राहुल गांधी का कश्मीर विचार: धारा 370 खत्म होने के तुरंत बाद और अब में क्या बदला
एक बात तो तय है कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की वापसी का रास्ता फिलहाल मुश्किल है. 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जिस साझा विपक्ष को तैयार करने की कवायद चल रही है, अगर वो आम चुनाव में कुछ कमाल कर देता है, तो ही धारा 370 के बारे में सोचा जा सकता है. उससे पहले किसी भी हाल में धारा 370 की पुनर्बहाली नामुमकिन है.
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जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के दो साल बीतने के बाद राज्य के पहले दौर पर पहुंचे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (rahul gandhi) की रगों में 'कश्मीरियत' बह रही है. कभी जम्मू-कश्मीर में लागू AFSPA एक्ट में संशोधन कर भारतीय सेना के अधिकारों को कम करने और धारा 370 से छेड़छाड़ न करने की बात कहने वाले राहुल गांधी अब केवल जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिए जाने और निष्पक्ष चुनाव की बात कहते दिख रहे हैं. मिशन कश्मीर पर निकले राहुल गांधी घाटी के दौरे पर सबसे पहले क्षीर भवानी मंदिर गए और इसके बाद हजरतबल मस्जिद में भी माथा टेका. कांग्रेस सांसद का 'कश्मीर विचार' इस बार कई मामलों में जुदा नजर आ रहा है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के तुरंत बाद और अब में क्या बदला है, जिसकी वजह से राहुल गांधी का कश्मीर विचार भी बदला हुआ दिख रहा है.
आखिर इन दो सालों में बदला क्या है?
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले के दो साल बीत जाने के बाद राज्य की फिजाओं में बदलाव की बयार देखने की मिल रही है. इन दो सालों में धारा 370 हटाए जाने के दौरान लगाए गए प्रतिबंध समाप्त हो चुके हैं. घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से कमी दिखाई दी है. दशकों तक आतंक का गढ़ बनी घाटी में अब बड़ी संख्या में पर्यटक प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ लेने पहुंच रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश के साथ ही योजनाएं धरातल पर आती दिख रही है. हजारों करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट राज्य में शुरू किए जा चुके हैं.
धारा 370 पर राहुल गांधी का रुख 2024 के आम चुनाव की दिशा भी तय करेगा.
राहुल गांधी का कश्मीर विचार क्यों बदला?
राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य का दर्जा और निष्पक्ष चुनाव की बात कह रहे हैं. लेकिन, धारा 370 को लेकर उन्होंने चुप्पी बना रखी है. हालांकि, राज्य के अन्य राजनीतिक दलों के संगठन गुपकार, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, की सबसे प्रमुख मांग अभी भी राज्य में धारा 370 की फिर से बहाली ही है. लेकिन, 370 पुनर्बहाली को लेकर राहुल गांधी का रुख शांत नजर आ रहा है. दरअसल, एक बात तो तय है कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की वापसी का रास्ता फिलहाल मुश्किल है. 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जिस साझा विपक्ष को तैयार करने की कवायद चल रही है, अगर वो आम चुनाव में कुछ कमाल कर देता है, तो ही धारा 370 के बारे में सोचा जा सकता है. उससे पहले किसी भी हाल में धारा 370 की पुनर्बहाली नामुमकिन है.
राहुल गांधी का रुख बदलने का सबसे बड़ा कारण भी यही है. 2024 से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों में से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल की तिमाही में चुनाव होने हैं. हिंदी पट्टी के तमाम राज्यों में भाजपा ने धारा 370 के खिलाफ लंबे समय से माहौल बनाया हुआ है. इसका फायदा भाजपा को चुनावों में मिला भी है. इस स्थिति में अगर राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद वाला रुख अपनाए रखते हैं, तो अपनी जिस इमेज का मेकओवर करने की वो कोशिश कर रहे हैं, उसे झटका लगना तय है.
दरअसल, धारा 370 के खत्म होने के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि कश्मीर को लेकर जो जानकारी मिल रही है, उसके हिसाब से वहां गलत हो रहा है और लोग मारे जा रहे हैं. उनके इस बयान को आधार बनाकर पाकिस्तान ने भारत को हर मुमकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर घेरने की कोशिश की थी. हालांकि, पाकिस्तान को हर जगह से निराशा ही हाथ लगी थी. लेकिन, ऐसा लगता है कि इन तमाम चीजों से राहुल गांधी ने सबक ले लिया है. दरअसल, धारा 370 को लेकर राहुल गांधी का रुख 2024 के आम चुनाव की दिशा भी तय करेगा.
जम्मू-कश्मीर में धारा-370 को निष्क्रिय किए जाने के बाद बीते साल हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया. वहीं, 'गुपकार' संगठन हाशिये पर जाता दिखा था. भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन आलआउट' के जरिये राज्य में आतंकवाद की कमर तोड़ दी है. अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कसने से घाटी अब पहले की अपेक्षा काफी शांत नजर आती है. अगर राहुल गांधी की ओर से फिर से धारा 370 का राग छेड़ा जाता है, तो उनके पाकिस्तान के पोस्टर ब्वॉय बनने का खतरा है. इसके चलते भाजपा को उन पर फिर से हमलावर होने का मौका मिल जाएगा.
साल 2021 में राहुल गांधी एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं और ऐसा पहली बार दिख रहा है कि कांग्रेस सांसद साझा विपक्ष की कवायद में खुद को जबरन थोपने से बच रहे हैं. 2024 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद के सामने खुद को स्थापित करने की चुनौती है. और, वो कश्मीर को लेकर शायद ही कोई जोखिम लेना चाहेंगे.
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