चुनावी और किसान राजनीति के बीच की जमीन पक्की करते राकेश टिकैत
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद खाप से जुड़े नियमों की वजह से उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. वहीं, राकेश टिकैत को प्रवक्ता पद दिया गया. सतही तौर पर इन दोनों भाईयों के बीच दूरी नजर नहीं आती है. लेकिन, भीतर ही भीतर अपना अपना वजूद बनाने की लड़ाई भी जारी है.
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किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन चुके भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रवक्ता राकेश टिकैत को विपक्षी राजनीतिक दलों का भरपूर साथ मिल रहा है. गुरुवार रात को हुए सिलसिलेवार घटनाक्रम के बाद खत्म होता दिख रहा किसान आंदोलन राकेश टिकैत के आंसुओं से फिर उठ खड़ा हुआ. अचानक से गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेताओं, राजनेताओं और किसानों के समर्थन का एक सैलाब सा दिखने लगा. पिता महेंद्र सिंह टिकैत से विरासत में मिली किसान राजनीति को एकबार फिर से धार देने के लिए राकेश टिकैत ने पूरा जोर लगा दिया. कुछ ही देर में ये भी खबर आ गई कि मुजफ्फरनगर में अगले दिन महापंचायत होगी और किसान आंदोलन के समर्थन में फैसला लिया जाएगा. इसके बाद किसान नेता राकेश टिकैत का कद कई गुना बढ़ गया है. आइए जानते हैं राकेश टिकैत से जुड़े कुछ दिलचस्प और अनछुए पहलू.
किसान राजनीति की विरासत ने बढ़ाई भाईयों में दूरी
किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की नींव 1987 में रखी थी. उस समय बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में आंदोलन किया था. जिसमें हिंसा के दौरान दो किसानों की पुलिस की गोली से मौत हो गई थी. इसके बाद भारतीय किसान यूनियन (BKU) का गठन कर चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत इसके अध्यक्ष बने थे. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद खाप से जुड़े नियमों की वजह से उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. वहीं, राकेश टिकैत को प्रवक्ता पद दिया गया. सतही तौर पर इन दोनों भाईयों के बीच दूरी नजर नहीं आती है. लेकिन, नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के विरोधाभासी बयानों से स्थिति साफ हो जाती है. कहा जाता है कि भाकियू के अध्यक्ष नरेश टिकैत कहने को ही हैं. संगठन में वर्चस्व राकेश टिकैत का ही चलता है. नरेश टिकैत केवल खाप तक ही सीमित कर दिए गए हैं.
नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के विरोधाभासी बयानों से स्थिति साफ हो जाती है.
दरअसल, नरेश टिकैत ने दिल्ली में हिंसा और लाल किले पर निशान साहिब फहराए जाने के बाद गाजीपुर बॉर्डर से धरना खत्म कर सिंघु बॉर्डर पर शिफ्ट करने की बात कही थी. नरेश टिकैत ने कहा था कि हम किसानों को पुलिस से पिटवाने के लिए नहीं लाए हैं. वहीं, राकेश टिकैत ने यूनियन के आदेश को किनारे रखते हुए गाजीपुर बार्डर पर विरोध प्रदर्शन जारी रखने की बात कही. राकेश टिकैत मीडिया से बातचीत करते समय रो भी पड़े थे. टिकैत ने कहा था कि अगर आंदोलन को खत्म करने की कोशिश की गई, तो मैं आत्महत्या कर लूंगा. हालांकि, यहां उनका इशारा योगी सरकार की ओर था. एक ही संगठन में होने के बावजूद दोनों भाईयों के बीच के मतभेद लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं.
कौन हैं राकेश टिकैत?
राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 को मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव में हुआ था. टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए और एलएलबी की पढ़ाई की है. राकेश टिकैत 1985 में दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए थे. 1993 में उन्होंने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. उनके पिता महेंद्र टिकैत द्वारा दिल्ली में किसान आंदोलन किया जा रहा था. सरकार ने राकेश टिकैत पर दबाव डालकर पिता का आंदोलन खत्म कराने को कहा था. इसी वजह से उन्होंने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. नौकरी छोड़ने के बाद राकेश अपने पिता के साथ जुड़ गए. 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए. राकेश टिकैत की शादी 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी. टिकैत के एक बेटा चरण सिंह और दो बेटियां सीमा व ज्योति हैं. सभी बच्चों की शादी हो चुकी है.
44 बार जेल जा चुके हैं राकेश टिकैत, संसद के बाहर जलाया था गन्ना
90 के दशक में किसान राजनीति में कदम रखने वाले किसान नेता राकेश टिकैत किसानों के हक में कई आंदोलन कर चुके हैं. किसानों के अधिकारों की बात करने वाले राकेश टिकैत अब तक 44 बार जेल जा चुके हैं. संसद भवन के सामने गन्ना जलाने की घटना ने राकेश टिकैत को काफी लोकप्रियता दिलाई थी. कहा जा सकता है कि पश्चिमी यूपी के किसानों को मीडिया की ताकत से रूबरू कराने में राकेश का बड़ा हाथ था. मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में राकेश टिकैत 44 बार जेल भेजे गए हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में राकेश टिकैत को 9,359 वोट मिले थे.
