राकेश टिकैत तेजी से 'हार्दिक पटेल' बनने की ओर अग्रसर हैं!
राकेश टिकैत भी आजकल 'पगड़ी' पहने हुए नजर आने लगे हैं. किसान आंदोलन की कमान पंजाब के किसानों के हाथों से छूटकर राकेश टिकैत के हाथ में आ जाने के बाद से ही उन्होंने पगड़ी को धारण कर लिया था. कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस, राकेश टिकैत को आगे रखकर पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों को एक साथ साध रही है.
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किसानों के हितों के लिए आवाज उठाने के एवज में 44 बार जेल जाने वाले और वर्तमान समय में किसान आंदोलन का मुख्य चेहरा बने राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) की लोकप्रियता अब केवल किसानों तक ही सीमित नहीं रह गई है. राकेश टिकैत अब राजनीतिक दलों के भी पसंदीदा नेता हो चले हैं. 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद किसान संगठनों की आंदोलन की सफलता को लेकर टूट चुकी आस राकेश टिकैत के आंसुओं के बल पर एक बार फिर से उठ खड़ी हुई थी. इसके बाद हुए सिलसिलेवार घटनाक्रम ने राकेश टिकैत को किसान आंदोलन (Farmer Protest) का प्रमुख चेहरा बना दिया. इसी के साथ राकेश टिकैत को तमाम राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं के फोन आने लगे और कुछ तो खुद चलकर उनके मंच पर भी पहुंचे.
कुल मिलाकर उन्हें राजनीतिक दलों का भरपूर साथ मिल रहा है. उसमें भी खास तौर पर कांग्रेस का 'हाथ' टिकैत के साथ दिख रहा है. इन सबके बीच मोदी सरकार (Modi Government) लगातार दावा कर रही है कि ये किसान आंदोलन केवल एक राज्य तक ही सीमित है. यहां सरकार का इशारा सीधे तौर पर पंजाब को लेकर है. वहीं, राकेश टिकैत भी आजकल 'पगड़ी' पहने हुए नजर आने लगे हैं. किसान आंदोलन की कमान पंजाब के किसानों के हाथों से छूटकर राकेश टिकैत के हाथ में आ जाने के बाद से ही उन्होंने पगड़ी को धारण कर लिया था. कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस (Congress) राकेश टिकैत को आगे रखकर पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों को एक साथ साध रही है. ऐसे में कहा जाए कि कांग्रेस के नए 'हार्दिक पटेल' बनने की राह पर राकेश टिकैत तेजी से चल पड़े हैं, तो गलत नहीं होगा.
कांग्रेस, राकेश टिकैत को आगे रखकर पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों को एक साथ साध रही है.
राकेश टिकैत पर जाने से पहले हार्दिक पटेल (Hardik Patel) के पाटीदार आंदोलन के एक आम कार्यकर्ता से गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के पद तक पहुंचने के सफर की कहानी जानना जरूरी है. एक आंदोलन के सहारे हार्दिक पटेल ने गुजरात में लंबे समय और निर्बाध तरीके से चले आ रहे भाजपा शासन को बड़ा झटका दिया था. पाटीदार आंदोलन (Patidar Agitation) की शुरुआत 2015 में हुई थी. लेकिन, हार्दिक पटेल ने इससे पहले ही कई सैकड़ा छोटी-बड़ी सभाएं कर पाटीदार समाज को एक मंच पर लाए थे. पटेलों समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिए जाने की मांग में उनके साथ केवल पाटीदार समाज के युवक ही नहीं अन्य जातियों के लोग भी जुड़े थे. हार्दिक पटेल के आंदोलन की वजह से ही 2017 का गुजरात विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया था. इसका फायदा कांग्रेस को मिला था. 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए हार्दिक पटेल जुलाई 2020 में गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिए गए. कहा जाता है कि हार्दिक को ये जिम्मेदारी देने का फैसला कांग्रेस नेता राहुल गांधी का था. केवल 16 महीनों के अंदर ही हार्दिक पटेल ने कांग्रेस के अंदर अपनी पकड़ को मजबूत कर लिया था.
