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Updated: 12 दिसम्बर, 2021 09:30 PM
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जयपुर में आयोजित कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी महंगाई रैली के बाद यह चर्चा आम हो चली है कि जो कुछ रैली में हुआ वह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है या फिर हमेशा की तरह कांग्रेस आज भी ग़लत ट्रैक पर उतर गई. क्या यूपी का चुनाव अब असली हिंदू-बनाम नक़ली हिंदू पर होने वाला है? कांग्रेस बीजेपी के हिंदूत्व का कार्ड समझ गई है या बीजेपी के पिच पर आकर खेलने के लिए मजबूर कर दी गई है?

राहुल गांधी कांग्रेस के मंच पर खूब गरजे, बरसे. रैली का नाम मंहगाई हटाओ, बीजेपी हटाओ था मगर राहुल गांधी ने मंच पर आते ही कह दिया कि इस पर बाद में आऊंगा. पहले पांच मिनट कुछ और बात करना चाहता हूं और फिर महंगाई, काले क़ानून पर खूब बोलूंगा पर शायद वैचारिक लड़ाई में इस कदर भटके या खोए कि उल्टा हो गया. राहुल महंगाई और काले क़ानून पर पांच मिनट बोले और अपनी 'कुछ और बात' पर खूब बोले.

news, rahul gandhi speech, rahul gandhi news, jaipur newsक्या यह राहुल गांधी के अवतार-2 की शुरुआत है?

इसके बाद राहुल गांधी मंच पर नेता कम और विचारक की तरह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी लंबा पॉज ले-लेकर यह समझाने लगे कि हिन्दू और हिंदुत्व में क्या अंतर है. जिस तरह राहुल गांधी ने शुरुआत की, उसे देखते हुए एकबार तो नेताओं और श्रोताओं में सन्नाटा छा गया कि आख़िर राहुल गांधी कहना क्या चाहते हैं. दो मिनट तक उन्होंने यह समझाया कि एक शब्द के दो मतलब नहीं होते हैं और उसके बाद समझाया कि हम गांधी के हिंदू है और BJP वाले गोडसे के हिंदुत्ववादी हैं.

राहुल गांधी ने कहा कि हम सच के लिए लड़ने वाले हैं, वह सच के लिए कुछ भी करने वाले हैं. साथ में यह भी कह दिया कि पूरा जीवन बिता देंगे सत्य की खोज में, क्योंकि असली हिन्दू वही है जो जीवन सत्य की खोज में बीता दे. राहुल गांधी के भाषण से साफ़ झलक रहा था कि महंगाई तो बहाना है, उत्तरप्रदेश चुनाव असली निशाना है क्योंकि जिन मुद्दों पर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी जनता के बीच जा रहे हैं वह सिरे चढ़ नहीं पा रहा है.

BJP जिस तरह से अयोध्या, काशी और मथुरा को अपने पिटारे से निकाल कर वापस चुनावी युद्ध के मैदान में ला खड़ा किया है. उसे देखकर कांग्रेस को लगने लगा है कि लड़ाई विचारधारा की है और जनता के बीच वैचारिक लड़ाई को लेकर जाना होगा. राहुल गांधी ने कहा कि वह हिंदू राज लाना चाहते हैं मगर तभी कहते हैं कि वह सत्ता के लिए नहीं लड़ना चाहते हैं.

कांग्रेसी कह रहे हैं कि राहुल गांधी ने क्या शानदार बोला है मगर सच तो यह है कि ना गांधी सत्ता की राजनीति कर रहे थे और न गोडसे सत्ता की राजनीति कर रहे थे. जबकि राहुल गांधी सत्ता की राजनीति करने राजनीति में आए हैं. राहुल गांधी को तय करना है कि वह अपना जीवन सत्य की खोज में बिठा देंगे या फिर सत्ता की तलाश में लगे कांग्रेसियों को भी सहारा दे पाएंगे.