राजनीतिक कद बढ़ाने की असफल कोशिश
इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत ने अपना कद और राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के लिए राजनीति में जाने का मन भी बनाया था. राकेश टिकैत ने पहली बार 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई थी. टिकैत ने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. हालांकि, उन्हें जीत नसीब नहीं हुई थी. इस हार के बाद राकेश टिकैत ने साल 2014 में राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर अमरोहा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन, इस चुनाव में भी टिकैत को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में टिकैत को केवल 9,359 वोट मिले थे.
राकेश टिकैत और भाकियू का राजनीतिक इतिहास
2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने कांग्रेस का हाथ थामा था. भारतीय किसान यूनियन की राजनीतिक पार्टी बहुजन किसान दल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने का फैसला किया था. उस समय कांग्रेस ने फैसला लिया था कि राकेश टिकैत के खिलाफ पार्टी अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगी. वहीं, बहुजन किसान दल ने भी पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर अपने प्रत्याशी वापस लेने की बात कही थी. वहीं, गाजीपुर बॉर्डर पर जारी प्रदर्शन का समर्थन करते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया था कि अब एक पक्ष को चुनने का समय है. मेरा फैसला साफ है, मैं लोकतंत्र के साथ हूं, मैं किसानों और उनके शांतिपूर्ण आंदोलन के साथ हूं. इससे साफ हो जाता है कि टिकैत को कांग्रेस का समर्थन भी मिला हुआ है.
बालियान खाप और जाट समर्थन
खाप वैसे तो एक सामाजिक संस्था के रूप में काम करती है. लेकिन, अपने तुगलकी फरमानों के चलते इसकी काफी निंदा की जाती रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई खाप हैं. इन खाप में सबसे बड़ी बालियान खाप है. दरअसल, जाट बहुल क्षेत्र होने की वजह से अन्य खापों के चौधरी बालियान खाप के चौधरी नरेश टिकैत को ही अपना चौधरी मानते हैं. खाप का चुनावों में भी काफी दखल रहता है. पश्चिमी यूपी में खाप के जाट वोटों को एकमुश्त वोटबैंक माना जाता है. खाप प्रत्यक्ष तौर पर किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करती है. लेकिन, इशारा देकर भी अपनी मंशा जाहिर कर देती है. इसके बाद लोग इशारे को समझते हुए एकतरफा वोटिंग करते हैं. पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरपुर में हुए दंगों के बाद ये वोटबैंक भाजपा के साथ जुड़ गया था. ऐसे में अगर कहा जाए कि खाप राजनीतिक दलों का समर्थन करती रही है, तो गलत नहीं होगा. इससे जुड़े लोग केवल किसान नेता नही हैं. ये सभी खाप पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए राजनीति का प्रयोग करते हैं.
गुरुवार सुबह तक गरज रहे राकेश टिकैत शाम होते ही मीडिया के सामने फूटकर रो पड़े.
राकेश टिकैत के आंसुओं की असल वजह
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की वजह से हुई हिंसा और लाल किले की घटना ने किसान नेता राकेश टिकैत को बैकफुट पर ला दिया था. दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी को भड़की हिंसा के मामले में 33 एफआईआर दर्ज की हैं. पुलिस इस मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए देशद्रोह और UAPA के तहत केस दर्ज किया है. जिसमें राकेश टिकैत समेत 37 किसान नेताओं के नाम हैं. इन किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी किया गया है. इस दौरान राकेश टिकैत के कई भड़काऊ बयानों की बात भी सामने आने लगी थी. राकेश टिकैत को तमाम मुकदमों में नाम आने के बाद किसान नेता के तौर पर अपनी साख जाती दिख रही थी. ट्रैक्टर परेड निकालने का आईडिया देने वाले राकेश टिकैत को जब अपनी गर्दन फंसती दिखी, तो यहां उन्होंने अपना आखिरी दांव खेल दिया.
गुरुवार सुबह तक गरज रहे राकेश टिकैत शाम होते ही मीडिया के सामने फूटकर रो पड़े. राकेश टिकैत ने कहा कि अगर धरना खत्म करने की कोशिश की गई, तो मैं यहीं आत्महत्या कर लूंगा. टिकैत के बयान से प्रशासन और किसानों में टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. टिकैत ने कहा कि पुलिस चाहे तो गोली मार दे, हम हटने वाले नहीं हैं. जिसके बाद माहौल बदल गया और पश्चिमी यूपी के कई किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर के लिए कूचकर दिया. इसे सीधे तौर पर राकेश टिकैत की अपनी गर्दन बचाने की जुगत के रूप में देखा जा सकता है. एक बयान में टिकैत कहते नजर आ रहे थे कि हमने भाजपा की मदद की, लेकिन ये हम पर ही मुकदमे दर्ज करवा रहे हैं.
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