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Updated: 17 मई, 2022 02:29 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस के चिंतन शिविर (Congress Chintan Shivir) के आखिरी दिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषण का बड़ा हिस्सा पार्टी में वरिष्ठ नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक को मिलने वाले 'बोलने के अधिकार' को समर्पित रहा. राहुल गांधी के शब्दों में कहा जाए, तो 'बोलने का अधिकार' कांग्रेस पार्टी के डीएनए (DNA) में है. जबकि, भाजपा और आरएसएस में ऐसा नहीं है. राहुल गांधी की मानें, तो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता दो टूक शब्दों में कुछ भी कहने के स्वतंत्र हैं. राहुल गांधी ने पार्टी के अंदर बातचीत को लेकर कही तमाम बातें हाल ही में भाजपा छोड़कर फिर से कांग्रेस में शामिल हुए नेता यशपाल आर्य के हवाले से कही. लेकिन, कांग्रेस के चिंतन शिवर के आखिरी ही दिन पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी नेतृत्व और कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगाकर पार्टी को 'गुड बाय' कह दिया. जिस पर सवाल उठना लाजिमी है कि 'बोलने के अधिकार' की बात कहने वाले राहुल गांधी ने सुनील जाखड़ की क्यों नहीं सुनी?

Rahul Gandhi Congress DNA right to Speak Sunil Jakharसुनील जाखड़ जैसे नेताओं की सलाह को अनसुना करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है. लेकिन, गांधी परिवार को इससे फर्क नही पड़ रहा.

चापलूसों को करीब रखता है गांधी परिवार!

पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने फेसबुक लाइव के दौरान कांग्रेस नेतृत्‍व को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. सुनील जाखड़ ने पंजाब में कांग्रेस की हार का ठीकरा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार के आसपास एकत्रित चापलूसों पर फोड़ा. सुनील जाखड़ ने बाकायदा अंबिका सोनी, हरीश रावत और हरीश चौधरी के नाम लेकर अपनी भड़ास निकाली. और, ये तमाम बातें राहुल गांधी के पार्टी के डीएनए में मौजूद उस 'बोलने के अधिकार' से मेल नहीं खाती हैं. सुनील जाखड़ ने कांग्रेस अनुशासन कमेटी की ओर से भेजे गए नोटिस को मजाक करार दिया. उन्होंने कहा, 'सोनिया गांधी बताएं कि पंजाब में मेरे पास कौन सा पद था, जो मुझे हटाया गया.' सुनील जाखड़ ने खुद को मिले नोटिस पर कांग्रेस की अनुशासन कमेटी में शामिल तारिक अनवर पर निशाना साधा.

सुनील जाखड़ ने कहा कि 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी के बारे में क्या कहूं. वह तारिक अनवर जिन्होंने सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध कर कांग्रेस छोड़ दी थी. वह शख्स आज पार्टी में अनुशासन की बात कर रहा है.' सुनील जाखड़ ने अंबिका सोनी को इंदिरा गांधी के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाली और चंडीगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली बताया. और कहा कि ऐसे लोग कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की करीबी बने हुए हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सुनील जाखड़ का इशारा साफ था कि चापलूसों से घिरे गांधी परिवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बारे में ही जानकारी नहीं है. और, इन चापलूसों की सलाह पर ही कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व अपना फैसला ले लेता है. 

कांग्रेस की विचारधारा ही कठघरे में क्यों आ गई?

राहुल गांधी ने कांग्रेस के चिंतिन शिविर में भाजपा पर लोगों को जाति और धर्म में बांटने का आरोप लगाया था. लेकिन, सुनील जाखड़ ने उनके इस आरोप पर पार्टी की विचारधारा को ही कठघरे में ला दिया. सुनील जाखड़ ने कहा कि 'जो कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताती थी. उसी पार्टी ने पंजाब की धरती सिखों और हिंदुओं के बीच भेद किया. जाति के आधार पर विभाजन के जरिये दलितों के वोट पर पाने चाहे. पंजाब जैसा राज्य धर्मनिरपेक्षता की मिसाल रहा है. लेकिन, अंबिका सोनी ने कहा कि अगर पंजाब में किसी हिंदू को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो आग लग जाएगी.' जाखड़ ने कहा कि 'कांग्रेस को इस बात की चिंता करने चाहिए कि ऐसी सोच रखने वाले नेता शीर्ष नेतृत्व के बगल में बैठकर चिंतन शिविर में चिंतन कर रहे हैं.'

पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान सुनील जाखड़ ने अंबिका सोनी के इस बयान पर तीखा निशाना साधा था. और, माना जा रहा है कि इसी वजह से जाखड़ को नोटिस जारी करते हुए कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया. लेकिन, यहां अहम सवाल यही है कि क्या अंबिका सोनी द्वारा कही गई बात ही कांग्रेस की विचारधारा थी. कांग्रेस के अंदर के सियासी हालातों को देखा जाए, तो सुनील जाखड़ की बात सच ही लगती है. क्योंकि, दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीबी नेताओं की सलाह पर ही राज्यों के फैसले लिए जाते हैं. हरीश रावत जैसे नेता प्रभारी पंजाब के बनाए जाते हैं. लेकिन, उनका पूरा ध्यान अपने राज्य के चुनाव पर रहा था. शायद जाखड़ ने सही ही कहा कि हरीश रावत ने न केवल उत्तराखंड, बल्कि पंजाब में भी कांग्रेस का बेड़ागर्क कर दिया.