उत्तर प्रदेश चुनाव में यह चुनावी विषय हो सकता है कि कांग्रेस नक़ली हिन्दू-असली हिन्दू का कार्ड खेले क्योंकि जानबूझकर राहुल गांधी के इस भाषण को कांग्रेस की महंगाई के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी रैली का पोस्टर बनाया गया है. BJP जिस तरह से बढ़ती जा रही है कांग्रेस को लगने लगा है कि सांप्रदायिक आधार पर समाज के बँटवारे को जनता से जुड़े मुद्दे रोक नहीं सकते हैं.

इंदिरा गाँधी के ज़माने में महंगाई बड़ा मुद्दा बन चुका है मगर हिंदुस्तान में यह राजनीति का मिज़ाज रहा है कि काठ की हांडी बार बार चढ़ती नहीं है और फिर जानता यह तय नहीं कर पा रही है कि महंगाई किसके सरकार के समय ज़्यादा बढ़ थी इसलिए हो सकता है कि कांग्रेस ने महँगाई की इस रैली को हिन्दू बनाम हिंदुत्व की रैली में बदल दिया हो.

राहुल गांधी ने कहा कि हिंदू और हिंदुत्व का मामला समझाने के बाद में महँगाई के मुद्दे पर आऊँगा मगर वह आए नहीं, क्योंकि राहुल गांधी लंबे समय से राजनेता कम और वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रति प्रतिबद्ध समाज सुधारक ज़्यादा लगने लगे हैं. राजनेता को गैलरी प्ले करना होता है जिसकी कमी कांग्रेस की रैली में आज भी दिखी.

राहुल गांधी किसानों के मुद्दे पर भी कम ही बोले और वह जनता को यह समझाने में लगे रहे की हिंदुत्ववादी सोच की वजह से यह सत्ता में हैं और हिंदुत्ववादी सोच ही महँगाई और किसानों की भी समस्या है. एक हद तक राहुल गांधी सही भी सोच रहे हैं क्योंकि कांग्रेस की समस्या BJP की कट्टर हिंदूवादी छवि है जिससे जिन हिन्दुओं को धार्मिक उन्माद से कोई मतलब नहीं है वह भी BJP को अपने धर्म की पार्टी समझने लगा है और यही कांग्रेस की समस्या की जड़ भी है.

NDA की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद एक बार पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि BJP का समय बुरा चल रहा है. रैली का मिज़ाज देख ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस का समय भी सही नहीं चल रहा है. आप यह कह सकते हैं कि आज के वर्चुअल ज़माने में जयपुर में बैठकर उत्तरप्रदेश के मसले पर राजनीति क्यों नहीं की जा सकती है मगर वक़्त और स्थान की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण जगह होती है.

जयपुर के मंच से हिन्दू और हिंदुत्व पर राहुल गांधी के दर्शन का क्या मतलब था या लोग समझ नहीं पा रहे हैं. राजस्थान के कोने कोने से बसों में भरकर लोगों को महँगाई के ख़िलाफ़ राहुल गांधी के बिगुल बजाने की आवाज़ सुनाने के लिए बुलाया गया था मगर बाद राहुल गांधी का हिन्दू दर्शन समझ कर लौटे.

दरअसल राजस्थान का मिज़ाज कभी हिंदू मुसलमान का रहा ही नहीं है. भैरोसिंह शेखावत हों या फिर वसुंधरा राजे, यह लोग हिंदूवादी छवि से कोसों दूर रहे. कभी भी राजस्थान में सांप्रदायिक आधार पर चुनाव नहीं हुए. इसलिए हिन्दू दर्शन के लिए जयपुर का चुना जाना रणनीतिक रूप से सही क़दम नहीं था.

हालाँकि कुछ विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस के लिए अच्छा क़दम है कि जनता से जुड़े मुद्दों पर उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी लड़ती नज़र आए और वैचारिक मुद्दे पर राहुल गांधी BJP को घेरते नज़र आए, मगर यह भ्रम की स्थिति पैदा करेगा. कांग्रेस इस बात को बख़ूबी समझती है इसलिए राजस्थान में पहली बार रैली को संबोधित करने आयी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को नेपथ्य में रखा गया. राहुल गांधी के मंच पर आने से पहले ही उनका संक्षिप्त भाषण ख़त्म करा दिया गया. प्रियंका गांधी अपने भाषण में उत्तर प्रदेश तक सीमित रही.

