शरद पवार की बातों से लग रहा है, राहुल गांधी की वैष्णो देवी यात्रा सफल नहीं रही
इंडिया टुडे से बातचीत में एनसीपी (NCP) चीफ शरद पवार ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि नेतृत्व की बात आने पर कांग्रेस (Congress) के नेता संवेदनशील हो जाते हैं. कांग्रेस अब वह पार्टी नहीं रही है, जिसका कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक दबदबा था.
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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हाल ही में वैष्णो देवी के दर्शन के लिए दरबार में हाजिरी लगाई. राहुल गांधी की इस पदयात्रा के दौरान हरियाणा से आया उनका एक फैन भी मां वैष्णो के दर्शन के लिए नंगे पांव आया था. इस प्रशंसक ने बताया था कि जब तक राहुल गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन जाते, वो नंगे पांव रहेंगे. प्रशंसक का कहना था कि अबकी बार मां वैष्णो देवी प्रार्थना पूर्ण करेंगी और आगामी लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे. वैसे, राहुल गांधी ने भी माता के दरबार में पहुंचकर पुजारियों से तो आशीर्वाद ले लिया. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी की वैष्णो देवी यात्रा सफल नहीं रही. दरअसल, साझा विपक्ष के फॉर्मूले को इस साल सबसे पहले सामने लाने वाले एनसीपी चीफ शरद पवार (Sharad Pawar) की बातों से तो इसी बात का अंदाजा लग रहा है.
इंडिया टुडे से बातचीत में एनसीपी (NCP) चीफ शरद पवार ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि नेतृत्व की बात आने पर कांग्रेस (Congress) के नेता संवेदनशील हो जाते हैं. कांग्रेस अब वह पार्टी नहीं रही है, जिसका कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक दबदबा था. कांग्रेस के नेताओं को यह स्वीकार करना चाहिए. शरद पवार ने कांग्रेस की तुलना जमींदारों की एक कहानी से कर पार्टी को आईना दिखाने में भी परहेज नहीं किया. उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस अपनी मानसिकता छोड़ इस हकीकत को स्वीकार कर लेती है, तो विपक्षी दलों के साथ उनकी नजदीकी बढ़ जाएगी. सही मायनों में कहा जाए, तो शरद पवार ने कांग्रेस की उस हकीकत से ही पर्दा उठाया है, जिसे वो मानने से लगातार इनकार करती रही है.
शरद पवार ने कांग्रेस की उस हकीकत से ही पर्दा उठाया है, जिसे वो मानने से लगातार इनकार करती रही है.
शरद पवार ने पहले ही लिख दी थी पटकथा
'मिशन 2024' के मद्देनजर साझा विपक्ष की कोशिशों के दौरान ही शरद पवार ने अकेले अन्य विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मुलाकात करना शुरू कर दिया था. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात ने इस ओर पहले ही इशारा कर दिया था. वहीं, कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रही एनसीपी ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था. पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी उनकी प्राथमिकता ममता बनर्जी ही नजर आई थीं. हालांकि, शरद पवार ने ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे पर उनसे मुलाकात नहीं कर काफी हद तक स्पष्ट संदेश दे दिया था कि उन्हें तृणमूल कांग्रेस मुखिया की कांग्रेस से करीबी और खुद को कार्यकर्ता घोषित करना कुछ खास पसंद नहीं आया था. कहना गलत नहीं होगा कि शरद पवार लगातार अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात और बातचीत कर कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी को नेतृत्व के लिए आगे किए जाने की उम्मीदों को धूल-धूसरित करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.
कांग्रेस को खतरा 'कांग्रेस' से ही है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ विपक्ष का 'मिशन 2024' बहुत तेजी से परवान चढ़ रहा है. लेकिन, विपक्ष के मजबूत होने के साथ ही भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है. राहुल गांधी को विपक्ष का नेतृत्व थमाने के लिए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ एक डिजिटल बैठक में भाजपा के खिलाफ एकजुटता राष्ट्रहित की मांग बताते हुए कहा था कि कांग्रेस अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखेगी. सोनिया गांधी की कमी न रखने वाली बात को यही माना जा सकता है कि राहुल गांधी को नेतृत्व की बागडोर थमाने के लिए कांग्रेस किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार है.
