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Updated: 10 अगस्त, 2018 04:37 PM
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शेक्सपीयर ने कहा था, "नाम में क्या रखा है". शेक्सपीयर का यह कथन अबतक लाखों- करोड़ों घटनाओं में उद्धरण बन चुका है, मगर सैकड़ों साल बाद बीजेपी ने शेक्सपीयर को गलत साबित करने की ठान ली है. मोदी सरकार ने गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर रखी योजनाओं का नाम बदला तो कहा गया कि देश में दूसरे भी तो महापुरुष हैं. मोदी की देखादेखी राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने भी गहलोत की कांग्रेस सरकार की योजनाओं से नाम हटाकर अटल, दीनदयाल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी रख दिया. तब तक तो लोगों को बीजेपी ये समझाती रही कि आखिर राज्य में क्यों 60 फीसदी योजनाएं अकेले राजीव-इंदिरा के नाम पर हैं.

मगर वसुंधरा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले धार्मिक आधार पर सियासी दांव खेला है जो बेशक बीजेपी के लिए वोट बैंक की शर्तिया गारंटी है मगर यह देश की सेक्यूलर व्यवस्था के लिए घातक हो सकता है. राजस्थान की राज्य सरकार इसे अकेले नहीं कर सकती है लिहाजा इस काम में भारत सरकार पूरी मदद कर रही है.

राजस्थान में अब हिंदू बहुल आबादी के गांवों के मुस्लिम नाम बदले जा रहे हैं. राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग की सिफारिश पर भारत सरकार ने ऐसे करीब 17 गांवों के नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसके लिए भारत सरकार को नाम भेजे गए हैं जिन गांवों के नाम बदलने की हरी झंडी भारत सरकार से मिल जा रही है राजस्थान सरकार का राजस्व विभाग गांव के नए नामों का गजट प्रकाशन कर रही है. सरकार का कहना है कि गांव की पंचायत की सिफारिश पर ये सब किया जा रहा है. गांव के लोगों का कहना है उनकी ये मांग काफी लंबे समय से थी जिसकी सुनवाई अब जाकर हो रही है.

नाम, गांव, राजस्थान, हिंदू, मुस्लिम, वसुंधरा राजे, भाजपामियां का बाड़ा नाम का बोर्ड हटकर महेश नगर हो गया

सवाल ये नहीं है कि किसी गांव का बहुमत क्या चाहता है बल्कि व्यवस्था देश के सेक्यूलर फैब्रिक की है. कल अगर जयपुर के मुस्लिम बहुल इलाके के लोग रामगंज का नाम बदलकर ईमामबाड़ा करने की मांग करने लगे या फिर टोंक का नाम नवाब की रियासत करने की मांग करने लगे तो फिर क्या होगा? ये सच है कि जिन गांवों का नाम बीजेपी सरकार बदल रही है उन गांवों में बीजेपी को वोट मिलेगा क्योंकि गांव की जनता अभी शहरों की तरह काठ की सोच की नहीं बनी है. स्वाभावगत रूप से हिंसक कम और भावनात्मक रूप से वो हिंदू ज्यादा हैं. ऐसे में मुस्लिम नाम बदलने से वो बीजेपी से बेहद खुश हैं मगर ये सच है कि बीजेपी ने न केवल पंडोरा बॉक्स खोल दिया है बल्कि भीतरी हिंदुस्तान की देहाती दुनिया की सामाजिक समरसता पर भी चोट की है. गांव-गांव की पंचायतें अपने गांव के नाम बदलने की फाईल लेकर सरकार के पास पहुंचना शुरू हो जाएंगी. सरकार के लिए आनेवाले दिनों में ये बड़ा सिरदर्द बनने जा रहा है.

राजस्थान के बाड़मेर का मियां का बाड़ा का नाम अब महेश नगर हो गया है. मियां का बाड़ा नाम के साईन बोर्ड हटा कर जिला कलेक्टर हर जगह महेश नगर का साईन बोर्ड लगा रहे हैं.

स्कूल से लेकर पंचायत भवन तक नए सिरे से नाम से पुतवाए जा रहे हैं. गांव के लोगों का कहना है कि मियां शब्द मुस्लिम लोगों के लिए प्रयोग होता और बाड़ा मतलब रहने की जगह होती है ऐसे में ऐसा प्रतित होता था कि ये मुस्लिमों का गांव है जबकि केवल तीन घर में 21 लोगों की मुस्लिम आबादी है. गांव के पूर्व सरपंच हनुवंत सिंह का कहना है कि मुगल काल में इसका नाम महेश नगर था जिसे बदलकर मियां का बाड़ा कर दिया गया था. महेशनगर के पूर्व सरपंच हनुवंत सिंह ने बताया कि दस साल पहले हमने मारवाड़ राजघराने से दस्तावेज निकालकर राजस्थान सरकार को पेश किए थे, मगर खुशी है कि अब जाकर हमारी मांगे पूरी हुई है.

