सूरत की अदालत से ही विपक्षी एकता की सूरत निकलनी थी!
सूरत की अदालत ने क्रिमिनल मानहानि के मामले में राहुल को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा क्या सुना दी मानो विपक्ष के भाग से छींका ही टूटा. अब एक आस जो बंधती दिख रही है कि कांग्रेस पीएम के लिए एक ग़ैर कांग्रेसी साझा प्रत्याशी के नाम पर सहमत हो जाए.
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देखना दिलचस्प होगा आगे होता क्या है? टेक्निकली वे ना केवल सदस्यता गंवा चुके हैं बल्कि 2024 चुनाव भी नहीं लड़ सकते. और अब तो सचिवालय ने तय प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी है. बीजेपी की सक्सेस स्टोरी जारी रहने की एक ही सूरत है विपक्ष बिखरा रहे. अभी तक विपक्ष राहुल की वजह से ही एक नहीं हो पा रहा था, उनके पीएम बनने की कोई भी सूरत भा तो नहीं रही किसी को. कहने का मतलब मोदी को हटाना है लेकिन राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नहीं .
सूरत की अदालत ने क्रिमिनल मानहानि के मामले में राहुल को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा क्या सुना दी मानो विपक्ष के भाग से छींका ही टूटा. अब एक आस जो बंधती दिख रही है कि कांग्रेस, चूंकि सूरत ही ऐसी निकाल दी है सूरत की अदालत ने, पीएम के रूप में एक ग़ैर कांग्रेसी साझा प्रत्याशी के नाम पर सहमत हो जाए. परंतु आज न्याय नए सिरे से परिभाषित हो चुका है जिसके तहत संतुलन के सिद्धांत को गुण-दोष पर तरजीह दिया जाने लगा है. दूसरे चूंकि बीजेपी चाहती है राहुल गांधी बने रहें क्योंकि यदि वे बने रहेंगे तो उनके लिए मुकाबला एकतरफा ही है.
सचिवालय ने तय प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी है
सो तय हो चला है राहुल को समुचित राहत न्याय प्रक्रिया की किसी न किसी पायदान पर मिल ही जायेगी. लेकिन विपक्ष है कि राहुल गांधी को बलि का बकरा बनाने पर तुला हुआ है. उम्मीद पाल बैठा है कि स्वयंभू बदले हुए धीर गंभीर राहुल हाई मोरल ग्राउंड लेते हुए स्वयं के गांधी होने को सार्थक करेंगे और लोकसभा की सदस्य्ता से ही इस्तीफ़ा दे देंगे और साथ ही एलान करेंगे कि वे अगला चुनाव भी नहीं लड़ेंगे. तभी तो केजरीवाल एंड पार्टी के सुर बदले हैं. सारे के सारे छत्रप “मिले सुर मेरा तुम्हारा” वाला नाटक इसलिए कर रहे हैं. ममता दीदी भी ममता दिखा रही है. उद्धव भी आराध्य सावरकार का अपमान भी बर्दास्त कर ले रहे हैं. कहने का मतलब पूरा का पूरा विपक्ष लामबंद होता दिख रहा है. आज वही अध्यादेश, जिसे राहुल ने 2013 में ‘निपट बेवक़ूफ़ी’ बताते हुए फाड़ दिया था और अपने पीएम मनमोहन सिंह जी की एक तरह से तौहीन की थी, उनके लिए मुसीबत बन गया है. दरअसल उनके लोकसभा में बने रहने से ही बीजेपी के लिए 2024 में फख्र से फ़तह निश्चित है.
यही कांग्रेस पार्टी या तो समझ नहीं रही है या समझ कर भी नासमझ बन बैठी है. पार्टी के तमाम छोटे बड़े नेता जमकर एनर्जी ही बर्बाद कर रहे हैं क्योंकि वे अनर्गल बातें कर जनता की नजरों में रही सही इज्जत भी गँवा दे रहे हैं. जबकि मामला जो है कुछ है ही नहीं. राहुल जी को गरिमा बनाये रखते हुए अदालत में माफ़ी दर्ज करा देनी चाहिए थी; कह देना चाहिए था उनका मकसद कदापि मोदी समुदाय की अवमानना करना नहीं था और यदि ऐसा प्रतीत हुआ है तो वे क्षमाप्रार्थी हैं और अपने शब्दों को वापस ले रहे हैं. अपने देश के लोगों से माफ़ी मांगने में कौन सी तौहीन होती? लेकिन उन्हें तो वीर सावरकर को नीचा दिखाना है. यदि मान भी लें रागा के सावरकर के लिए माफीवीर वाले लॉजिक को, कतिपय देशवासियों के उनके बयान से आहत होने पर उनसे माफ़ी की अपेक्षा होना और मांगना कहाँ से उस लॉजिक पर है.
जैनियों की मान्यता का अनुसरण करते हुए “मिच्छामी दुक्कड़म” यानी यदि उनके किसी भी जाने अनजाने कहे से किसी व्यक्ति को ठेस पहुंची हो तो वे क्षमा याचना करते हैं कहकर वे और महान कहलाते चूँकि 'क्षमा वीरस्य भूषणम' कहा जाता है. फिर अदालत ने कहा भी तो था कि वे माफ़ी मांग लें ! यही जो हक़दारी की फ़ितरत है, आपत्तिजनक है राहुल की चूंकि जनता की भावनाओं की विरुद्ध है. खैर! आने वाले चंद दिनों में ही चीजें स्पष्ट हो जाएंगी कि ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है. सबका , सत्ता हो या विपक्ष, अंतर शनै शनै ख़ुद ब ख़ुद एक्सपोज़ हो रहा है.
परंतु ऊपर की अदालतें सूरत की अदालत के फ़ैसले के आधारों को सिरे से ख़ारिज कर देगी, उम्मीद तो नहीं हैं चूंकि तथ्य अकाट्य जो हैं 170 पन्नों के आदेश में! माननीय अदालत कहती है, “राहुल गांधी चाहते तो अपने भाषण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी, विजय मालया, चौकसी, ललित मोदी और अनिल अंबानी तक सीमित कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ‘जानबूझकर’ ऐसा बयान दिया जिससे मोदी सरनेम वाले लोगों को ठेस पहुँची.”
सूरत कोर्ट ने राहुल कि सजा का एलान करते हुए भी कई अहम टिप्पणियाँ की,”इस अपराध की गंभीरता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि ये भाषण संसद के सदस्य ने दिया था, जिनका जनता पर गहरा प्रभाव पड़ता है. अगर उन्हें कम सजा दी जाती है तो इससे जनता में ग़लत संदेश जाएगा. इतना ही नहीं, मानहानि का मक़सद भी पूरा नहीं होगा और कोई भी किसी को भी आसानी से अपमानित कर सकेगा. 2018 में ‘चौक़ीदार चोर है’ टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें चेताया था, जिसके बाद उन्होंने माफ़ी माँग ली थी. लेकिन एससी की चेतावनी के बावजूद उनके बर्ताव में कोई बदलाव नहीं आया.”
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