हालाँकि प्रियंका जनता की नस पकड़ना राहुल से बेहतर समझती हैं. उन्होंने मंच पर चढ़ते ही राजस्थानी भाषा में लोगों का अभिवादन किया तो जनता ने ज़ोरदार स्वागत किया. प्रियंका का भाषण ख़त्म होते ही राहुल मंच पर माँ सोनिया गांधी के साथ अवतरित हुए. राहुल गांधी मंच पर आए तो सारे नेताओं ने खड़े होकर स्वागत किया और मंच से जनता से कहा गया कि कुर्सियों से खड़े होकर राहुल गांधी का स्वागत किया जाए.

राहुल गांधी के एंट्री किसी रियलिटी शो या अवार्ड फ़ंक्शन के टेलिविज़न सेट पर किसी सुपरस्टार की एंट्री की तरह रखी गई. DJ की धुन पर राहुल गांधी ने ग्रांड एंट्री मारी. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इशारा किया कि राहुल जनता की तरफ़ हाथ हिलाकर जनता का स्वागत करें.

राहुल गांधी ने भाषण ख़त्म किया तो भी डीजे बजा और फिर सभी नेताओं ने खड़े होकर राहुल गांधी को ग्रांड एक्जिट भी दिया. हालाँकि राहुल गांधी अपनी वैचारिक सोच में इस तरह डूब गए कि कई बार मंच पर कहते नज़र आए कि हमारे पंचाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी यहाँ बैठे हुए हैं जबकि चन्नी आए नहीं थे. आख़िर में जब उन्होंने कहा कि चन्नी जी बताइए तब सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के सभी नेताओं को कहना पड़ा कि चन्नी नहीं आए नहीं है. यह जानता में बड़ा उपहास का विषय रहा और कहा जा रहा है कि मंच पर जो सोनिया गांधी का ग़ुस्सा दिख रहा था वह इसी बात को लेकर दिख रहा था कि राहुल गांधी लिखा हुआ पढ़ रहे थे, तभी उन्होंने अपने संबोधन के पहले भी चन्नी का स्वागत किया था.

पहले राजस्थान के प्रभारी अजय माकन को बुलाकर सोनिया गांधी तेज़ तेज़ इशारा कर कुछ बोलती नज़र आई, फिर कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को बुलाया गया. दो और नेताओं को तलब किया गया. मंच पर ही सोनिया का ग़ुस्सा नज़र आ रहा था कि राहुल को चन्नी को लेकर स्वागत पर्ची किसने बनाई थी और फिर न जाने क्या हुआ कि सोनिया गांधी ने राजस्थान के प्रभारी अजय माकन से कहा कि वह भाषण नहीं देंगी.

वह इशारा करके बोलती नज़र आयी कि मेरा नाम मत लेना, मुझे मत बुलाना. हो सकता है कि सोनिया गांधी कि यह रणनीति का हिस्सा था कि आज राहुल के भाषण को ही देश में सुना जाए और इसी पर चर्चा हो. हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद क़रीब दो साल बाद पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी सार्वजनिक सभा में मंच पर आयी थी मगर उन्होंने आज कुछ भी नहीं बोला.

इसके साथ यह भी साफ़ हो गया कि यह रैली राहुल की ताज़पोशी से पहले राहुल के लार्जर दैन लाइफ़ इमेज को स्‍थापित करने के लिए आयी थी. पूरे मैदान में राहुल गांधी के बड़े बड़े कटआउट लगाए गए थे. सारे वक्ताओं ने 2-3 मिनट ही बोला, केवल राहुल गांधी 15 मिनट बोले. राहुल गांधी नीति और नीयत को लेकर साफ़ नज़र आते हैं मगर नेता के तौर पर जनता से उनका कनेक्ट हो नहीं पाता है. यह बात आज भी साफ़ देखी गई, जब वे पूंजीपतियों को बार बार पूंजापति-पूंजापति बोल रहे थे तो जानता हंस रही थी.