कांग्रेस को क्यों है चिंता शिविर की जरूरत?

हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी सुनील जाखड़ ने कांग्रेस की हालत पर तंज कसा. जाखड़ ने कांग्रेस को 'खाट' लगाने वाले नेताओं का भी जिक्र किया. सुनील जाखड़ का कहना था कि कांग्रेस को चिंतन शिविर नहीं, बल्कि चिंता शिविर की जरूरत है. उन्होंने कांग्रेस के चिंतन शिविर पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या हकीकत में चिंतन हो रहा है? उत्तर प्रदेश में करीब 390 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को केवल 2000 वोट पड़े. और, इतने वोट पंचायत चुनाव में भी मिल जाते हैं. उत्तराखंड में कांग्रेस क्यों हार गई, उसके कारणों और कौन दोषी है पर क्या चिंतन हो रहा है. पंजाब में कांग्रेस 18 सीटों पर सिमट गई, इसके दोषी कौन थे?

सुनील जाखड़ ने ठीक ही सवाल उठाए कि पंजाब में पार्टी उनके बयानों से नहीं हारी. बल्कि, जाखड़ को नोटिस देकर कांग्रेस ने इस मामले में केवल लीपापोती करने का ही फैसला लिया. क्योंकि, जिस राज्य में किसान आंदोलन जैसे मुद्दों के साथ कांग्रेस का सत्ता में आना तय माना जा रहा हो, वहां पार्टी की हार का दोष कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार की ओर से लिए गए फैसलों को ही दिया जाएगा. वैसे, सुनील जाखड़ ने इस बात पर भी कांग्रेस का ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस कमेटियां बनाकर देश-विदेश के मुद्दों पर ऐसे चिंतन कर रही है. जैसे केंद्र में उनकी सरकार हो. जबकि, चिंतन इस बात पर होना चाहिए था कि कांग्रेस की हार के कारण क्या थे और इसके जिम्मेदार कौन थे?

क्या नेताओं को आपस में लड़ा रही है कांग्रेस?

सुनील जाखड़ ने राजस्थान का उदाहरण देते हुए कहा कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपनी सरकार बचाए रखने की चिंता सताती रहती है. क्योंकि, उनके 18 विधायक मानेसर में बैठ गए थे. सुनील जाखड़ ने खुद को नोटिस जारी किए जाने पर कहा कि मुझे पंजाब के प्रधान के पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ नजदीकी की वजह से हटाया गया. नवजोत सिंह सिद्धू को इस वजह से लाया गया कि उनकी कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ नहीं बनती है. अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को एससी मुख्यमंत्री बनाया गया. क्या कांग्रेस नेताओं को आपस में लड़ाना चाहती है? या उसने सोचने-समझने की शक्ति को आउट सोर्स कर दिया है.

वैसे, कांग्रेस के अंदर 'बोलने के अधिकार' को लेकर जागरुक कहे जाने वाली लिस्ट में सुनील जाखड़ अकेले नही हैं. गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल और असंतुष्ट गुट जी-23 भी अपनी बात रखने की वजह से पार्टी में साइडलाइन किए जा चुके हैं. गुजरात में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल लंबे अरसे से कह रहे हैं कि स्थानीय नेतृत्व की गुटबाजी उन्हें हाशिये पर रख रही है. लेकिन, राहुल गांधी और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साधे हुए हैं. कांग्रेस का असंतुष्ट गुट जी-23, जो संगठनात्मक बदलावों की मांग कर रहा है. उसकी मांगों को भी लंबे समय से लगातार नकारा जा रहा है. इसी टकराव के चलते हिमंता विस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे पार्टी छोड़ जाने नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है.

क्या कांग्रेस को निगल जाएगा उसका अहंकार?

राहुल गांधी ने चिंतन शिविर के आखिरी दिन कहा कि विचारधारा की इस लड़ाई को क्षेत्रीय पार्टियां नहीं लड़ सकती हैं. ये रीजनल पार्टियां कभी भाजपा को नहीं हरा पाएंगी. और, हमें जनता को यह बताना होगा. क्योंकि, क्षेत्रीय पार्टियों के पास कोई विचारधारा नहीं है. क्योंकि, वह जातियों पर आधारित हैं. खैर, राहुल गांधी के दावे अपनी जगह हैं. लेकिन, चिंतन शिविर में कही गई उनकी बातें ही कांग्रेस सांसद के दावों की पोल खोलती नजर आती हैं. राहुल गांधी उत्तराखंड के दलित नेता यशपाल आर्य के हवाले से अपनी बात कहते हैं. लेकिन, ये बताना भी नहीं भूले कि यशपाल आर्य दलित नेता हैं. वहीं, राज्यों में कांग्रेस की लगातार खराब हो रही हालत के बावजूद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व खुद को सुपीरियर मानते हुए क्षेत्रीय पार्टियों की अहमियत को नकारने की भूल कर रहा है. 

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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