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Updated: 15 अगस्त, 2019 12:22 PM
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राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर जाने के लिए जो शर्तें रखी थीं, सब छोड़ दी है. अब वो जम्मू-कश्मीर जाने के लिए हर तरह से राजी हैं. लगता है राहुल गांधी सूबे के गवर्नर सत्यपाल मलिक के मन में क्या चल रहा है, जल्दी ही भांप गये.

देखा जाये तो राहुल गांधी गवर्नर की राजनीतिक चाल में फंस गये हैं - और यही वजह है कि अब अकेले जाने को भी तैयार हो गये हैं. राजभवन की ओर से भी बता दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन फिलहाल स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में व्यस्त है और समय मिलने पर कोई न कोई उनसे संपर्क करेगा.

ये समझना मुश्किल हो रहा है कि राहुल गांधी आखिर जम्मू-कश्मीर को लेकर हड़बड़ी में क्यों हैं? ये तो साफ है कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर राजनीतिक तौर पर चूक गयी है - सवाल ये है कि अगर सत्यपाल मलिक के बुलावे पर राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर पहुंच भी गये तो ऐसा क्या कर देंगे कि भूकंप आ जाएगा?

न्योता कैंसल हुआ तो पलटे राहुल गांधी

राहुल गांधी और सत्यपाल मलिक के बीच जो शह-मात का खेल चल रहा है, उसकी नींव तब पड़ी जब कांग्रेस के सीनियर नेता एक अदद अध्यक्ष चुनने के लिए जूझ रहे थे. अंदर CWC की मीटिंग चल रही थी. जब अचानक राहुल गांधी निकल कर आये तो लगा नये कांग्रेस अध्यक्ष का नाम बताने जा रहे हैं. ऐसा नहीं हुआ. राहुल गांधी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर से हिंसा की खबरें आ रही हैं उनसे वो चिंतित हैं और देश के प्रधानमंत्री से जवाब चाहते हैं कि वहां हो क्या रहा है.

राहुल गांधी के इसी बयान पर जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने एक पासा फेंक दिया. सत्यपाल मलिक ने साफ साफ कह दिया कि राहुल गांधी खुद आकर देख सकते हैं कि क्या हो रहा है. गवर्नर ने यहां तक कह दिया कि वो राहुल गांधी के आने के लिए प्लेन तक भिजवा सकते हैं. राहुल गांधी तो ऐसे ही मौके की तलाश में थे. तपाक से एक ट्वीट जड़ दिया.

राहुल गांधी ने कहा कि प्लेन की जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन वो अकेले नहीं बल्कि विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल के साथ जम्मू-कश्मीर का दौरा करना चाहेंगे. साथ ही, वो जम्मू-कश्मीर में नजरबंद क्षेत्रीय नेताओं से मिलने की छूट भी चाहेंगे और जिनसे बात करना चाहें उसकी आजादी भी.

मीडिया के जरिये हो रही इस बातचीत को सत्यपाल मलिक ने एक कदम और आगे बढ़ा दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने राहुल गांधी को दिया न्योता ही रद्द कर दिया.

एक सवाल के जवाब में सत्यपाल मलिक ने कहा, ‘मैंने उन्हें कश्मीर आकर यहां के हालात देखने का न्योता दिया था. लेकिन उन्होंने आने के लिए कुछ शर्तें सामने रख दीं. वो प्रतिनिधि मंडल के साथ यहां आना चाहते थे. इसके अलावा वो नजरबंद नेताओं से भी मुलाकात करना चाहते थे, जो मुमकिन नहीं है. मैंने इन शर्तों के साथ कभी भी उन्हें न्योता नहीं दिया था - इसलिए मैं अब ये न्योता वापस लेता हूं.’

न्योता रद्द होने पर राहुल गांधी ने नयी चाल चली है. एक ट्वीट में सत्यपाल मलिक को 'मालिक जी' कह कर संबोधित किया है. कहते हैं, 'प्रिय मालिक जी, आपने मेरे ट्वीट का हल्का जवाब दिया है. मैं जम्मू-कश्मीर की यात्रा करने और लोगों से मिलने के आपके निमंत्रण को स्वीकार करता हूं, जिसमें किसी भी प्रकार की शर्त नहीं है. मैं कब आ सकता हूं.'

राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद सत्यपाल मलिक के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा होगा. जवाब तो देना ही था. अब जम्मू-कश्मीर के राजभवन की ओर से कहा गया है कि राज्य का पूरा प्रशासन स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में पूरी तरह व्यस्त है. राहुल गांधी की रिक्वेस्ट को स्थानीय प्रशासन के पास भेज दिया गया है - और अब वहीं से जो भी उचित समय होगा राहुल गांधी से संपर्क किया जाएगा.

ट्विटर और मीडिया के जरिये दोनों पक्षों ने अपनी अपनी राजनीति पूरी कर ली है. अब सिर्फ रस्मअदायगी बची है. वो भी हो जाएगी. इसमें गवर्नर के हिसाब से देखा जाये तो राजनीतिक तौर पर उन्हें सिर्फ फायदा ही हुआ है. ऐसी चाल चली है कि राहुल गांधी खुद उलझे और फंसने पर यू-टर्न ले लिया. देखा जाये तो राहुल गांधी को धारा 370 हटाये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर पर एक और शिकस्त झेलनी पड़ी है - लेकिन अब आगे क्या है?

राहुल गांधी अब सिर्फ एक सेफ पैसेज खोज रहे हैं

धारा 370 को लेकर कांग्रेस सत्ताधारी बीजेपी के राजनीतिक ट्रैप में वैसे ही फंस गयी है - जैसे जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय सियासी दलों के नेता. चाहे वो महबूबा मुफ्ती हों, उमर और फारूक अब्दुल्ला हों या फिर नये खिलाड़ी शाह फैसल. राहुल गांधी की हालत भी किसी भी तरीके से बेहतर नहीं है.

संसद में धारा 370 पर सरकार के विरोध और फिर पार्टी के भीतर नेताओं के दो धड़ों में बंट जाने के बाद से कांग्रेस बार बार अपना स्टैंड बदल रही है. पहले कांग्रेस ने सीधे सीधे प्रस्ताव का विरोध किया. फिर प्रस्ताव लाने और धारा 370 हटाने के तरीके का विरोध किया - और अब कदम कदम पर कांग्रेस नेतृत्व बगलें झांक रहा है.

ghulam nabi azad missing from posterगुलाम नबी आजाद की तस्वीर क्यों नहीं, जबकि रैली डेढ़ महीने बाद होनी है

कांग्रेस इस मामले में कैसे बचाव के रास्ते खोज रही है, हरियाणा में होने जा रही एक रैली के पोस्टर पूरी कहानी कह रहे हैं. 30 सितंबर को होने जा रही इस रैली में गुलाम नबी आजाद की तस्वीर नहीं है. गुलाम नबी आजाद हरियाणा के प्रभारी महासचिव हैं. ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली के पीसी चाको हैं. आखिर रैली के पोस्टर से गुलाम नबी आजाद की तस्वीर के लापता होने को कैसे समझा जा सकता है? क्या कांग्रेस जम्मू-कश्मीर पर नाकाम राजनीतिक का ठीकरा गुलाम नबी आजाद पर फोड़ने की तैयारी कर रही है?

कश्मीर मुद्दे पर अब तक कांग्रेस के पक्ष में एक ही बात लगती है और वो है इस पूरे मामले में एक ही चेहरा नजर आना - गुलाम नबी आजाद का. मोदी सरकार के खिलाफ बढ़ चढ़ कर जो भी बोला गया वो कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ही हैं. कांग्रेस अब भी चाहे तो किसी प्रवक्ता से कहलवा सकती है कि जो कुछ भी गुलाम नबी आजाद ने कहा वो उनकी निजी राय रही. चूंकि वो कश्मीर से आते हैं, घाटी से उन्हें प्यार है - इसलिए इमोशन अत्याचार कर बैठे. असल बात तो ये है कि राहुल गांधी को जम्मू-कश्मीर मसले पर अब सिर्फ एक सेफ पैसेज की तलाश है और उसका मोहरा भी नहीं खोजना है. गुलाम नबी आजाद अकेले काफी हैं.

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