'राजपथ' के नाम पर रार क्यों, गुलामी की छाप मिटाना हर भारतीय का 'कर्तव्य' है
मोदी सरकार (Modi Government) ने दिल्ली में राजपथ (Rajpath) का नाम बदलकर कर्तव्यपथ (Kartavya Path) करने का फैसला लिया है. गुलामी (Slavery) की सोच से मुक्ति दिलाने पर बाबर, अकबर, हुमायूं, तुगलक, औरंगजेब जैसे मुगल आक्रांताओं के नामों पर बनी सड़कें और बख्तियार खिलजी जैसे हिंदुओं के संहारक के नाम पर बसे कस्बों के नाम बदलना भी हमारा ही 'कर्तव्य' है.
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नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली के राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने का फैसला किया है. जल्द ही इस फैसले पर आधिकारिक मुहर भी लगा दी जाएगी. दरअसल, आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से 'पंच प्रण' किए थे. इन्हीं पंच प्रण में से एक था गुलामी की हर सोच से मुक्ति. देखा जाए, तो नरेंद्र मोदी सरकार का ये फैसला उसी प्रण की ओर बढ़ाया गया कदम है. क्योंकि, राजपथ भारत के औपनिवेशिक अतीत से जुड़ा वो पन्ना है, जो गुलामी की छाप को दर्शाता है. हालांकि, राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किए जाने पर अब राजनीति भी की जाने लगी है.
सैकड़ों साल की गुलामी ने भारतीयों की मानसिकता में गहरा प्रभाव डाला है.
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसे लेकर भाजपा सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने इस पर कुछ ऐसी प्रतिक्रिया दी है कि जैसे गुलामी की मानसिकता वाली चीजों को बदलने से भारत की संस्कृति ही बदल जाएगी. महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि 'यह क्या हो रहा है? क्या भाजपा ने हमारी संस्कृति को बदलने का अपना एक मात्र कर्तव्य बना लिया है. क्या उनके महापाप और पागलपन में हमारी विरासत का इतिहास फिर से लिखा जाएगा?' जबकि, आजादी से पहले राजपथ को 'किंग्सवे' के नाम से जाना जाता था. और, राजपथ इसी किंग्सवे का हिंदी अनुवाद है.
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'गुलामी का एक भी अंश हमारे मन में नहीं रहना चाहिए. अगर ऐसा है, तो हमें इसे उखाड़ फेंकना होगा. गुलामी की सोच किसी भी देश को दीमक की तरह धीरे-धीरे खाती है. जिसका पता बरसों बाद चलता है. इस सोच ने कई विकृतियां पैदा की हैं. तो, गुलामी की सोच से मुक्ति पानी ही होगी.' पिछले ही हफ्ते नौसेना के नए ध्वज से सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाया था. बताना जरूरी है कि इसी गुलामी की मानसिकता को हटाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री निवास का नाम 7, रेस कोर्स रोड से बदलकर 7, लोक कल्याण मार्ग रखा था.
खैर, मोदी सरकार के सभी फैसलों को लेकर विपक्ष की ओर से विरोध किया ही जाता रहा है. तो, कहा जा सकता है कि मोदी के विरोध की परंपरा को बरकरार रखते हुए इस फैसले का भी विरोध किया जा रहा है. लेकिन, यहां सवाल ये उठता है कि जब बात गुलामी की यादों से मुक्ति की हो रही है. तो, बाबर, अकबर, हुमायूं, तुगलक, औरंगजेब जैसे मुगल आंक्राताओं के नामों पर बनी सड़कें और बख्तियार खिलजी जैसे हिंदुओं के संहारक के नाम पर बसे कस्बों के नाम बदलना भी हमारा ही 'कर्तव्य' है.
क्योंकि, कोई भी भारतीय मुसलमान इन मुगल आक्रांताओं से अपना जुड़ाव महसूस नहीं करता है. खासकर बाबर, तुगलक, औरंगजेब जैसों से तो बिलकुल भी नहीं. हां, ये अलग बात है कि मुस्लिमों की राजनीति करने वाली AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी इन्हीं आक्रांताओं को अपना वंशज मानते हैं. लेकिन, बहुतायत भारतीय मुस्लिम आज भी दाराशिकोह को ही अपना वंशज मानते हैं. जिस तरह से मुगलसराय का नाम बदला गया. और, अब गोरखपुर में मियां बाजार जैसे मोहल्लों को नया नाम दिया गया है. ठीक उसी तरह से देश की राजधानी दिल्ली में मुगल आक्रांताओं और अंग्रेजों के नाम पर बनी सभी सड़कों के नाम बदले जाने की मांग करना हमारा ही कर्तव्य है.
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