New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 03 अगस्त, 2021 10:42 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को महागठबंधन का रूप देने के लिए बैठकों का दौर जारी है. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी और एनसीपी चीफ शरद पवार के साथ ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी विपक्ष को एक बैनर तले लाने की कोशिशों को तेज कर दिया है. भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को मजबूत करने की कोशिशों का रंग फिलहाल संसद का मानसून सत्र में देखा जा सकता है. पेगासस जासूसी कांड, कृषि कानून और महंगाई जैसे मुद्दों पर विपक्ष द्वारा मोदी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं. वहीं, राहुल गांधी ने मानसून सत्र में मोदी सरकार को घेरने की रणनीति को और धार दने के लिए 17 विपक्षी पार्टियों के नेताओं को 'ब्रेकफास्ट डिप्लोमेसी' का सहारा लिया. हालांकि, राहुल गांधी के इस ब्रेकफास्ट पर बुलावे से आम आदमी पार्टी और बसपा ने दूरी बनाई है. लेकिन, ब्रेकफास्ट के बाद 15 राजनीतिक दलों के नेताओं को साथ लेकर राहुल गांधी ने संसद तक साइकिल मार्च कर एक बार फिर से साझा विपक्ष के चेहरे को लेकर अपनी दावेदारी को मजबूती से पेश कर दिया है.

तमाम दलों का समर्थन पाने वाले राहुल गांधी की 'नाश्ते पर चर्चा' से बसपा और आप की दूरी पूरी तरह से राजनीतिक है.तमाम दलों का समर्थन पाने वाले राहुल गांधी की 'नाश्ते पर चर्चा' से बसपा और आप की दूरी पूरी तरह से राजनीतिक है.

बसपा और आप को क्यों पसंद नहीं आई 'नाश्ते पर चर्चा'?

तमाम दलों का समर्थन पाने वाले राहुल गांधी की 'नाश्ते पर चर्चा' से बसपा और आप की दूरी पूरी तरह से राजनीतिक है. अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से ज्यादातर प्रदेशों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी खुद को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है. अगर वो अभी से महागठबंधन के साथ आ जाती है, तो 2024 से पहले होने वाले गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं, इसके उलट विपक्षी नेताओं को एकजुट करने के उद्देश्य से दिल्ली दौरे पर आईं तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी से मिलने अरविंद केजरीवाल खुद ही पहुंच गए थे. इस स्थिति में राहुल गांधी की इस कवायद से आप की 'उचित' दूरी का मामला पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का नजर आता है.

बसपा की बात करें, तो मायावती का सियासी भविष्य दांव पर लगा हुआ है. उत्तर प्रदेश में अकेले विधानसभा चुनाव लड़कर मायावती जानने की कोशिश कर रही हैं कि आखिर बसपा में कितनी ताकत बची है. वरना यूपी में किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करने की हुंकार भर रहीं बसपा पंजाब में अकाली दल के साथ गलबहियां करती नजर नहीं आती. अकाली दल से भाजपा की दूरी का फायदा उठाने के लिए मायावती ने जो दांव चला है, वो कितना कामयाब होगा, ये वक्त बताएगा. लेकिन, एक बात तय है कि अगले साल होने वाले चुनावों में बसपा सुप्रीमो की साख का पता चल जाएगा. लेकिन, यूपी में सपा, कांग्रेस और बसपा की इस लड़ाई का फायदा कहीं न कहीं भाजपा के खाते में जाता दिख रहा है.

ममता बनर्जी पहले ही डाल चुकी हैं हथियार

मिशन 2024 में महागठबंधन का अघोषित चेहरे बन चुकीं तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी को भी कांग्रेस ने साध लिया है. अपने दिल्ली दौरे पर ममता बनर्जी की कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद से ही स्थितियां साफ हो गई थीं कि 'दीदी' एक साधारण कार्यकर्ता ही रहेंगी. इस बैठक में राहुल गांधी की मौजूदगी ने ये इस बात पर मुहर लगा दी थी कि कांग्रेस सांसद पर्दे के पीछे रहते हुए विपक्ष को आगे रखेंगे. लेकिन, विपक्ष के चेहरे के तौर पर वो अपनी पहचान को कमजोर नहीं पड़ने देंगे. नाश्ते पर चर्चा के कार्यक्रम में टीएमसी के सांसदों की उपस्थिति भी काफी हद तक यही इशारा कर रही है.

इस मामले में एनसीपी नेता शरद पवार का साथ भी कांग्रेस को मिलता दिख रहा है. तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट के बाद कांग्रेस के बिना विकल्प न होने की बात कहने वाले शरद पवार ने बीते दिनों आरजेडी प्रमुख लालू यादव से मुलाकात की थी. इस दौरान सपा सांसद रामगोपाल यादव भी बैठक में मौजूद रहे थे. वहीं, शरद पवार ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में किस्मत आजमाने का फैसला भी कर लिया है. लेकिन, चर्चा इस बात की ज्यादा है कि शरद पवार सपा के साथ गठबंधन में कांग्रेस को शामिल कराने की जद्दोजहद कर रहे हैं.

बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं

2021 में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पूरी तरह से एक नए कलेवर में नजर आ रहे हैं. बड़े मौकों पर विदेश यात्रा का रुख कर लेने वाले राहुल गांधी फिलहाल राजनीति को लेकर सीरियस होते दिख रहे हैं. उनके नेतृत्व में अब कांग्रेस फ्रंटफुट पर आकर बैटिंग कर रही है. ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी ने पूरी तरह से कांग्रेस का कायाकल्प करने की ठान ली है. पंजाब से लेकर राजस्थान का हल निकालने में राहुल गांधी की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस में रहते हुए आरएसएस और भाजपा से विचारों को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रखने वालों को राहुल गांधी ने पार्टी छोड़ने का अल्टीमेटम भी दे दिया है. कुल मिलाकर राहुल गांधी का एक बिल्कुल नया अवतार लोगों के सामने हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विपक्षी दलों के समर्थन के साथ राहुल गांधी ही विपक्ष के चेहरे की रेस में नंबर वन खिलाड़ी बने रहेंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय