राहुल गांधी चाहते हैं कि वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी जरूर चुनाव जीतें
प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर कांग्रेस नेतृत्व को फीडबैक की जरूरत रही होगी. आजमाने के लिए प्रियंका ने बातों बातों में खुद ही बात आगे बढ़ा दी. अब उसके राजनीतिक नफे-नुकसान की पैमाइश हो रही है - जिस पर आखिरी फैसला सोनिया गांधी को लेना है.
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प्रियंका गांधी वाड्रा की गंगा यात्रा में शामिल शालिनी यादव वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ने जा रही हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव को लेकर सस्पेंस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस नेतृत्व खुद भी चाहता कि ये सस्पेंस बना रहे. मालूम नहीं चुनाव लड़ने का कितना फायदा हो, फिलहाल जो लाभ मिल रहा है वो भी कम तो नहीं.
शालिनी यादव कांग्रेस की ओर से वाराणसी के मेयर का चुनाव लड़ी थीं, लेकिन बीजेपी उम्मीदवार ने हरा दिया था. राजीव गांधी की सरकार में मंत्री रहे श्यामलाल यादव की बहू शालिनी यादव अब समाजवादी पार्टी के टिकट पर वाराणसी से सपा-बसपा गठबंधन की उम्मीदवार हैं.
ऐसी चर्चा है कि वाराणसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने को लेकर प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी दोनों की अलग अलग राय है - और अब कहा जा रहा है कि आखिरी फैसला सोनिया गांधी को लेना है.
वाराणसी पर राहुल-प्रियंका की एक राय नहीं
शालिनी जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोल रही हैं, चुनाव लड़ने की स्थिति प्रियंका वाड्रा भी उसकी जद में आ सकती हैं. शालिनी यादव प्रधानमंत्री मोदी बाहरी बता कर कहने लगी हैं कि काशी को क्योटो बनाने की जरूरत नहीं है. शालिनी यादव का कहना है कि कोई बाहरी शख्स बनारस को समझ ही नहीं सकता. शालिनी यादव विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर से भी खफा नजर आती हैं. शालिनी चुनावी लड़ाई को स्थानीय बनाम बाहरी का रंग देने की कोशिश कर रही हैं और लगे हाथ संकेत है कि प्रियंका के खिलाफ भी उनका यही स्टैंड रहेगा. वैसे भी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव कह चुके हैं कि शालिनी यादव उस स्थिति में भी मैदान नहीं छोड़ने वाली, भले ही कांग्रेस प्रियंका वाड्रा को ही वाराणसी सीट से टिकट क्यों न दे दे.
लोक सभा चुनाव लड़ने को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा पहले खुद फैसला करने वाली थीं. राजनीति में उनके आने की तरह ही राहुल गांधी ने ही कहा था कि चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने को लेकर वो खुद ही फैसला करेंगी. प्रियंका वाड्रा ने अपने चुनाव लड़ने की चर्चा न सिर्फ खुद ही छेड़ दी बल्कि बहस में बनारस को भी शामिल कर दिया. यहां तक कि राहुल गांधी भी अंतिम समय तक सस्पेंस बरकरार रखने के मूड में लगते हैं.
द हिंदू अखबार के साथ एक इंटरव्यू में जब प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने का सवाल उठा तो राहुल गांधी का जवाब था, 'आप खुद अंदाजा लगा लें. अंदाजा हमेशा गलत नहीं होता.'
फिर सवाल हुआ कि क्या वो प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने से इंकार नहीं कर रहे हैं, राहुल गांधी बोले, 'मैं ना इसकी पुष्टि कर रहा हूं और ना ही इनकार कर रहा हूं.'
यहां तक कि रॉबर्ट वाड्रा भी प्रियंका के वाराणसी से चुनाव लड़ने का संकेत दे चुके हैं. माना जा रहा है कि प्रियंका खुद भी वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने का मन बना चुकी हैं - लेकिन राहुल गांधी की थ्योरी के चलते उनके इरादे मिसफिट हो जा रहे हैं.
वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर राहुल और प्रियंका में मतभेद क्यों?
राहुल गांधी का मानना है कि विरोधी होने के बावजूद बड़े नेताओं को जबरन हराने की कोशिश नहीं होनी चाहिये. राहुल गांधी चाहते हैं कि ऐसे नेता जीतें और संसद में बने रहें ताकि लोकतंत्र मजबूत और स्वस्थ रहे. 1984 में अमिताभ बच्चन द्वारा हेमवती नंदन बहुगुणा को हराने को राहुल गांधी गलत परंपरा मानते हैं. अमिताभ बच्चन को राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने ही कांग्रेस का टिकट दिया था. जाहिर है, राहुल गांधी बीजेपी को भी संदेश देना चाहते हैं कि अमेठी में स्मृति ईरानी को लड़ाकर वो ठीक नहीं कर रही है.
प्रियंका पूरी तरह तो राहुल गांधी के विचार से असहमत नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के बारे में उनकी राय बिलकुल अलग है. प्रियंका की दलील है कि चूंकि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं और राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन मानते हैं, विचारधारा के मतभेद को कुचलना चाहते हैं - इसलिए बनारस पहुंच कर उन्हें घेरा जाना ही चाहिये.
राहुल गांधी भी प्रियंका की बात तो सीधे सीधे खारिज नहीं करते. राहुल गांधी का तर्क ये है कि मोदी की अपनी राजनीति है, लेकिन कांग्रेस को तो उस रास्ते पर चलना भी नहीं है. याद दिलाते हैं, कांग्रेस का तो बीजेपी मुक्त भारत जैसा कोई स्लोगन भी नहीं है. राहुल गांधी समझा रहे हैं कि हमें राजनीतिक मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिये.