क्षत्रपों की बार्गेनिंग में फंसेगी कांग्रेस
शरद पवार की बात से ये भी काफी हद तक साफ हो जाता है कि महाराष्ट्र में अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने केवल शिवसेना और एनसीपी ही गठबंधन में रहने वाले हैं. वहीं, तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस में सेंध लगाना शुरू कर दिया है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे और उनके रिश्तेदारों को टीएमसी में शामिल कराने के साथ 'दीदी' ने कांग्रेस के खिलाफ अघोषित तौर पर युद्ध छेड़ दिया है. ममता बनर्जी इतने पर ही नहीं रूकी हैं और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी कांग्रेस को कमजोर करने के लिए पूरी ताकत लगा रही हैं. महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव को टीएमसी में शामिल कर उन्होंने इस बात के संकेत दे ही दिये हैं. साथ ही वो त्रिपुरा में भी कांग्रेस नेताओं पर नजर गड़ाए बैठी हैं. यूपी में अखिलेश यादव पहले ही कांग्रेस से ये तय करने को कह चुके हैं कि वो भाजपा के खिलाफ है या सपा के? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सिमटती जा रही कांग्रेस के सामने बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी लोकसभा चुनाव से पहले कोई बड़ा 'खेला' कर दें, तो बड़ी बात नहीं होगी.
पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन किसी से छिपी नहीं है. केरल में राहुल गांधी के पूरी ताकत झोंकने के बावजूद नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए. वहीं, तमिलनाडु में डीएमके नेता स्टालिन के सहारे राज्य में सरकार में बनी हुई है. यहां भी कांग्रेस स्टालिन के सामने बहुत छोटी नजर आती है. अगले साल होने वाले यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव में पंजाब को छोड़कर अन्य किसी राज्य में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरने की संभावना कम ही नजर आती है. कुल मिलाकर 2024 से पहले होने वाले हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने भाजपा के अलावा एक और क्षत्रप खड़ा होगा. अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस का क्षत्रपों के साथ बार्गेनिंग में फंसना तय है.
कांग्रेस पहले से ही वेंटिलेटर पर
बीते साल कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के असंतुष्ट समूह जी-23 ने कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोलकर तय कर दिया था कि पार्टी में राहुल गांधी के नाम पर आम सहमति बन पाना अब मुश्किल है. 2019 के बाद से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कुर्सी संभाली हुई है. लेकिन, वो भी इस बगावत को रोकने में कामयाब नहीं हो सकी हैं. वो भले ही जी-23 नेताओं को साधने की कोशिश कर रही हों. लेकिन, कभी गुलाम नबी आजाद भगवा साफा बांध पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ कर देते हैं. तो, कभी कपिल सिब्बल अपने बर्थडे पर राहुल गांधी के जम्मू-कश्मीर दौरे पर निकलने के बाद विपक्षी नेताओं को एकजुट कर अपना शक्ति प्रदर्शन करने से नहीं चूकते हैं.
वहीं, कांग्रेस शासित राज्यों पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सियासी खीचतान से इतर अन्य राज्यों में भी पार्टी संगठन में आंतरिक कलह अपने सर्वोच्च दौर पर पहुंच गई है. लगातार दो बार केंद्र की सत्ता से दूर रहने का खामियाजा कांग्रेस को बगावत के रूप में झेलना पड़ रहा है. वहीं, महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु में कांग्रेस केवल राष्ट्रीय पार्टी होने की वजह से ही किसी तरह गठबंधन सरकार में बनी हुई है. बीते कुछ सालों में कांग्रेस के कई नेताओं का पार्टी से पलायन भी कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद सरीखे नामों की लिस्ट बहुत लंबी है.
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