अपने बचकाने बयानों से उबर कर कब सीरियस होंगे राहुल गांधी
केरल में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने उत्तर भारतीय मतदाताओं की राजनीतिक समझ को दक्षिण भारत के मतदाताओं से कमजोर बता दिया था. उनके इस बयान पर जी-23 के असंतुष्ट नेताओं ने ही उन पर सवाल उठा दिए थे. गाहे-बगाहे राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने ही रहते हैं.
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों अपने लिए 'ठोस' सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश में चुनावी दौरों पर हैं. माना जा रहा है कि पांचों राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 'चुनाव' होगा और राहुल गांधी की फिर से ताजपोशी होगी. केरल में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने उत्तर भारतीय मतदाताओं की राजनीतिक समझ को दक्षिण भारत के मतदाताओं से कमजोर बता दिया था. उनके इस बयान पर जी-23 के असंतुष्ट नेताओं ने ही उन पर सवाल उठा दिए थे. गाहे-बगाहे राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने ही रहते हैं. हालांकि, अपने बयानों में आक्रामकता दिखाने के चक्कर में राहुल गांधी खुद का ही नुकसान कर लेते हैं. उनके बयान एक 'अपरिपक्व बालक' के बोल नजर आते हैं. वैसे, राहुल गांधी के साथ मुख्य समस्या ये है कि वह हर विषय का विशेषज्ञ बन जाते हैं. राहुल गांधी हर विषय पर टेक्निकल बातें करते हैं जिसकी काट के लिए भाजपा को कुछ नहीं करना होता है, संबंधित विषय से जुड़े लोग ही उनको खारिज कर देते हैं. सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर राहुल गांधी अपने इन बचकाने बयानों से उबर कर कब सीरियस होंगे?
2014 लोकसभा चुनावों के बाद से राहुल गांधी का एकसूत्रीय एजेंडा है- भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना. वह किसी भी मंच पर या किसी भी घटना को लेकर अचानक से आक्रामक रुख अख्तियार कर लेते हैं. बिना वक्त गंवाए वह भाजपा और नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले लेते हैं. उनके ऐसे बचकाने बयानों की एक लंबी फेहरिस्त है. वैसे, कहना गलत नही होगा कि आक्रामक रुख उनके लिए बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है. राहुल गांधी को अपने बयानों को लेकर थोड़ी गंभीरता लाने की जरूरत है. बहुत ही साधारण सी बात है कि कोई भी शख्स हर विषय का जानकार नहीं हो सकता है. अगर उसे किसी विषय पर प्रतिक्रिया देनी ही है, तो उसके बारे में थोड़ी-बहुत ही रिसर्च से भी काम चल जाता है. लेकिन, राहुल गांधी के बयानों को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि वह इस बारे में जरा सा भी ध्यान देते होंगे.
राहुल गांधी को अपने बयानों को लेकर थोड़ी गंभीरता लाने की जरूरत है.
नक्सल ऑपरेशन के जानकार
बीते शनिवार को छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में सीआरपीएएफ के 22 जवान शहीद हो गए थे और 31 जवान घायल हुए थे. इस घटना के बाद सीआरपीएएफ के वरिष्ठ अधिकारी कुलदीप सिंह ने बयान दिया था कि इसमें किसी प्रकार की इंटेलिजेंस या ऑपरेशन फेलियर नहीं था. राहुल गांधी ने इस मामले पर सैन्यबलों और नक्सल ऑपरेशंस के बड़े जानकार के रूप में बहुत ही आक्रामक तरीके से मोदी सरकार की आलोचना करनी चाही.
राहुल गांधी ने CRPF अधिकारी के बयान का हवाला देते हुए कहा कि अगर यह किसी तरह के इंटेलीजेंस फेलियर का नतीजा नहीं था, तो मौतों का 1:1 अनुपात दिखाता है कि योजना खराब तरीके से बनाई गई और इसे गलत तरीके से एग्जीक्यूट किया गया. हमारे जवान तोपों का बारूद नही हैं, जिन्हें शहीद होने के लिए भेज दिया जाए.
Mr Gandhi, though I generally refrain from commenting on Political matters, as someone who has lead operations in Kashmir, I find your tweet disrespectful to CRPF. Casualties are unavoidable in operations of such nature against elements supported by hostile neighbors. @crpfindia https://t.co/MZS10E4Dvo
— Shesh Paul Vaid (@spvaid) April 5, 2021
राहुल गांधी के इस बयान पर कश्मीर में DGP रह चुके शेष पॉल वैद ने उन्हें सुरक्षाबलों को अपमानित न करने की नसीहत दी. वैद ने लिखा कि मिस्टर गांधी, मैं आमतौर पर राजनीतिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचता हूं, मैं कश्मीर में ऐसे ऑपरेशंस में शामिल रहा हूं. ऐसे ऑपरेशंस में कई बार कामयाबी मिलती है, तो कई बार शहादत. वैसे, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस घटना में किसी इंटेलिजेंस फेलियर से इनकार किया था.
भारतीय नीतियों के विशेषज्ञ
हाल ही में अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री निकोलस बर्न्स के साथ ऑनलाइन बातचीत में राहुल गांधी ने एकबार फिर से अपरिपक्वता का प्रदर्शन कर दिया. चर्चा के विषय 'चीन और रूस की ओर से पेश किए जा रहे कठोर विचारों के खिलाफ लोकतंत्र के विचार' से इतर राहुल गांधी ने इसे भी एक चुनावी रैली समझ लिया. आलोचनाओं का पिटारा खोलकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार द्वारा भारत की संस्थाओं पर 'कब्जा' करने की बात उठा ली. उन्होंने बर्न्स से पूछा कि भारत में जो कुछ हो रहा है, उस पर अमेरिका ने चुप्पी क्यों साध रखी है?