आंदोलन से हार्दिक भी बने थे नेता
आंदोलनों से नेताओं के निकलने का सिलसिला काफी पुराना है. जेपी के आंदोलन से नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील मोदी सरीखे कई नेता निकले. अन्ना आंदोलन ने भी अरविंद केजरीवाल को एक बड़ा नेता बना दिया. इसी तरह हार्दिक पटेल पादीदार आंदोलन और राकेश टिकैत किसान आंदोलन से निकले हुए नेता हैं. हालांकि, अभी राकेश टिकैत के बारे में खुलकर नहीं कहा जा सकता है कि वह नेता बन चुके हैं. फिलहाल टिकैत किसान आंदोलन के प्रवक्ता से आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं. वैसे अन्ना आंदोलन और उसके बाद के आंदोलनों से निकले सभी नेताओं ने पहले राजनीति में आने से इनकार किया था. लेकिन, अचानक से ही इन लोगों ने राजनीति में कदम रख दिया था. कहा जा सकता है कि राकेश टिकैत भी उसी राह पर अग्रसर हैं. लेकिन, इस बारे में फिलहाल खुलकर अपनी इच्छा जताने से बचते हैं.
गुजरात में हार्दिक ने भाजपा को दिया था बड़ा झटका
गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत में कई समानताएं नजर आती हैं. हार्दिक पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में पाटीदार समाज को आरक्षण के नाम पर अपने साथ जोड़ा था. पाटीदार आंदलन का नेतृत्व कर रहे हार्दिक पटेल ने खुले तौर पर नरेंद्र मोदी को चुनौती दी थी. पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार्दिक पटेल के आंदोलन की आग ने भस्म तो नहीं किया था, लेकिन काफी झुलसाया था. भाजपा इस चुनाव में 99 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी. जो 2012 में भाजपा की 115 विधानसभा सीटों से कुल 16 सीटें कम थीं. वहीं, 26 जनवरी की घटना के बाद राकेश टिकैत उपद्रवियों को भाजपा का कार्यकर्ता बता रहे थे. इसी बीच उन्हें धरनास्थल से हटाने के लिए यूपी पुलिस पहुंच गई थी. कई घंटों तक चले हाईवोल्टेज ड्रामे के बीच राकेश टिकैत के आंसुओं ने पूरा खेल ही पलट दिया. अचानक से किसान आंदोलन का केंद्र गाजीपुर बॉर्डर बन गया है. राकेश टिकैत पीएम मोदी और उनकी सरकार को ललकारने की मुद्रा में आ गए. टिकैत के आंसुओं पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय की भृकुटियां तन गईं. इसके बाद हुई किसान महापंचायत में भाजपा को सबक सिखाने का फैसला ले लिया गया. यूपी में कुछ ही समय में पंचायत चुनाव होने हैं और भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है.
पटेल और टिकैत दोनों अचानक हुए लोकप्रिय
पाटीदार आंदोलन के जरिये हार्दिक पटेल ने कम समय में ही अपने साथ लाखों समर्थक जुटा लिए थे. पाटीदार आंदोलन से भड़की हिंसा के मामले में गुजरात की एक अदालत ने हार्दिक पटेल को मेहसाणा विधायक ऋषिकेश पटेल के कार्यालय में तोड़फोड़ और अन्य धाराओं में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी. पटेल पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, दंगा भड़काने, आगजनी करने और गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने के लिए सजा सुनाई गई थी. हार्दिक पटेल ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले इस सजा पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट का रुख भी किया था. लेकिन, हाईकोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली थी. इस वजह से पटेल लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए थे. पटेल पर देशद्रोह का केस भी दर्ज है. वहीं, 44 बार जेल जा चुके राकेश टिकैत पर भी किसान आंदोलन की ट्रैक्टर परेड में भड़की हिंसा को लेकर तकरीबन इन धाराओं में ही केस दर्ज किया गया है. किसान आंदोलन से उन्होंने अपने पीछे समर्थकों की एक बड़ी संख्या खड़ी कर ली है. हालांकि, वह दो बार चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन, दोनों ही बार उनकी जमानत जब्त हो गई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में राकेश ने रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
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