Rahul Gandhi से कांग्रेस में कोई सबक सीखने को तैयार क्यों नहीं?
Rahul Gandhi को अपने इस्तीफे के बाद कांग्रेस में जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं से भी वैसी ही अपेक्षा थी. ये बात भी राहुल गांधी ने खुद ही साफ कर दी है. सवाल है कि क्या ऐसे नेताओं में प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं?
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Rahul Gandhi के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की सख्त विरोधी प्रियंका गांधी वाड्रा भी रही हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा का तर्क रहा कि ऐसा करने से बीजेपी अपने मकसद में कामयाब हो जाएगी. फिर भी राहुल गांधी ने इरादा साफ कर दिया है - किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या प्रियंका वाड्रा को ऐसा कुछ लगा है कि राहुल गांधी का ये कदम भी Sonia Gandhi जैसा ही है?
क्या राहुल गांधी भी वैसे ही अध्यक्ष पद छोड़ना चाह रहे हैं जैसे कभी सोनिया गांधी बीजेपी सहित विरोधी राजनेताओं की वजह से प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया था? हो सकता है एकबारगी लगा हो, लेकिन अब तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता. बल्कि, राहुल गांधी के इस्तीफा देने की तो नयी ही वजह सामने आ रही है. राहुल गांधी तो ऐसा करके साथी कांग्रेसियों के सामने नजीर पेश करना चाहते थे. राहुल गांधी ने बतौर सबक एक सलाहियत और मिसाल पेश करने की कोशिश की, लेकिन मुश्किल ये है कि कांग्रेस में कोई भी राहुल गांधी से ये सबक सीखने को राजी ही नहीं है. अभी तो राहुल गांधी की सबसे बड़ी मुश्किल भी यही है और चुनौती भी.
समझने में कमी है या समझाने में?
पहले तो राहुल गांधी ने एक दो नाम लेकर कांग्रेस के सीनियर नेताओं के कामकाज और इरादों की ओर इशारा किया था. मुमकिन है राहुल गांधी को ये उम्मीद रही हो कि कांग्रेस पदाधिकारियों को कुछ नसीहत मिल सकेगी. मगर, अफसोह राहुल गांधी का मैसेज किसी ने समझा नहीं. ये भी तो हो सकता है कि कोई ये मैसेज समझने को ही तैयार न हो. जब नेता अपनों को टिकट दिलाने के लिए जिद पर उतर आयें - और संकेतों को नजरअंदाज कर तब तक मानने को तैयार न हों जब तक उनकी मांगें पूरी न हो - फिर कैसे मान कर चला जाये कि ऐसे नेताओं को राहुल गांधी के संकेत और इशारों से समझ आ सकेगी? सवाल ये है कि समझ की कमी कहां है? समझने वाले में कमी है या समझाने वाले में ही कोई कमी है? या फिर समझने के बाद कांग्रेस नेता जो बात कह रहे हैं उसे राहुल गांधी ही नहीं समझ पा रहे हैं? कहीं न कहीं संवादहीनता की स्थिति तो है ही.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ कह रहे हैं कि वो पहले ही इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं. कमलनाथ मान भी रहे हैं कि लोक सभा में कांग्रेस की हार के लिए वो अपनी जिम्मेदारी ले रहे हैं.
इशारों को अगर समझो, राज को राज पर मत रहने दो - राहुल गांधी चाहते तो कुछ ऐसा ही हैं
कमलनाथ ने कहा है, 'राहुल गांधी सही हैं. मैं नहीं जानता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन मैंने पहले इस्तीफे की पेशकश की थी. हां, मैं हार का जिम्मेदार हूं. मुझे दूसरे नेताओं के बारे में नहीं पता.'
राहुल गांधी का दर्द
हरियाणा में कांग्रेस नेताओं का झगड़ा नेतृत्व के लिए पिछले पांच साल से सिरदर्द बना हुआ है. जींद उपचुनाव में रणदीप सिंह सुरजेवाला को मैदाने में उतारने के पीछे हरियाणा में एक नेता की तलाश ही रही. हाल ही में हरियाणा के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी को समझाना चाहा कि कुछ ऐसा उपाय को कि राज्य में नेतृत्व को लेकर तस्वीर साफ लगे. हरियाणा में कुछ ही महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं.
