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Updated: 29 दिसम्बर, 2017 12:45 PM
मिन्हाज मर्चेन्ट
मिन्हाज मर्चेन्ट
  @minhaz.merchant
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13 साल तक राजनीति में रहने के बाद क्या अब राहुल गांधी को ये समझ में आ गया है कि 20 प्रतिशत लोगों को खुश करने से ज्यादा अच्छा है 80 प्रतिशत भारतीय जनता को अपने साथ लेकर चलना?

अगर ऐसा है तो 1986 के बाद पहली बार कांग्रेस पार्टी अपनी रणनीति में बदलाव करेगी. 1986 में राजीव गांधी ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के मानवतावादी फैसले को उलट दिया था. 62 साल की शाहबानो को उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने तीन तलाक देकर सड़क पर बेसहारा छोड़ दिया था. इस पर कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का फैसला किया था जिसे राजीव गांधी ने मुस्लिम वोटों के लालच में पलट दिया था. इस फैसले से कांग्रेस पार्टी को अल्पसंख्यक वोटों का तात्कालिन फायदा मिला था. लेकिन वहीं भाजपा के लिए रास्ता खोल दिया था.

संसद-

राजीव गांधी हिंदु से ज्यादा पारसी थे. उनके पिता फिरोज गांधी एक विलक्षण सांसद थे. फिरोज ने 1950 में कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष की भूमिका तब निभाई थी जब संसद में दूर दूर तक कांग्रेस के सामने विपक्ष का नामोनिशान नहीं था. 1960 में 48 साल की उम्र में हार्ट अटैक से फिरोज गांधी की मृत्यु ने देश से एक नायाब राजनेता छीन लिया था. राजीव उस वक्त 16 साल के थे.

राहुल को अगर राजनीति में अपना रोल मॉडल किसी को बनाना चाहिए तो वो दादा फिरोज गांधी को. फिरोज गांधी एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के व्यक्ति थे जिनमें राष्ट्रवाद कूट कूटकर भरा था. आज के कांग्रेस पार्टी की तरह दिखावे की राजनीति वो नहीं करते थे. भाजपा ने राहुल गांधी की नई छवि का विरोध बिल्कुल गलत तरीके से किया. गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने राहुल को मुद्दा बनाया (क्योंकि वो उनके लिए खतरा बन गए थे) विकास को नहीं. इस बीच राहुल ने अपना नया अवतार दिखाया जिसका श्रेय उनकी मां सोनिया गांधी को नहीं दिया जा सकता.

rahul gandhi, congress, rajiv gandhiफिरोज गांधी ने कांग्रेस का विरोध तब किया था जब कांग्रेस का कोई विपक्ष नहीं था

राजीव गांधी अपनी छवि से इतर एक परिपक्व और ज्यादा मजबूत व्यक्ति थे. 1987 में जिस तरीके से उन्होंने विदेश सचिव एपी वेंकशवरन को पदमुक्त किया था वो उन्हें आज भी डरा देता है. अगर आज के समय में प्रधानमंत्री मोदी अपने विदेश सचिव एस जयशंकर को इस तरह से सार्वजनिक तौर पर बर्खास्त करें तो मीडिया उनके पीछे पड़ जाएगा.

राहुल के सामने एक ट्रिकी एजेंडा है लेकिन वो दो जगहों पर भाग्यशाली साबित हो सकते हैं. पहला, 2018 में 8 राज्यों- कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में चुनाव हैं. कांग्रेस के सामने कर्नाटक में अपनी सरकार बचाए रखने और राजस्थान में वापसी करने का अच्छा मौका है. इस तरह 2018 के अंत तक कांग्रेस के पास तीन बड़े राज्यों- पंजाब, कर्नाटक और राजस्थान की कमान होगी. साथ ही कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों में भी सत्ता उनके हाथ में होगी. इसके जरिए कांग्रेस की कायापलट का श्रेय राहुल को दिया जा सकता है.

भाग्य-

राहुल गांधी के पक्ष में दूसरा सुनहरा मौका भाजपा के अंदर फैली अव्यवस्था है. अगर गुजरात की तरह पूरे देश के किसान कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को परेशानी हो सकती है.

सीबीआई कोर्ट द्वारा 2जी मामले में आए फैसले के बाद भाजपा की कमजोरी सभी के सामने आ गई. अगर भाजपा के कानून मंत्री (जिनके अंदर सरकारी वकील काम करते हैं), गृह मंत्री (जो सीबीआई के लिए जिम्मेदार हैं) और वित्त मंत्री (जिनके अंदर प्रवर्तन निदेशालय काम करता है) किसी आसान से मामले में पर्याप्त सबूत इकट्ठा नहीं कर पाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कई कूटनीतिक क्षेत्रों में इन्होंने गलतियां की हैं.

rahul gandhi, congress, rajiv gandhiमोदी जी को अपनी कमियों पर नजर रखनी होगी

हालांकि मोदी सरकार के द्वारा पिछले साढ़े तीन साल में कई अच्छे काम किए गए हैं. जैसे कि मुद्रा बैंक के जरिए लाखों छोटे कारोबारियों को मदद पहुंचाई और स्वतंत्र कामगारों की एक फौज ही खड़ी कर दी. कई और स्कीमों के जरिए लोगों द्वारा सब्सिडी और पैसे ट्रांसफर करने का तरीका बदल दिया. लेकिन इसके साथ ही सरकार ने कई गलतियां भी की हैं. पुलिस रिफॉर्म की तरफ सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. ज्यूडिशियल रिफॉर्म में सुप्रीम कोर्ट से टकराव जारी है. लालफिताशही में कोई बदलाव नहीं आया है. जैसे वित्त मंत्रालय के अधिकारी वन रैंक वन पेंशन (OROP) पर पांच महीने तक कुंडली मारकर बैठे रहे. इसके बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसे पास किया. इस कदम से सैनिकों के बीच सरकार की साख गिरी.

गठबंधन-

इस जगह पर तो मोदी जी भी भाग्यशाली रहे हैं. 2019 में उन्हें भ्रष्टाचारी, कट्टरपंथी, कम्यूनिस्ट और जातिवादी लोगों से गठबंधन का सामना करना होगा. कांग्रेस को लेफ्ट, टीएमसी, सपा, बसपा, राजद, एनसीपी, एआईएमआईएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों से साथ निभाना होगा. सीताराम यचूरी, शरद पवार, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती, असदुद्दीन ओवैसी, उमर अबदुल्लाह की राजनीति को 2014 में जनता ने ठुकरा दिया था और शायद 2019 में भी उनका यही हश्र होगा. मोदी को ये पता है.

लेकिन साथ ही मोदी को ये भी पता है कि समय बीतता जा रहा है. गुजरात चुनावों के बाद अब अपनी सरकार को गति में रखने के लिए मोदी जी को अपने मैक्सिमम गवर्नेंस और मिनिमम गवर्नमेंट के वादे को पूरा करना होगा. बेतुके टैक्स लगाए जाने, खाने और फिल्मों जैसे तुच्छ मुद्दों पर नागरिकों की जिंदगी में दखल देना बंद कर व्यवहारिक काम पर ध्यान देना होगा.

पीएम के पास 2019 के चुनावों से पहले चीजें सही करने के लिए अब एक साल से भी कम समय बचा हुआ है.

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