बीच होना चाहिये था - अगर ये मुमकिन नहीं था तो कांग्रेस सांसदों के साथ जंतर मंतर पर ही बैठ गये होते, दिन रात किसानों की तरह ही बारिश में भी डटे रहते तो लगता राहुल गांधी वास्तव में किसानों के आंदोलन का साथ दे रहे हैं.
आखिरकार, राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सड़क पर उतरे भी, राजभवन का घेराव करने लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी - और घात लगाकर ताक में बैठे अकाली दल को मौका मिल ही गया - हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur) ने कांग्रेस के खिलाफ पहले से ही खफा सिख समाज के जख्मों को उभार कर तेज हमला बोला है. हमला भी कांग्रेस की कमजोर नस पकड़ कर किया है - 1984 का दिल्ली सिख विरोधी दंगा (84 Delhi Sikh Riots)!
हरसिमरत कौर का कांग्रेस नेतृत्व पर हमला
हर विदेश दौरे के बाद राहुल गांधी में जो ताजगी और ऊर्जा नजर आती है, जल्लीकट्टू के मौके पर चेन्नई दौरे में भी दिखा. छुट्टी के बाद लौटने पर उत्साह और आत्मविश्वास से भरे राहुल गांधी ने बड़े ही दावे के साथ कहा - केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानून वापस तो लेने ही पड़ेंगे. राहुल गांधी का जोश भी वैसे ही हाई दिखा जैसा 2019 के आम चुनाव से पहले सोनिया गांधी में देखने को मिलता था जब वो कहती थीं बीजेपी को सत्ता में लौटने ही नहीं देंगे.
हरसिमरत कौर ने राहुल गांधी पर ऐसे हमला बोला है जिसमें अमित शाह का फायदा भी देखा जा सकता है - कहीं नये सियासी समीकरण तो नहीं बन रहे हैं?
चेन्नई में तमिलनाडु के लोगों के अधिकार और संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ते रहने का वादा करके लौटे राहुल गांधी दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ सड़क पर उतरे और राजभवन का घेराव किया. कांग्रेस के मार्च के दौरान अलका लांबा के घायल होने की भी खबर आयी. राहुल और प्रियंका कांग्रेस के किसान अधिकार दिवस का दिल्ली में नेतृत्व कर रहे थे जो देश भर में राजभवन घेरने के साथ मनाया गया. राहुल और प्रियंका ने इस दौरान जंतर मंतर पर किसानों के समर्थन में धरने पर बैठे कांग्रेस सांसदों से भी मुलाकात की.
कांग्रेस के वायनाड सांसद राहुल गांधी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार अपने दो-तीन मित्रों को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रही है - और, 'सरकार किसानों की सिर्फ उपेक्षा ही नहीं कर रही है, बल्कि उन्हें बर्बाद करने की साजिश भी कर रही है.' राहुल गांधी ने दोहराया कि मोदी सरकार को कृषि कानून वापस लेने ही होंगे.
मोदी-माया टूट गयी, मोदी सरकार का अहंकार भी टूटेगा लेकिन अन्नदाता का हौसला ना टूटा है, ना टूटेगा।
सरकार को कृषि विरोधी क़ानून वापस लेने ही होंगे!#SpeakUpForKisanAdhikar pic.twitter.com/xa2BhS5s2O
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 15, 2021
दिसंबर, 2020 में किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को टारगेट करते हुए राहुल गांधी ने कहा था, 'भारत में अब लोकतंत्र नहीं रह गया और जो लोग भी PM के खिलाफ खड़े होंगे... उन्हें आतंकवादी बता दिया जाएगा - चाहे वो संघ प्रमुख मोहन भागवत ही क्यों न हों.'
बाद में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व और महात्मा गांधी पर एक किताब के रिलीज के मौके पर देशभक्त और देशद्रोही होने का फर्क समझाया था - और उनका भाषण सुन कर ऐसा लगा जैसे वो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ही लेक्चर दे रहे हों.