हरियाणा के नेताओं को राहुल गांधी एक छोटा सा जवाब मिला. शब्द कम थे, लेकिन जवाब बड़ा था - 'मैं पार्टी का अध्यक्ष नहीं हूं.' साथ ही, ये गलतफहमी भी दर करने की कोशिश की कि ये उनका आखिरी फैसला है.
लेकिन राहुल गांधी ने ये आखिरी फैसला यूं ही तो लिया नहीं. इस फैसले में काफी दर्द है और ये दर्द भी सिर्फ हार का दर्द नहीं है. दर्द का दायरा बहुत बड़ा है. दो दिन पहले कांग्रेस के कुछ नेता राहुल गांधी के घर के बाहर बैठे थे. कांग्रेस नेताओं में कुछ यूथ कांग्रेस के थे और कुछ कार्यकारिणी के सदस्य भी. राहुल गांधी ने नेताओं को घर के अंदर बुला लिया. फिर राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं से दर्द भी साझा किया.
मीटिंग में शामिल यूथ कांग्रेस के एक नेता ने कहा - 'सर, ये सामूहिक हार है. सबकी जिम्मेदारी बनती है तो सिर्फ इस्तीफा आपका ही क्यों?' ये सुनते ही राहुल गांधी खुद को रोक नहीं पाये और आत्मीय माहौल देख अपने मन की बात भी कह डाली.
बड़े ही दुखी अंदाज में राहुल गांधी बोले, 'मुझे इसी बात का दुख है कि मेरे इस्तीफे के बाद किसी मुख्यमंत्री, महासचिव या प्रदेश अध्यक्ष ने हार की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा नहीं दिया.'
सब एक जैसे होते कहां हैं? कांग्रेस के विधि विभाग प्रमुख विवेक तन्खा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. विवेक तन्खा ने भी इस्तीफा इसी उम्मीद के साथ दिया है कि बाकियों को भी इससे स्थिति की गंभीरता समझ आ सके. साथ ही, विवेक तन्खा ने साथी नेताओं को पद छोड़ने की सलाह दी है ताकि नयी टीम बनायी जा सके.
We all should submit our resignations fr party positions & give Rahul ji a free hand to choose his team. I welcome Mr Kamalnath’s statement to that effect. I unequivocally submit my resignation as AICC Dept chairman Law,RTI & HR. Party cannot afford a stalemate for too long.
— Vivek Tankha (@VTankha) June 27, 2019
ऐसा लगता है जैसे विवेक तन्खा राहुल गांधी की बात को ही आगे बढ़ाने के लिए खुद कुर्बानी दे रहे हों. जैसे विवेक तन्खा कह रहे हों कि लोग उनके इस्तीफे से ही सबक लें, ताकि राहुल गांधी को इतने बड़े फैसले के लिए मजबूर न होना पड़े.
Rahul ji please make drastic changes to revive the party as a fighting force. U have the commitment & determination. Just cobble a good , acceptable & influential nation wide team. I am with you u in all situations.@RahulGandhi @OfficeOfKNath
— Vivek Tankha (@VTankha) June 27, 2019
सिर्फ मालूम होने से क्या होता है?
कांग्रेस में एक ही साथ कई चीजें चल रही हैं. राहुल गांधी जिम्मेदार नेताओं से इस्तीफा चाहते हैं. कांग्रेस पार्टी को अध्यक्ष का इंतजार करना पड़ रहा है - नया हो पुराना हो, फर्क नहीं पड़ता - लेकिन कोई भी अध्यक्ष तो हो. बीच बीच में जगह जगह कांग्रेस की हार की समीक्षा भी चल रही है और नेताओं के इसस सिलसिले में बयान भी आते रह रहे हैं.
कांग्रेस की कैंपेन कमेटी के प्रभारी रहे आनंद शर्मा ने हार के लिए मैनिफेस्टो की खामियों की ओर इशारा किया है. आनंद शर्मा के मुताबिक कांग्रेस घोषणा पत्र में राजद्रोह कानून खत्म करने, कश्मीर में सेना की तैनाती में कटौती और AFSPA में बदलाव की बातें लोगों के बीच सही तरीके से नहीं रखी गयीं.
कांग्रेस की NYAY स्कीम को भी आनंद शर्मा देर से लिया गया फैसला मानते हैं जो लोगों के बीच अपनी पैठ जमाने में नाकाम रहा क्योंकि तब तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की रकम किसानों के खातों में पहुंचने लगी थी. आनंद शर्मा के मुताबिक NYAY की घोषणा छह महीने पहले होनी चाहिये थी.