LIVE: My interaction with Ambassador Nicholas Burns from Harvard Kennedy School. https://t.co/KZUkRnLlDg
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 2, 2021
आदत से मजबूर और भारतीय नीतियों के विशेषज्ञ के रूप में राहुल गांधी ने विदेश नीति, घरेलू राजनीति, चीन के साथ तनाव, किसान आंदोलन समेत सभी मुद्दे उठाए. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने भारत के संस्थागत ढांचे पर कब्जा कर लिया है. अगर अमेरिका लोकतंत्र के सिद्धांतों में यकीन रखता है, तो वह इस पर चुप क्यों है? राहुल गांधी को समझना चाहिए कि विदेशी नेताओं या बुद्धिजीवियों के सामने ऐसे बयान देकर मोदी सरकार पर हमला नहीं करते हैं. वह सीधे तौर पर भारत के लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा करते हैं. वैसे, वह भारत जिसने कश्मीर और चीन जैसे मुद्दों पर किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकार दिया है, वह अमेरिका के कहने पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना देगा.
भारत-चीन सीमा विवाद के समय रक्षा विशेषज्ञ
बीते साल गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से ही भारतीय और चीनी सेनाएं आमने-सामने थीं. राहुल गांधी ने गलवान की घटना के बाद सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया. उस दौरान उन्होंने एक रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर एक वीडियो जारी करते हुए सरकार पर तंज कसते हुए सवाल उठाया था कि चीन ने हमारे निहत्थे सैनिकों की हत्या करके एक बहुत बड़ा अपराध किया है. इन वीरों को बिना हथियार खतरे की ओर किसने भेजा और क्यों भेजा. कौन जिम्मेदार है?
कौन ज़िम्मेदार है? pic.twitter.com/UsRSWV6mKs
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 18, 2020
जिसका जवाब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने देते हुए कहा कि गलवान में जो जवान शहीद हुए थे, वह निहत्थे नहीं थे. उनके पास हथियार थे. जयशंकर ने उनके रक्षा संबंधी ज्ञान को बढ़ाने के लिए बताया था कि 1996 और 2005 के समझौते के कारण इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.
कोरोना काल में चिकित्सा विशेषज्ञ
राहुल गांधी कोरोना काल में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कई विशेषज्ञों से बात कर रहे थे. देश में मोदी सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन की उन्होंने भरपूर आलोचना की थी. इन तमाम चर्चाओं के जरिये राहुल गांधी किसी भी तरह सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका खोजते थे. इस दौरान राहुल गांधी एक चिकित्सा विशेषज्ञ के तौर पर हर्ड इम्युनिटी की बात कहते हुए लॉकडाउन का विरोध कर रहे थे. हालांकि, जिन राज्यों में कांग्रेस सरकार थी, वे सब मोदी सरकार के निर्देशों का पालन कर रहे थे.
Today, 10 AM onwards, watch my conversation on the #Covid19 crisis with two brilliant global health experts - Prof Ashish Jha from Harvard & Prof Johan Giesecke from the Karolinska Institute, Sweden. Available on all my social media platforms. pic.twitter.com/ptUN2dIwd8
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 27, 2020
कोरोना काल में वह लॉकडाउन का विरोध करते नजर आए और जब सरकार ने अनलॉक चालू किया, तो वह इसका भी विरोध करते हुए दिखे. बीते साल उन्होंने दो हेल्थ एक्सपर्ट से बातचीत भी की थी. जिसमें से एक प्रोफेसर जोहान ने कहा था कि लॉकडाउन हटा दीजिए. केवल बुजुर्गों का ध्यान रखिए. सबको बाहर आने दीजिए. युवा कोरोना की चपेट में आते हैं, तो जल्दी ठीक हो जाते हैं.
अर्थशास्त्र विशेषज्ञ
कोरोना काल के ही दौरान राहुल गांधी ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी से भी बातचीत की थी. पूरे कोरोना काल में वह अलग-अलग लोगों से इस महामारी से उपजने वाले हर पक्ष पर बात कर रहे थे. हालांकि, मोदी सरकार वो सारे कदम पहले से ही उठा रही थी, जिसकी चर्चा राहुल गांधी करने का प्रयास कर रहे थे. उदाहरण के तौर पर अभिजीत बनर्जी ने मोदी सरकार द्वारा लाई गई मोरेटोरियम स्कीम को अच्छा बताया था. मतलब ये है कि राहुल गांधी की चर्चा से पहले ही यह कदम उठा लिया गया था.
A conversation with Nobel Laureate, Abhijit Banerjee on the economic impact of the COVID19 crisis. https://t.co/dUrok8Wm3Q
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 5, 2020
ऐसे ही तमाम मौकों पर राहुल गांधी बचकाने बयानों से अपने और कांग्रेस के लिए बेमतलब की मुश्किलें पैदा करते नजर आए हैं. प्रधाननमंत्री बनने का सपना देखने वाले चिर युवा राहुल गांधी को अब अपने व्यवहार और बयानों में परिपक्वता लानी होगी. विपक्ष के एक बड़े नेता के तौर पर राहुल गांधी को मोदी सरकार को आलोचना की कसौटी पर कसने का पूरा अधिकार है. लेकिन, इसके लिए वह ऐसे मंचों पर सेना, विदेश नीति, घरेलू राजनीति आदि के मुद्दों पर गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं रख सकते हैं. जरूरी नहीं है कि उन्हें सबकुछ आता हो, लेकिन कंगना रनौत बनने से अच्छा है कि वह मनमोहन सिंह ही रहें. जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वहां जमीनी स्तर पर काम करें और अपने बचकाने बयानों को किनारे रखकर गंभीर राजनीति की ओर रुख करें.
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