राहुल गांधी को मध्य प्रदेश में बीजेपी से बदले का बड़ा मौका दिखाई पड़ा है
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को दक्षिण के बाद मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजनीति ही सुहावनी लग रही है, 2024 से पहले वहां बीजेपी से बदला लेने का एक मौका तो है ही - वैसे असली हिसाब-किताब तो ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) से करने का इरादा होगा.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) पहुंचने के बाद भरी पूरी लगने लगी है. ऐसा हल्का एहसास कर्नाटक में भी हुआ था, जब सोनिया गांधी ने यात्रा में राहुल गांधी के साथ मार्च किया था, लेकिन तभी से हर निगाह प्रियंका गांधी वाड्रा को खोज रही थीं - और आखिरकार इंतजार खत्म हुआ जब यात्रा की मध्य प्रदेश में एंट्री हुई.
प्रियंका गांधी वाड्रा के अब तक यात्रा से दूर रहने की वजह हिमाचल प्रदेश चुनाव में उनकी व्यस्तता बतायी गयी थी, जबकि खबर ये भी रही कि सोनिया गांधी के अगले ही दिन वो कर्नाटक में ही यात्रा में शामिल होने वाली थीं - वैसे मीडिया में जो कवरेज मध्य प्रदेश में मिला है, कर्नाटक में कहां संभव था.
और प्रियंका गांधी ने भी भारत जोड़ो यात्रा को छप्पर फाड़ समर्थन दिया है. राहुल गांधी के स्वागत में वो अकेले नहीं बल्कि पति रॉबर्ट वाड्रा और बेटे रेहान के साथ पहुंची हैं. हो सकता है, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश में यात्रा के पड़ावों पर सोनिया गांधी की कमी खल रही हो, लेकिन एक साथ पूरे गांधी परिवार को देखने का मौका तो काफी देर बाद मिला है. पहले ऐसा नजारा अमेठी और रायबरेली में चुनावों के दौरान ही देखने को मिला करता रहा - हो सकता है प्रियंका गांधी के बाद ये रॉबर्ट वाड्रा को भी राजनीति में लाये जाने की रणनीति हो. वैसे भी रॉबर्ट वाड्रा तो राजनीति में आने को लेकर कई बार हड़बड़ी दिखा चुके हैं.
वाड्रा परिवार के अलावा यात्रा में सचिन पायलट की मौजूदगी ने भी सबका ध्यान खींचा है, और उसकी चर्चा गुजरात चुनाव में व्यस्त अशोक गहलोत की राजनीति से जोड़ कर होने लगी है. कांग्रेस नेता कमलनाथ को तो शुभ मौके का इंतजार रहा ही होगा, दिग्विजय सिंह को बड़े दिनों पर घर लौटना खुशगवार ही लगा होगा - मौजूदगी तो कन्हैया कुमार ने भी दर्ज करायी है, जिनके बारे में यात्रा के प्रचार प्रसार का काम देख रहे जयराम रमेश कह चुके हैं कि राहुल गांधी के बाद सबसे लोकप्रिय कन्हैया कुमार ही पूरे यात्रा में नजर आ रहे हैं. कन्हैया कुमार की काफी डिमांड बतायी जा रही है.
मध्य प्रदेश में कांग्रेसियों की भीड़ देख कर गदगद राहुल गांधी खुशी से उछल उठे. और कहने लगे कि मध्यप्र देश ने पहले ही दिन महाराष्ट्र की यात्रा को हरा दिया. बोले, 'मैं मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को A ग्रेड देता हूं... दिल से धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने यात्रा को ऑर्गनाइज किया, साथ दिया.
यात्रा के पड़ावों पर राहुल गांधी बीच बीच में छोटे छोटे किस्से या लोगों से हुआ बातचीत के अंश भी सुनाते रहते हैं, 'कमलनाथ जी ने मुझसे कहा कि आप थकते नही है? मैंने कहा दो हजार किलोमीटर चला हूं पर थका नहीं... बिल्कुल थका नहीं. सुबह उठता हूं... छह बजे, जिस तेजी से चलता हूं, उससे ज्यादा स्पीड से रात आठ बजे चलता हूं... यात्रा में हम आठ घंटे चलते हैं.'
और न थकने का राज भी बताया, जिसमें निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मन की बात' कार्यक्रम नजर आया. बोले, 'मैं ज्यादा टाइम चुप रहता हूं... मैं आपसे दो-तीन सवाल पूछता हूं, 15 से 20 मिनट बोलता हूं... मतलब, आठ घंटे आपके मन और 15 मिनट मेरे मन की बात चलती है.'