अब ये सुनने में आ रहा है कि भाई-बहन के इस राजनीतिक झगड़े को सुलझाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी के पास पहुंच गयी है. वाराणसी से चुनाव लड़ने के मुद्दे पर अब प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी और सोनिया गांधी मिल कर कोई फैसला लेने वाले हैं.
प्रधानमंत्री मोदी 26 अप्रैल को वाराणसी में नामांकन करने वाले हैं. एक दिन पहले मोदी का शहर में रोड होगा. प्रियंका वाड्रा का भी वाराणसी का कार्यक्रम बना है - 29 अप्रैल का. देखना है तब तक क्या फैसला होता है?
राहुल गांधी मोदी को हराये जाने के पक्ष में नहीं हैं
राहुल गांधी की मुश्किल ये है कि वो राजनीति में आदर्शवाद के हिमायती हैं, लेकिन मुश्किल ये है कि वो खुद भी उस पर बहुत देर तक टिक नहीं पाते. दूसरों को तो डांट डपट भी देते हैं लेकिन अपने स्तर पर उनका रवैया नहीं बदलता. जब मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी को नीच कहा तो राहुल गांधी ने सख्त एक्शन लिया. जब सीपी जोशी ने प्रधानमंत्री मोदी की जाति को उछाला तो माफी मंगवाई. गुजरात चुनाव के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी ने 'विकास' को गुजरात और खुद से जोड़ दिया तो 'विकास पागल है' मुहिम रुकवा दी. मगर, कुछ ही दिन बीते होंगे कि राहुल गांधी घूम घूम कर कहने लगे मोदी झूठ बोलते हैं - और नया नारा भी गढ़ डाला - 'चौकीदार चोर है'. एक बार राहुल गांधी कहते हैं कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं और फिर उसी वक्त नारे लगवाते हैं - 'चौकीदार चोर है'. आखिर राहुल गांधी के राजनीतिक मूल्यों पर टिके रहने की बात को कैसे समझा जाये?
वाराणसी से प्रियंका के लड़ने के फायदे और नुकसान
प्रियंका वाड्रा के वाराणसी से चुनाव लड़ने के कुछ फायदे हैं तो नुकसान भी हैं. फायदा तो ये है कि 2014 में जैसा मैसेज अरविंद केजरीवाल ने दिया था, प्रियंका के चुनाव लड़ने का भी वही संदेश होगा. ये वो थ्योरी है जिसमें लड़ाई को सिर्फ चैलेंज के तौर पर देखा जाता है, हार या जीत के चश्मे से नहीं. ये बात अलग है कि शीला दीक्षित को शिकस्त देने के बाद केजरीवाल को भी लगा हो कि मोदी को भी हराया ही जा सकता है.
प्रियंका गांधी भी यही चाहती हैं कि मोदी को घेर कर लोगों को मैसेज दिया जाये कि कांग्रेस चुनौतियों से न डरती है न भागती है. सोनिया गांधी ने भी तो नामांकन के बाद कहा ही था कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी भी अजेय माने जाते रहे, लेकिन कांग्रेस ने हराया ही. वैसे सोनिया का उस हार से आशय सत्ता से बेदखल किया जाना रहा, न कि संसदीय क्षेत्र में चुनावी शिकस्त देने की बात थी.
प्रियंका वाड्रा को 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की सलाह दी थी. कांग्रेस नेतृत्व ने ऐसा नहीं किया. माना गया कि प्रियंका कांग्रेस की ट्रंप कार्ड हैं जिसे बचा कर रखा गया है आखिरी हथियार के तौर पर. गौर करने वाली बात ये है कि प्रियंका वाड्रा की एंट्री बड़े ही छोटे स्तर पर हुई है. राहुल गांधी की तरह उन्हें उपाध्यक्ष नहीं, बल्कि महासचिव बनाया गया है - और वो भी यूपी के एक हिस्से का. मौजूदा स्थिति ये है कि कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा की हैसियत ज्योतिरादित्य सिंधिया के बराबर रखी गयी है. कांग्रेस की बैठकों में भी प्रियंका वाड्रा सोनिया और राहुल के करीब नहीं बल्कि बाकी महासचिवों के बीच ही बैठती हैं - इन बातों के भी राजनीतिक मायने होते हैं जिन्हें समझने की जरूरत होती है.
प्रियंका के चुनाव लड़ने का नुकसान तो यही होगा कि कांग्रेस का एक ब्रांड हल्का हो जाएगा. हार जाने की स्थिति में ठप्पा लग जाएगा - ऐसा इसलिए क्योंकि खुद कांग्रेस को भी इस बात का यकीन नहीं है कि प्रियंका वाड्रा प्रधानमंत्री को वाराणसी में शिकस्त दे सकती हैं.
प्रियंका को लेकर कांग्रेस के भीतर से ही एक वैकल्पिक सुझाव आया है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रियंका वाड्रा को लोक सभा में बाद में एंट्री देने की सलाह दी जा रही है. राहुल गांधी अमेठी और वायनाड दोनों ही सीटों से अगर जीत जाते हैं तो भी एक ही सीट रख सकते हैं. ऐसी सूरत में राहुल गांधी वायनाड अपने पास रखें और प्रियंका वाड्रा अमेठी जैसी अति सुरक्षित सीट से उपचुनाव लड़ कर लोक सभा पहुंच जाएं. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि राहुल गांधी जीतने की सूरत में अमेठी छोड़ सकते हैं, वायनाड नहीं.
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