शिरोमणि अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने लगता है, राहुल गांधी के उसी स्टैंड को आधार बनाते हुए पूरे गांधी परिवार पर हमला बोला है - राहुल के साथ साथ अकाली नेता ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी एक साथ ही लपेटा है.
हरसिमरत कौर ने किसानों के मुद्दे पर ही मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था - और बाद में अकाली दल बादल ने एनडीए से भी नाता तोड़ लिया. अकाली दल की ही तरह कृषि कानून के विरोध में नागौर से सांसद हनुमान बेनिवाल ने भी एनडीए छोड़ दिया है - और हरियाणा में JJP नेता दुष्यंत चौटाला किसी सेफ पैसेज की तलाश में हैं क्योंकि एनडीए छोड़ते ही उनकी मुश्किलें फिर से पहले की तरह बहाल हो सकती हैं.
हरसिमरत कौर बादल ने ट्विटर पर ही किसानों को लेकर राहुल गांधी से कई सवाल पूछे हैं - राहुल गांधी तब कहां थे जब किसान पंजाब में धरना दे रहे थे? वो तब कहां थे जब संसद में कृषि बिल पास हुए - कांग्रेस के 40 राज्य सभा सांसद कार्यवाही के दौरान नदारद रहे.
हरसिमरत कौर का आरोप है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी सरकार से हाथ मिलाये हुए हैं.
हरसिमरत कौर बादल ने ट्वीट करके कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर निशाना साधा. एक ट्वीट में उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी तब कहां थे जब किसान पंजाब में धरना दे रहे थे? वे तब कहां थे जब बिल संसद में पास हुए? कांग्रेस के 40 सांसद राज्यसभा की कार्यवाही से गैरमौजूद रहे. उनके पंजाब के सीएम, इस मामले में केंद्र की बीजेपी सरकार से हाथ मिलाए हुए हैं.
हरसिमरत कौर ने एक और ट्वीट में लिखा, 'पंजाबियों को खालिस्तानी करार दिये जाने के विरोध के नाम पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने या घड़ियाली आंसू बहाने से पहले राहुल गांधी को ये बताना होगा कि उनकी दादी पंजाबियों के लिए ऐसे ही शब्द का इस्तेमाल क्यों करती थीं? उनके पिता ने क्यों उनका नरसंहार कराया - और आप ने क्यों उनको नशे का आदी बताया था?'
Before doing PC & crying croc tears at why Pbis being called Khalistanis, you @RahulGandhi should tell why ur grandmother used same words for Pbis, why your father got them slaughtered & why you labelled them as drug addicts? Once u come up with ans then only talk abt Pb farmers.
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) January 15, 2021
अकाली नेता ने कांग्रेस की कमजोर नस पर हमला बोल कर सिखों में राहुल गांधी के प्रति दबी हुई नफरत को उभारने की कोशिश की है - ये ऐसा मुद्दा है जिसके उछलते ही कांग्रेस नेतृत्व को बचाव की मुद्रा में आ जाना पड़ता है और ये पहला मौका नहीं है.
लड़ाई बाद में होगी, पहले तो बचाव करना होगा
अकाली दल एनडीए छोड़ने और हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद से जैसे तैसे आगे बढ़ने का रास्ता खोज रहा था. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बड़ी ही चतुरायी से किसान आंदोलन का सपोर्ट किया और आंदोलन को दिल्ली शिफ्ट कराने में भी सफल रहे. कैप्टन अमरिंदर सिंह जानते थे कि अगर किसान आंदोलन पंजाब में ही चलता रहा तो कानून व्यवस्था की समस्या के साथ साथ अकाली दल और आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को भी राजनीति चमकाने का मौका मिल जाएगा.
हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद से अकाली दल सुर्खियों से गायब हो गया था. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म पुरस्कार लौटा कर विरोध जरूर जताया था, लेकिन किसानों के साथ लगातार बने रहने का कोई बहाना ही नहीं मिल रहा था. बीच में अकाली दल की तरफ से एक प्रतिनिधिमंडल विपक्षी खेमे के नेताओं से जरूर मिला था और किसानों सहित लोगों से जुड़े कुछ मुद्दों पर मोदी सरकार के खिलाफ एक मोर्चा बनाने की कोशिश भी की थी.
दिल्ली दंगों को लेकर जैसे ही सोनिया गांधी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग की, बीजेपी नेताओं की फौज ने कांग्रेस नेतृत्व पर धावा बोल दिया. एक एक करके बीजेपी नेता कांग्रेस नेतृत्व को 1984 के सिख दंगे की याद दिलाने लगे.
कांग्रेस पर हमले के क्रम में बीजेपी की तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वो बयान भी याद दिलाने की कोशिश हुई जिसकी तरफ अकाली नेता हरसिमरत कौर ने भी इशारा किया है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एक विवादित बयान खासा चर्चित रहा, "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलने लगती है."
ये तो पूरी तरह साफ भी है और बार बार साबित भी हो चुका है कि दिल्ली में हुए 1984 के सिख दंगों का मसला कांग्रेस की कमजोर कड़ी है - जब भी और जिस छोर से भी ये मुद्दा उठता है कांग्रेस के किसी भी नेता को जवाब देते नहीं बनता. राहुल गांधी के साथ ऐसा कई बार हो चुका है कि सिख दंगों का सवाल उठते ही खामोशी अख्तियार करनी पड़ी है.
राहुल गांधी के पास काफी समय था जब वो किसान आंदोलन में लीड ले सकते थे. नवंबर के आखिर में किसानों का जत्था दिल्ली पहुंच कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था - और उसके दस दिन बाद ही कांग्रेस सांसद जंतर मंतर पर धरने पर भी बैठ चुके थे.
अगर राहुल गांधी ने वक्त रहते किसान आंदोलन को लेकर अभी की तरह सक्रियता दिखायी होती तो कांग्रेस इस मामले में भारी पड़ सकती थी क्योंकि मोदी सरकार को अब तक कोई रास्ता नहीं सूझा है जिससे वो किसानों का आंदोलन खत्म करा सके. किसानों के साथ 9 दौर की बात हो चुकी है और अब नयी तारीख आयी है - 19 जनवरी, 2021.
मोदी सरकार किसान कानूनों में फेरबदल को तैयार लग रही है, लेकिन किसान तीनों कानूनों को वापस लेने पर अड़े हुए हैं और इसी के चलते कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है.
बीच में एक मीडिया रिपोर्ट से ये भी मालूम हुआ था कि किसान आंदोलन को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी में ही तकरार शुरू हो गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने कुछ अधिकारियों को दिल्ली सीमा पर भेज कर किसानों से बातचीत कर आंदोलन खत्म करने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन राहुल गांधी किसी भी सूरत में ये मुद्दा हाथ से जाने देने के पक्ष में नहीं हैं.
हरसिमरत कौर के हमले के बाद अगर कांग्रेस सिख दंगों के मसले पर बचाव में पीछे हटना पड़ता है तो समझ लेना होगा राहुल गांधी की देर से शुरू हुई सक्रियता ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की कोशिशों पर भी पानी फेर दिया है. पंजाब में 2022 में विधानस सभा के चुनाव होने हैं - और कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने फिलहाल सबसे बड़ी मुश्किल यही है.
वैसे हरसिमरत कौर ने जिस तरीके से राहुल गांधी को निशाना बनाया है, उसके पीछे कुछ छिपे हुए राजनीतिक समीकरणों की हलचल भी दिखायी दे रही है - कहीं पंजाब में लोहड़ी मना जाने के बाद दिल्ली में कोई नयी सियासी खिचड़ी तो नहीं पकायी जा रही है?
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