भारत जोड़ो यात्रा का मकसद समझाने के लिए राहुल गांधी ने संघ और बीजेपी को निशाना बनाया और ये भी समझाया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार क्यों और कैसे गिर गयी. ये बताने का अंदाज भी ऐसा रहा कि राहुल गांधी के निशाने पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ही नजर आ रहे थे. राहुल गांधी का कहना रहा, 'मध्य प्रदेश में हम चुनाव जीत गये... करोड़ों रुपये खर्च करके हमारे 20-25 विधायक खरीद लिये गये और सरकार बना ली...'
और फिर जो बातें कही, ऐसा लगा जैसे 2018 के लिए कांग्रेस के चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक रहे हों, 'हमने सड़क पर उतरकर यात्रा करने का फैसला किया... कुछ विधायकों को खरीद कर बीजेपी ने गलतफहमी पाल ली कि हमें लोगों के दिलों से दूर कर दिया... रुपयों में ईमान बिकता होगा... प्यार और विश्वास नहीं... जनता खुद जवाब देगी.'
बदले का मौका तो है!
पहले दिन मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने करीब 27 किमी की यात्रा की है - और बुरहानपुर की सार्वजनिक सभा में पहली बार अपने पुराने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी निशाना बनाया, लेकिन बगैर नाम लिये ही. सिंधिया समर्थक विधायकों को भ्रष्ट बता कर. ये वे विधायक हैं जो कांग्रेस छोड़ कर सिंधिया के साथ बीजेपी में चले गये थे और उनमें से बहुतों मंत्री बना दिया गया था. विधायकों के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हुए तो वे बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंच गये.
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश मे साल भर पहले ही चुनावी रैली शुरू कर दी है
मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा के दाखिल होते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लेकर राहुल गांधी ने कांग्रेस के चुनावी एक्शन प्लान की तरफ इशारा तो किया ही हैं - भले ही अब भी कॉलेज के जमाने के अपने खास दोस्त सिंधिया का खुल कर नाम नहीं ले पा रहे हों, लेकिन 'भ्रष्ट विधायकों' का जिक्र कर टारगेट तो सिंधिया को ही किया है. ये तो हर किसी को समझ में आता है.
ठीक पांच साल बाद कांग्रेस मध्य प्रदेश के मैदान में वैसे ही एंट्री ले सकती है जैसे 2017 में लिया था. सत्ता विरोधी फैक्टर तो एक बार फिर बीजेपी के खिलाफ काम करेगा. बीजेपी में भी शिवराज सिंह चौहान के ही खिलाफ होगा. हो सकता है, बीजेपी चुनावों से पहले उत्तराखंड और गुजरात और त्रिपुरा जैसे प्रयोग मध्य प्रदेश में भी करे - और शिवराज सिंह चौहान को बीएस येदियुरप्पा जैसी भूमिका में लाया जाये, बशर्ते मार्गदर्शक मंडल भेजने का अभी कोई इरादा न हो तो.
मध्य प्रदेश में बीजेपी की तरफ से एक दावेदार तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी होंगे ही. हिमंत बिस्वा सरमा के मिसाल बनने के बाद सिंधिया को इतनी उम्मीद तो करनी ही चाहिये, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि अंदर ही अंदर भले ही फैसला हो चुका था, लेकिन बीजेपी ने हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री चुनाव जीतने के बाद ही बनाया था.
सिंधिया बीजेपी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की रेस में हो या न हों, लेकिन कोई दो राय नहीं कि वो राहुल गांधी के दिमाग में नहीं होंगे - और ये भी मान कर ही चलना चाहिये कि आने वाले 2028 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और उनकी टीम के निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ही होंगे.
राहुल गांधी अपनी एक जिद तो पूरी ही कर चुके हैं. ये जिद भी मल्लिकार्जुन खड़गे को कमान सौंपा जाना नहीं, बल्कि राहुल गांधी का खुद कांग्रेस अध्यक्ष न बनना है. जाहिर है अगला कदम बीजेपी से बदले का ही टारगेट होगा. मध्य प्रदेश की राजनीतिक जमीन राहुल गांधी के लिए बीजेपी से बदले के काफी माकूल भी लगती है.