अगर हार की वजह मालूम हो गयी है तो सबसे पहले तो कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष का ही नंबर आता है. कांग्रेस की चुनाव घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष पी. चिदंबरम थे. अगर चुनाव घोषणा पत्र समिति का अस्तित्व चुनाव बाद स्वतः समाप्त हो गया तो पी. चिदंबरम को दूसरी जिम्मेदारियां छोड़ देनी चाहिये. आखिर राहुल गांधी चाहते तो ऐसा ही हैं.
बाकियों को छोड़ भी दें तो कम से कम अशोक गहलोत और कमलनाथ के तो नाम लेकर राहुल गांधी ने समझाने की कोशिश की थी. कमलनाथ तो हार की जिम्मेदारी भी ले चुके हैं और इस्तीफे की पेशकश भी. अशोक गहलोत तो अफसोस की कौन कहे, वो तो इस बात पर अड़े थे कि सचिन पायलट उनके बेटे वैभव गहलोत की हार की जिम्मेदारी लें. वो भी सिर्फ इस वजह से सचिन पायलट ने कभी कहा था कि वैभव जीत जाएंगे? तो क्या अशोक गहलोत सिर्फ सचिन पायलट की उस बात पर इस कदर यकीन कर बैठे कि राहुल गांधी से जिद कर बेटे को टिकट दिलवाये? भले ही वैसा कुछ हुआ न हो, लेकिन अशोक गहलोत को ऐसा क्यों लगा कि जिस सचिन पायलट से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली, वो वैभव गहलोत की जीत के लिए जान लड़ा देंगे. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने तो राहुल गांधी से भी पहले इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी - मालूम नहीं उनकी जिद राहुल गांधी जैसी रही या नहीं. कमलनाथ भी कह ही रहे हैं कि हार की अपनी जिम्मेदारी लेते हुए वो भी इस्तीफे की पेशकश कर ही चुके हैं.
अब अगर अशोक गहलोत जैसे नेता इस्तीफा देने को राजी नहीं हैं तो राहुल गांधी ने एक्शन क्यों नहीं लिया? कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी अपने इस्तीफे के बाद अशोक गहलोत की ही तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं से भी खुद के दिखाये रास्ते पर चलने की अपेक्षा कर रहे थे. फिर तो प्रियंका वाड्रा भी कांग्रेस महासचिवों में से एक हैं. यूपी की तो बड़ी जिम्मेदारी रही, गुलाम नबी आजाद को यूपी से हटाकर हरियाणा का प्रभारी बनाये जाने के बाद राज बब्बर तो कहने भर को यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष थे, सारे फैसले तो ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका वाड्रा के हिसाब से लिये जा रहे थे. फिर क्या प्रियंका वाड्रा और ज्योतिरादित्य से राहुल गांधी को कोई अपेक्षा नहीं होगी? देखना होगा कि हार को लेकर प्रियंका वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का खुद क्या अगला कदम होता है - या कांग्रेस पार्टी की ओर से क्या एक्शन लिया जाता है?
आखिर राहुल गांधी ने अपनी नैसर्गिक और विरासत में मिली शक्ति और कलम की ताकत के साथ क्यों नहीं एक्शन लिया जिन्हें वो हार का जिम्मेदार मानते हैं. अभी तो ऐसा लग रहा है कि एक सामूहिक जिम्मेदारी के लिए राहुल गांधी अकेले कुर्बानी दे रहे हैं - और कांग्रेस घुटे हुए नेताओं को इन सबसे बहुत फर्क नहीं पड़ता. जब राहुल गांधी की बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं तो गांधी परिवार से बाहर से आने वाले अध्यक्ष का क्या मजाल. ये सब तो यही बता रहा है कि राहुल गांधी की ये कुर्बानी भी कांग्रेस को बचा नहीं पाएगी. राहुल गांधी के लिए बेहतर होगा गांधीगीरी की बजाये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ अपराध के अनुसार सजा तय करें और उसे अमलीजामा भी पहनायें. ये राहुल गांधी की सियासी सेहत के लिए अच्छा रहेगा और कांग्रेस की भी तंदुरूस्ती कायम रहेगी.
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