राजस्थान सरकार के राजस्व राज्यमंत्री अमराराम ने कहा कि मियां का बाड़ा में तीन मुस्लिम परिवार रहते हैं ऐसे में इसका नाम मियां का बाड़ा क्यों रखा जाए? हमने पूरी प्रक्रिया अपनाने के बाद नाम बदला है. मगर क्या इस गांव के लोगों का महेशनगर वासी कहे जाना उनकी जिंदगी में कोई परिवर्तन लाएगा? जब यह सवाल हमने पूछा तो इसका जवाब किसी के पास नहीं था. मियां का बाड़ा अकेले महेश नगर नहीं बना है, बल्कि अजमेर जिले के किसनगढ़ के सलेमाबाद का नाम भी बदलकर श्री निंबार्क तीर्थ कर दिया गया है. सलेमाबाद के सरपंच रणधीर सिंह ने बताया कि नाम यहां के रहनेवाले जागीरदार सलीमखान के नाम पर पड़ा था लेकिन यहां हिंदूओं के निंबार्क तीर्थ होने की वजह से लंबे समय से इसका नाम बदलने की मांग हो रही थी. यहां पर मात्र एक मुस्लिम परिवार है. राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने तो भारत सरकार की सहमति के पहले ही यहां के स्कूल के नाम में निंबाकाचार्य जोड़ दिया है.

नाम, गांव, राजस्थान, हिंदू, मुस्लिम, वसुंधरा राजे, भाजपावसुंधरा राजे सरकार अपने राज्य के गावों के नाम बदल रही है. केंद्र इसमें मदद कर रहा है.

झूंझनू में दो इस्माइलपुर हैं जहां पर केवल हिंदूओं की आबादी है. राजस्थान में कई गांव ईस्माइलपुर के नाम से हैं क्योंकि जयपुर के नगर नियोजक मिर्जा ईस्माइल थे जिनके नाम पर आज भी जयपुर की एमआई रोड है. एक ईस्माइलपुर का नाम पिचनवा खुर्द रख दिया गया है जबकि दूसरे ईस्माइलपुर का नाम कौशलनगर या ईश्वर नगर रखना चाहते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि गांव में हिंदू आबादी ही है ऐसे में मुस्लिम नाम रखने का कोई औचित्य नहीं है. सरपंच नितीराज सिंह ने बताया कि हम काफी लंबे समय से नाम बदलने की मांग कर रहे हैं. हमारे गांव में कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता है.

चित्तौड़गढ़ जिले की भदेसर तहसील के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार मंडफिया गांव देश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. यहां सांवलिया सेठ का विशाल मंदिर है, जिसका अक्षरधाम की तर्ज पर विकास हुआ है. ऐसे में सांवलिया सेठ का नाम प्रदेशवासियों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है. सुबह उठते ही लोग सांवलियाजी का नाम ही लेते हैं, ऐसे में गाँव की पहचान भी सांवलियजी के रूप में ही बन गई है. लंबे समय से मंडफिया गांव का नाम सांवलियाजी करने की मांग उठती आई है. राजस्व नाम आज भी इस गांव का मंडफिया ही है. ऐसे में कई बार श्रद्धालुओं को दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

भीलवाड़ा जिले की सीमा पर मंडपिया गाँव भी है, ऐसे में कई बार सांवलियजी की डाक सहित महत्वपूर्ण दस्तावेज जिनमे चढ़ावे में आने वाले चेक, मनीऑर्डर आदि भी समय पर नहीं पहुंचते. जिसके चलते क्षेत्रवासियों की भावना है कि गांव का नाम सांवलियाजी हो. चित्तौड़ के ही मोहम्मदपुरा का नाम मेडी का खेड़ा, नवाबपुरा का नाम नईसरथल, रामपुर-आजमपुर का सीताराम जी का खेड़ा रखने का नाम भी प्रस्तावित है.

राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग के सब-रजिस्ट्रार सुरेश सिंधी का कहना है कि एक पूरी प्रक्रिया अपनाकर नाम बदला जाता है. पहले पंचायत सुबूत या फिर नाम बदलने के आधार पर सर्वसम्मति से राजस्व विभाग को सिफारिश भेजता है जिसकी पुष्टि कर राज्य सरकार भारत सरकार को भेजती है जहां से आनुमति मिलने के बाद हम नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू करते हैं. हमने कई नाम बदल दिए हैं और कई प्रक्रिया में हैं.

इन गांवों के अलावा बहुत सारे ऐसे गांव भी हैं जिनका नाम या तो जातियों के आधार पर बदला जा रहा है या फिर पंचायत की मांग पर सही किया जा रहा है. राजस्थान के जालौर का नरपाड़ा का नाम नरपुरा, मेडा ब्राह्मन का नाम मेडा पुरोहितान, नवलगढ़ के डेवा की ढाणी का नाम गिरधारीपुरा किया गया है. कांग्रेस के लिए बड़ी दुविधा की स्थिति बन गई है.

कांग्रेस के लिए बीजेपी की ऐसी चाल पर सांप छूछूंदर की हालत हो रही है. न निगला जाता है और न उगला जाता है. बेशक ये गांवों की हिंदू आबादी के लिए भावनात्मक मुद्दा रहा है ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने किनारे से कटते हुए कहा कि बीजेपी हमेशा लोगों को सियासी फायदा लेने के लिए लोगों को बांटने का काम करती है.

कामदार नामदार बनने के लिए क्यों बेचैन है, ये समझ से परे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमि‍त शाह खुद को कामदार बताते हैं. कहते हैं कि उनकी पहचान उनका नाम है. मगर जिस तरह से कामदार नाम बदलने का सियासी दांव चल रहे हैं उससे तो लग रहा है कि कामों में कहीं कोई कमी रह गई है. चुनाव में नाम की राजनीति इसकी भरपाई कर सकती है.

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