सिंधिया को लेकर इससे पहले राहुल गांधी का कहना रहा है कि उनको अपने भविष्य की फिक्र थी और कुछ निजी चिंताएं, इसीलिए विचारधारा से समझौता करते हुए वो बीजेपी में चले गये. बाद में सिंधिया जैसे नेताओं को राहुल गांधी ने डरपोक बताया था. राहुल गांधी ने अपनी टीम को सलाह दी थी कि ऐसे लोगों को वे जाने दें - और बाहर से निडर नेताओं को कांग्रेस में लाया जाना चाहिये. भले ही वे संघ और बीजेपी में ही क्यों न हों.
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के साथ एक ऐसे नेता भी साथ साथ चलते देखे गये हैं, नाना पटोले. नाना पटोले महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और पहले बीजेपी के नागपुर से सांसद हुआ करते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेकर विरोध करने के लिए वो चर्चित रहे हैं - और ये बात ही राहुल गांधी के मन को छू जाती है.
जिस तरह से परिवार और पार्टी के पूरे लाव लश्कर के साथ राहुल गांधी मध्य प्रदेश में मार्च कर रहे हैं, चुनावी इरादा समझना बहुत मुश्किल नहीं लगता. चुनाव तो गुजरात में भी है, और हिमाचल प्रदेश में भी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही हुआ है, लेकिन राहुल गांधी दूर ही रहे हैं. गुजरात में तो एक दिन चुनाव प्रचार किया भी है, लेकिन हिमाचल प्रदेश तो झांकने तक नहीं गये.
हो सकता है राहुल गांधी और उनकी कोर टिम को पहले ही लग गया हो कि गुजरात में दाल तो गलने वाली नहीं है. हिमाचल प्रदेश में भी चांस कम ही दिखे हों. एक वजह आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की हद से ज्यादा सक्रियता भी हो सकती है - वैसे भी गुजरात में कांग्रेस के मुकाबले अभी से ही आम आदमी पार्टी को ज्यादा मजबूत देखा जाने लगा है.
मध्य प्रदेश को लेकर एक दलील तो बनती ही है. मध्य प्रदेश में तैयारी के लिए अभी पूरा वक्त भी है. करीब साल भर का समय भी बचा हुआ है - और भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक बनाये गये दिग्विजय सिंह के फंसे होने के चलते कमलनाथ को पहले से ही मध्य प्रदेश पर फोकस करने को बोला जा चुका है.
ये यात्रा का चुनावी हिस्सा है
निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पिछली बार की ही तरह दिग्विजय सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी, लेकिन दारोमदार तो कमलनाथ पर ही होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से चले जाने और दिग्विजय सिंह के लगभग दिल्ली अटैच हो जाने के बाद कमलनाथ को तो खुला मैदान ही मिल गया है.
2020 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कमलनाथ के एक बयान ने सत्ता के गलियारों में सबका ध्यान खींचा था, "आज के बाद कल - और कल के बाद परसों भी आता है..."
कल तो कब का बीत चुका है, राहुल गांधी की नजर अब परसों पर ही टिकी लगती है. कांग्रेस नेताओं की पूरी कोशिश लगती है कि राहुल गांधी एक बार फिर 2018 जैसा ही चमत्कार दिखा दें, तभी तो दक्षिण भारत के बाद भारत जोड़ो यात्रा में सबसे ज्यादा तामझाम मध्य प्रदेश की सड़कों पर भी नजर आ रहा है.
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी यात्रा के आधे रास्ते तय कर लेने के बाद दाखिल हुए हैं. 78वें दिन. ये यात्रा 7 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई थी - और 150 दिन बाद कश्मीर जाकर समाप्त होगी.
भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र के 6 जिलों में आने वाली 17 विधानसभाओं से गुजरने वाली है. यात्रा के दौरान राहुल गांधी ओम्कारेश्वर और महाकालेश्वर का दर्शन भी करने वाले हैं - और 26 नवंबर को अंबेडकर की जन्मस्थली महू में राहुल गांधी के रैली भी करने वाले हैं.
ये इलाका कांग्रेस के लिए खास मायने रखता है क्योंकि यहीं पर मध्य प्रदेश की 66 विधानसभा सीटें हैं - और खास बात ये है कि 2018 में कांग्रेस ने आधे से भी ज्यादा 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. पिछले चुनाव में बीजेपी इलाके की 29 विधानसभा सीटें ही जीत पायी थी.
मध्य प्रदेश में 12 दिन में 380 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद गुजरात में वोटिंग से ठीक एक दिन पहले 4 दिसंबर को ये यात्रा राजस्थान का रुख करेगी - और ये देखना दिलचस्प होगा कि अशोक गहलोत अपने गढ़ में सचिन पायलट के साथ कैसे पेश आते हैं?
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