शास्त्रों की जगह कह रहे थे कि शस्त्र में लिखा हुआ है तब भी जनता पीछे से कह रही थी कि शास्त्र बोलो और फिर बार बार उनका चन्नी को मंच पर खोजना और चन्नी का नहीं होना भी उपहास का विषय बना रहा. मगर इस सबके बावजूद राहुल गांधी ने जिस तरह से हिम्मत दिखाई है कि BJP के हिंदुत्व के खिलाफ़ वह हिन्दू बन कर खड़े होंगे.

अपने आप में यह कांग्रेस के लिए देर से आए मगर दुरुस्त कदम है. नेहरू -पटेल की विरासत को राहुल गांधी हिन्दू बनकर कंधे पर ढोकर आगे ले जा सकते हैं और इसी से मुक़ाबला भी कर सकते हैं. मगर पार्टी के लिए नीति और नीयत के अलावा नेता की खोज में अभी भी राहुल गांधी जनता के बीच जमें नज़र नहीं आए.

जनता की नज़रें प्रियंका गांधी पर थी मगर प्रियंका गांधी भ्राता प्रेम में ख़ुद को कांग्रेस के दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच बैठकर राहुल राहुल गांधी को कमान देने की कोशिश करती नज़र आ रही थी. इसी जयपुर में राहुल गांधी पहली बार कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए थे और तब उन्होंने कहा था माँ ने कहा है सत्ता ज़हर है. राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि तब से वह सत्ता को ज़हर मानकर दूर बैठे हुए हैं मगर आज की रैली में उन्होंने कहा कि मैं विषपान करने के लिए तैयार हूँ और मैं शिव की तरह नीलकंठ बनना चाहता हूँ. जब राहुल शिव बनना चाहते हैं तो कांग्रेस की छटपटाहट सत्ता के लिए साफ़ दिख रही थी.

कांग्रेस के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह कहना कि हिंदू राष्ट्र हम लाएँगे, सत्ता के लिए हताशा दिखाता है. इसी जयपुर में जब राहुल गांधी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर ताज़पोशी हुई थी तो तब तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने हिंदु आतंकवाद का नाम लेकर हंगामा मचा दिया था और आज इसी जयपुर में राहुल गांधी ने हिंदू राज स्थापित करने की बात कही है. साफ़ है कांग्रेस इतने सालों में या तो भ्रम में जी रही है या भ्रम से उबरने में लगी हुई है.

राहुल गांधी यहां जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने थे तब भी सोनिया गांधी ने नेपथ्य में बैठकर उनका सत्ता दर्शन सुन कर ताली बजा रही थी और आज जब एक बार फिर से वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे हैं तो सोनिया गांधी स्टेज पर बैठकर राहुल गांधी के हिन्दू दर्शन पर ताली बजा रही थी.

इसीलिए सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष को कुछ बोलना नहीं था और भाषण देना नहीं था तब आयी क्यों थी? क्या राहुल के नए अवतार और नए दर्शन को सुनने आयी थी? उस वक़्त भी भाई राहुल को सुनने के लिए बहन प्रियंका अलग से आयी थी और आज भी अलग से आयी हैं तो क्या राहुल गांधी के अवतार-2 की शुरुआत है?

यह रास्ता सत्ता तक कैसे जाएगा इसे लेकर भ्रम की स्थिति कांग्रेस में बनी हुई है क्योंकि जब जनता को आप महंगाई का दर्द सुनाने के लिए बुलाते हैं और हिंदुत्व का दर्शन सुनाते हैं तो साफ़ है कि भ्रम की स्थिति की वजह से आप तैयार नहीं हैं और आधी-अधूरी तैयारी के साथ जंग नहीं जीती जाती.

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