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Updated: 23 जुलाई, 2017 01:46 PM
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बिहार में महागठबंधन के सेंसेक्स में उतार चढ़ाव के बीच राहुल गांधी और नीतीश कुमार की मुलाकात सुर्खियों में है. मुलाकात को लेकर आई मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि आधे घंटे से ज्यादा चली इस बातचीत में नीतीश ने तेजस्वी यादव के जल्द से जल्द इस्तीफे का दबाव बनाया. नीतीश ने राहुल को ये भी समझाने की कोशिश की कि सीबीआई के फंदे में फंसे तेजस्वी का इस्तीफा महागठबंधन की मजबूती और उनकी छवि के लिए कितना जरूरी है? यहां तक कि कठघरे में खड़े लालू प्रसाद और उनके परिवार का कांग्रेस अब बचाव न करे.

ये सारी बातें ठीक हैं, लेकिन क्या राहुल ये सब आंख मूंद कर मान लेंगे? क्या राहुल गांधी की अपनी भी कोई सोच नहीं होगी? और अगर तेजस्वी के मामले में राहुल गांधी अपने तरीके से सोच रहे होंगे तो उनका स्टैंड क्या होगा?

कुछ छोटी-छोटी बातें

तेजस्वी यादव के अलावा भी नीतीश कुमार के पास बहुत सी बातें थीं राहुल से हुई मुलाकात में चर्चा के लिए. मुलाकात के आगे-पीछे उन्हें भी खबर मिली होगी कि किस तरह केंद्र सरकार ने लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को पटना एयरपोर्ट पर मिली वीआईपी सुविधा वापस ले ली है. टीवी पर सुशील मोदी का वो बयान भी सुना होगा जिसमें उन्होंने कहा कि नीतीश अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं. सुशील मोदी का तर्क रहा कि जब राहुल गांधी भ्रष्टाचार के मामले में वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट के बाद इस्तीफा नहीं ले सके, तो वो तेजस्वी को इस्तीफा देने के लिए कैसे कह सकते हैं भला? ऐसी छोटी छोटी बातों पर दोनों का ध्यान तो गया होगा लेकिन चर्चा हुई होगी, ऐसा तो नहीं लगता.

rahul gandhi, nitish kumarकौन किसकी बात मानेगा?

निश्चित रूप में नीतीश ने सफाई दी होगी कि क्यों और किन परिस्थितियों में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का साथ छोड़ कर एनडीए उम्मीदवार का सपोर्ट किया. उस शिकवे का भी जिक्र जरूर आया होगा जो गुलाम नबी आजाद की नीतीश पर निजी टिप्पणी को लेकर रहा. हालांकि, राहुल और सोनिया ने इस पर नीतीश से बात कर ली थी. नीतीश ने उस बात का भी जिक्र किया होगा जो लालू की इफ्तार पार्टी के वक्त कही थी - 'विपक्ष 2019 की तैयारी करे और 2022 में बिहार की बेटी को राष्ट्रपति की गद्दी पर बैठाने का सपना भी पूरा करे.' वॉर्म-अप के आखिर में नीतीश ने भरोसा भी दिलाया होगा कि वो विपक्ष के साथ हैं - अगर ऐसा न होता तो भला उप राष्ट्रपति चुनाव में गोपाल कृष्ण गांधी का सपोर्ट क्यों करते?

...और तेजस्वी विमर्श

हफ्ते भर पहले ही तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनके दफ्तर में करीब आधे घंटे तक मुलाकात की थी. समझा गया कि तेजस्वी ने इस मुलाकात में अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के सभी आरोपों पर सफाई दी थी.

तेजस्वी के बारे में राहुल का रुख इस बात पर निर्भर करता है कि वो खुद उनकी क्या सोच है. लालू के बारे में राहुल की अलग राय है और सोनिया गांधी की बिलकुल अलग. ये बात मौके बेमौके दिख भी जाती है. लालू पर अपनी राय के चलते ही नीतीश को महागठबंधन का नेता बनाये जाने पर उनका जोर रहा. दागी नेताओं वाले ऑर्डिनेंस की कॉपी सरेआम फाड़ना भी इसी का प्रदर्शन रहा. इस हिसाब से देखें तो राहुल को मुलायम सिंह से परहेज रहा और अखिलेश के साथ खुशी खुशी हाथ मिलाये. तो क्या तेजस्वी को लेकर भी राहुल की अखिलेश जैसी ही राय हो सकती है?

राहुल की ऐसी सोच के पीछे एक दलील तो हो ही सकती है कि तेजस्वी के खिलाफ जो एफआईआर हुआ है उसके लिए जिम्मेदार तो लालू ही हैं. ऐसे में अगर वो तेजस्वी को सीधे सीधे जिम्मेदार नहीं मानते तो नीतीश की राय से इत्तेफाक रखने की गुंजाइश कम ही बचती है.

वैसे तो नीतीश को मोदी से भी तब तक दिक्कत नहीं हुई जब तक बात प्रधानमंत्री पद पर नहीं आ गई. लालू के सजायाफ्ता होकर जमानत पर छूटे होने से भी नीतीश को हाथ मिलाते वक्त कोई दिक्कत नहीं हुई न अब है, फिर तेजस्वी के खिलाफ एफआईआर होने भर से आखिर इतनी परेशानी क्यों है?

तेजस्वी के मुद्दे पर राहुल गांधी, नीतीश की बात मानेंगे या अपनी मनवाएंगे, ये बात गौर करने वाली है. अगर राहुल को नीतीश की दलील सिर्फ राजनीतिक और रणनीतिक लगी तो वो उन्हें मना भी कर सकते हैं. कह सकते हैं पिछली बार लालू को मनाया था, इस बार आप मान जाइए.

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