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Updated: 16 फरवरी, 2016 05:33 PM
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रविवार को राजनाथ सिंह ने कहा, ''देश को यह भी सोचना होगा कि जेएनयू में जो हुआ उसे आतंकी हाफिज सईद ने सपोर्ट किया. यह दुखद है.'' उसके बाद खुद हाफिज सईद ने बयान जारी कर कहा कि उसका इस मामले से कोई नाता नहीं है. बाद में दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी का भी बयान आ गया कि घटना में लश्कर के हाथ होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं.

ऐसा लगता है जैसे जुमलों के उस दौर की वापसी हो गई है जब हर छोटी बड़ी घटना के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताया जाता रहा.

दूसरों को नसीहत, खुद की...

चुनावों में ऐसे जुमले गढ़े जाते हैं. ब्लैक मनी पर नरेंद्र मोदी के बयान पर जब बवाल मचा तो अमित शाह ने उसमें हास्य का पुट पिरोने की कोशिश की. लगता है बीजेपी में अब हास्य को भी गंभीरता से लिया जाने लगा है.

वीके सिंह के एक बयान पर बवाल मचने के बाद खुद राजनाथ सिंह ने भी पिछले साल अक्टूबर में बयान देते वक्त संयम बरतने की सलाह दी थी. हरियाणा में दो दलित बच्चों की हत्या के मामले में वीके सिंह ने कहा था, "हर चीज के लिए सरकार जिम्मेवार नहीं, कहीं उसने पत्थर मार दिया कुत्ते को, तो सरकार जिम्मेवार है, ऐसे नहीं है."

तब राजनाथ ने कहा था, "मुझे लगता है कि सत्ताधारी दल के नेता होने के नाते हम लोगों को किसी तरह का बयान देते समय अधिक सतर्क रहने की जरूरत है."

विपक्ष अब राजनाथ से इस बात के सबूत मांग रहा है. गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करनेवाले दिल्ली पुलिस के कमिश्नर देशद्रोह के मामले में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी को तो सही ठहरा रहे हैं, लेकिन इस मामले में हाफिज सईद का हाथ होने के उन्हें भी कोई सबूत नहीं मिले हैं.

मिलेंगे भी कैसे जिस ट्विटर अकाउंट के भरोसे गृह मंत्री को जेएनयू में कार्यक्रम के पीछे आतंकी हाथ होने का इनपुट मिला वो तो फर्जी निकला.

नो कमेंट्स प्लीज!

इंडियन एक्सप्रेस के 'डेल्ही कॉन्फिडेंशियल' कॉलम में राजनाथ के बयान के बाद बीजेपी नेताओं की हालत का जिक्र है. राजनाथ के बयान पर प्रतिक्रिया के लिए जब बीजेपी के एक महासचिव को फोन किया गया तो उनका जवाब था, "मैं कल टीवी नहीं देख पाया.". दूसरे महासचिव ने कहा, "मैं सफर में हूं" और तीसरे ने तो हद ही कर दी, "मैं दिल्ली में नहीं था, इसलिए मैं नहीं बता सकता."

इतना ही नहीं अमित शाह ने भी इस पर एक धांसू ब्लॉग लिखा. शाह ने राहुल गांधी को सीधे सीधे टारगेट किया, लेकिन न तो राजनाथ के बयान का जिक्र हुआ न जेएनयू की घटना के पीछे किसी आतंकी हाथ होने का.

बड़े ताज्जुब की बात है कि देश के गृह मंत्री ने भी बोलने से पहले उस ट्विटर अकाउंट को वेरीफाई नहीं कराया. या राजनाथ ने इस मामले में भी वैसी ही जल्दबाजी की जैसे उन्होंने पठानकोट आतंकी हमले के वक्त किया था. राजनाथ ने सफल ऑपरेशन के लिए सुरक्षा बलों की जी भर तारीफ की जिसके बाद भी एयरफोर्स बेस में एनकाउंटर कई दिन तक जारी रहा. हालांकि, अब राजनाथ के बयान के पीछे फर्जी ट्विटर अकाउंट नहीं बल्कि खुफिया इनपुट बताया जा रहा है.

अज्ञात हमलावर का फोटो!

दिल्ली पुलिस के 69वें स्थापना दिवस के मौके पर राजनाथ सिंह ने दिल्ली पुलिस की दिल खोल कर तारीफ की. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि राजधानी में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दिल्ली पुलिस अच्छा काम कर रही है. तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए राजनाथ ने कहा कि आपका काम इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपका नेतृत्व कैसा है.

फिर बोले, "मैं दिल्ली पुलिस आयुक्त को दिल्ली में बेहतर काम करने के लिए बधाई देता हूं."

पटियाला कोर्ट में पत्रकारों और छात्रों की वकीलों द्वारा पिटाई के मामले में भी राजनाथ ने कार्रवाई का भरोसा दिलाया. पुलिस कमिश्नर बस्सी ने कहा कि अगर पता चला कि पुलिसवालों ने लापरवाही बरती तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. पटियाला कोर्ट की घटना की एक तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस में एक तस्वीर छपी है.

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ये है पटियाला हाउस कोर्ट का नजारा | साभार: इंडियन एक्सप्रेस/रवि कन्नोजिया

इस तस्वीर में जमीन पर पड़े व्यक्ति हैं सीपीआई के अमीक जमेई और ऊपर हैं बीजेपी विधायक ओपी शर्मा. ये तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है. लेकिन जैसे ही खबर आई कि दिल्ली पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट की घटना में अज्ञात हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज किया है, लोग ट्विटर पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर पर टूट पड़े. ट्विटर पर बस्सी का खूब मजाक उड़ाया गया.

वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता को तो बस्सी में असरानी जैसा टैलेंट नजर आया. गुप्ता को इस बात पर ताज्जुब हुआ कि आखिर भारतीय पुलिस सेवा ने इस टैलेंट अब क्यों छिपाये रखा.

कहीं राजनाथ का बयान भी चुनावी जुमला तो नहीं रहा जो 12 राज्यों के उपचुनाव और पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के बीच आया. वैसे अगर ऐसा होता तो अमित शाह अपने ब्लॉग में इसका जिक्र जरूर करते जैसा कि उन्होंने मोदी की बात को लेकर कहा था. वैसे भी राजनीति में कसमें वादे प्यार वफा सब जुमले हैं जुमलों का क्या!

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