गुजरात चुनाव से राहुल गांधी के खाते में ये 10 फायदे तो जमा हो ही चुके!
राहुल गांधी की ताजपोशी बरसों से अटकी पड़ी थी. दावे चाहे जो भी किये जायें लेकिन क्रेडिट का असली हकदार तो गुजरात चुनाव ही है जिसने रास्ते की सारी बाधाएं दूर कर दीं - और राहुल गांधी अब एक अनुभवी नेता के तौर पर कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे हैं.
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गुजरात चुनाव के नतीजों को लेकर राहुल गांधी ने सबसे सटीक भविष्यवाणी की है. राहुल गांधी का मानना है - नतीजे लोगों को सरप्राइज कर देंगे. सही बात है - ऐसे में जबकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों की हार-जीत के बराबर कयास लगाये जा रहे हों, नतीजे जो भी हों हैरान करने वाला तो होंगे ही. मुद्दे की बात ये है कि गुजरात के नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे और राहुल गांधी दो दिन पहले ही खानदानी चुनाव अधिकारी से कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने का सर्टिफिकेट हासिल कर चुके होंगे. फिर क्या फर्क पड़ता है - नतीजे कैसे भी हों, हारे तो भी कोई बात नहीं और जीते तो बल्ले बल्ले है ही.
बीजेपी और मोदी सरकार के लिए आकलन के पैमाने निश्चित रूप से अलग होंगे, लेकिन गुजरात चुनाव से राहुल गांधी के खाते में ये 10 फायदे तो जमा हो ही चुके हैं.
1. राहुल गांधी की ताजपोशी बरसों से अटकी हुई थी. सबसे पहला फायदा तो यही है कि गुजरात चुनाव के रास्ते उनके अध्यक्ष बनने की सारी बाधाएं दूर हो गयीं और अब वो एक अनुभवी नेता के तौर पर कमान संभालने जा रहे हैं.
2. राहुल गांधी के बारे में एक नेता की टिप्पणी रही कि वो 2019 नहीं बल्कि 2024 यानी उसके पांच साल बाद की तैयारी कर रहे हैं. गुजरात चुनाव का राहुल गांधी के लिए दूसरा फायदा ये है कि वो खुद लोगों के बीच पहुंच कर चुनाव का इतना रिहर्सल तो कर ही चुके हैं कि अब उन्हें अनुभव अर्जित करने के लिए 2024 तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा. अब तो वो पूरी तरह 2019 के लिए तैयार हो चुके हैं.
इसीलिए कहते हैं... कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात मेें!
3. राहुल गांधी के रास्ते का एक कांटा तो तभी खत्म हो गया जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया, फिर भी विपक्षी दल उन्हें उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे थे. राहुल गांधी के लिए तीसरा फायदा ये है कि गुजरात एक्सपेरिमेंट के बाद वो काफी हद तक 2019 में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए निर्विरोध दावेदार बन चुके हैं - और लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के एनडोर्समेंट के साथ ही शरद पवार और शिवसेना ने भी उन्हें पीएम मैटीरियल मान लिया है.
4. किस्मत भी बहादुरों का साथ देती है. राहुल गांधी के मामले में भी ये मुहावरा प्रासंगिक समझा जा सकता है. अगर मणिशंकर अय्यर के बयान के पीछे कांग्रेस की कोई स्ट्रैटेजी नहीं रही तो जो कुछ भी हुआ राहुल के लिए फायदेमंद ही रहा. राहुल गांधी ने मणिशंकर के खिलाफ एक्शन लेकर साबित कर दिया कि वो सिर्फ कहते ही नहीं अब वास्तव में देश के प्रधानमंत्री पद का सम्मान करते हैं. मनमोहन सरकार का ऑर्डिनेंस फाड़ने जैसे वाकये अब नहीं दोहराये जाने वाले. मणिशंकर केस में इस्तेमाल तीर का दूसरा निशाना बाकी नेताओं के लिए हद में रहने का संदेश है - कुछ भी ऐसा-वैसा किया तो बख्शे नहीं जाएंगे.
5. एक फायदा ये भी है कि जिन नेताओं को राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर पहले आपत्ति रही अब वो भी तारीफ करने लगे हैं - पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ताजातरीन मिसाल हैं. वैसे भी जिन्हें राहुल से परहेज रही या उनके आगे दाल नहीं गली वे कांग्रेस छोड़ ही चुके हैं - हिमंत बिस्वा सरमा, रीता बहुगुणा जोशी, शंकरसिंह वाघेला जैसे कई नाम इस सूची में दर्ज हो चुके हैं.
नवसर्जन के नतीजे...
6. राहुल गांधी के लिए एक बड़ा फायदा ये भी है कि अब छुट्टी के लिए उन्हें किसी और एप्लीकेशन देने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जब भी फुरसत हो नेताओं को कामों में उलझा कर बड़े आराम से निकल लेंगे. जहां कहीं भी जाएंगे किसी न किसी कांफ्रेंस में बैठे बैठे ट्वीट से फोटो भेज देंगे और मीडिया उसी में उलझा रहेगा.
7. राहुल गांधी अपने मेकओवर की बात से भले इंकार करें, लेकिन हिंदुत्व को लेकर कांग्रेस का स्टैंड साफ करने का क्रेडिट भी तो उन्हीं के खाते में जाएगा. आखिर अयोध्या से लेकर सोमनाथ तक मंदिरों में मत्था तो राहुल गांधी ने ही टेकते आये हैं तो भला आशीर्वाद किसी और को थोड़े ही मिलेगा.
8. अब तो मान कर चलना चाहिये कि राहुल गांधी 'सूट-बूट...' या 'फेयर एंड लवली', बयान से 'भूकंप' लाने या फिर 'खून की दलाली' जैसी बातें विरोधियों के लिए नहीं ही करेंगे - इस बात का संकेत भी वो कार्यकर्ताओं को फटकार कर दे चुके हैं - 'मीठा बोलो और उन्हें हराओ'.
9. छोटी से छोटी जिम्मेदारी इंसान को पलक झपकते बड़ा बना देती है. अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद वो ऐसी वैसी बातें तो बिलकुल नहीं करेंगे जिससे किसी को उनका मजाक उड़ाने का मौका मिल सके, बल्कि मुद्दों पर फोकस करेंगे - महिला बिल की बात कर राहुल गांधी ने ये संकेत भी दे ही दिया है.
10. राहुल गांधी के खाते में दसवां फायदा ये है कि अब वो खुद को मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी से दो कदम आगे बढ़ा कर पेश कर रहे हैं. वो कहते भी हैं कि मोदी की तरह नहीं बोल सकते लेकिन मनमोहन की तरह खामोशी भी उन्हें ज्यादा पसंद नहीं है. ऊपर से प्रेस कांफ्रेंस और इंटरव्यू देकर ये संकेत तो दे ही रहे हैं कि वो मोदी की तरह सिर्फ एकतरफा संवाद या मनमोहन की तरह संवादहीनता में कतई यकीन नहीं रखते.
क्या ये सब गुजरात चुनाव के बगैर मुमकिन हुआ होता? अब तो राहुल गांधी के लिए एक ही सवाल बचता है जिसे मौका मिलते ही लोग पूछ भी लिया करते हैं - 'शादी कब करेंगे?'
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