किसान आंदोलन को कहां ले जाना चाहते हैं लखीमपुर लिंचिंग को जायज ठहराने वाले राकेश टिकैत?
राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने भाजपा कार्यकर्ताओं (BJP) की हत्या को जायज ठहरा कर भविष्य में लखीमपुर हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) के दोहराव की वकालत कर दी है. क्योंकि, भारत में कानून के तहत हत्या के अलग-अलग रूप हो सकते हैं, लेकिन हर तरह की हत्या के लिए सजा का प्रावधान है. और, किसानों की हत्याओं से इतर इन हत्याओं की भी जांच होगी ही.
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किसान आंदोलन (Farmers Protest) का अघोषित चेहरा बन चुके राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने लखीमपुर हिंसा (Lakhimpur Violence) पर बात करते हुए कहा था कि भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या किसानों पर कार चढ़ाए जाने के बाद 'क्रिया की प्रतिक्रिया' में हुई थी. मैं भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या करने वालों को अपराधी नहीं मानता. वो हत्या में नहीं आता. किसानों और योगी सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पीड़ित किसान परिवारों को मुआवजा दिलाकर शांत हो गए हैं. और, भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या करने वालों के बचाव में बयान दे रहे हैं. राकेश टिकैत का ये बयान उन पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए काफी है. सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हत्याओं को जायज ठहराने वाले राकेश टिकैत किसान आंदोलन को कहां ले जाना चाहते हैं?
3 अक्टूबर को लखीमपुर में भड़की हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) में जिन 8 लोगों की मौत हुई थी, उनमें चार किसान, तीन भाजपा कार्यकर्ता (BJP) और एक पत्रकार शामिल थे. राकेश टिकैत किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, तो निश्चित तौर पर वह किसानों के ही पक्ष में बात करेंगे. लेकिन, उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या को जायज ठहराने का अधिकार नहीं है. किसान आंदोलन के जरिये किसानों के हक की बात करने और हत्याओं को जायज ठहराने में जमीन-आसमान का अंतर है. कहना गलत नहीं होगा कि कहीं न कहीं ऐसे बयानों के सहारे राकेश टिकैत किसानों को भविष्य में ऐसी घटनाओं को दोहराव पर बचने का तरीका बता रहे हैं. एक तरह से राकेश टिकैत तकरीबन एक साल से किसान आंदोलन कर रहे किसानों को हत्या करने के तौर पर अपना गुस्सा निकालने का अधिकार दिये जाने की वकालत करते नजर आ रहे हैं.
राकेश टिकैत भविष्य में ऐसी घटनाओं के दोहराव पर किसानों को भड़कने का इंतजाम कर चुके हैं.
सवाल आज नहीं तो कल उठेंगे ही, क्योंकि लखीमपुर में केवल किसानों की हत्या नहीं हुई है. जिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, उसे 'क्रिया की प्रतिक्रिया' नहीं माना जा सकता है. किसान आंदोलन के जरिये किसानों के हक की बात करने और हत्याओं को जायज ठहराने में जमीन-आसमान का अंतर है. यूपी पुलिस और एसआईटी की अब तक की जांच में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. स्पष्ट सी बात है कि लखीमपुर हिंसा की जांच कर रही टीमें भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या पर भी जांच करेंगी. और, जब इन हत्याओं पर जांच शुरू होगी, तो राकेश टिकैत का एक्शन का रिएक्शन वाला बयान किसानों में गुस्से को भड़काएगा. क्योंकि, बात बहुत साफ है कि 3 अक्टूबर को केवल किसानों की ही हत्या नहीं हुई थी.
ये बात सही है कि भारत में कानून के तहत हत्या के अलग-अलग रूप हो सकते हैं. लेकिन, कानून में इन सभी हत्याओं के लिए सजा का प्रावधान है. भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या पर इंसाफ मांगने वाली आवाजों को 'क्रिया की प्रतिक्रिया' के नाम पर दबाया नहीं जा सकता है. क्योंकि, आने वाले समय में उन लोगों को भी सजा दी ही जाएगी, जो भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या में शामिल रहे हैं. फिर चाहे वो किसान हों या कोई और. पीड़ित किसान परिवारों की तरह ही मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों का दुख भी उनके ही जैसा है. हत्या को न्यायोचित बताकर राकेश टिकैत किसानों केवल किसानों को भड़का रहे हैं. अगर भविष्य में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या पर जांच होती है, तो राकेश टिकैत के बयान के अनुसार लखीमपुर खीरी एक बार फिर से हिंसा से घिर जाएगा. क्योंकि, उन्होंने किसानों की हत्या को पहले ही न्यायोचित ठहरा दिया है.
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