Rakesh Tikait ने हवाओं का रुख मोड़कर अपनी फैन फालोविंग में इज़ाफा कर लिया!
गणतंत्र दिवस के बाद से कमजोर पड़े किसान आंदोलन में नई जान फूंककर किसान नेता चौधरी राकेश सिंह टिकैत ने अपनी एक अलग पहचान छोड़ दी है. अलग अलग आंदोलन का हिस्सा बनकर 44 बार जेल का सफर तय करने वाले चौधरी राकेश सिंह टिकैत को काबू में कर पाना सरकार के लिए चुनौती बन रहा है. राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन को एक नई शक्ल प्रदान कर दी है.
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देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन का केंद्र अबतक सिंघू बार्डर था लेकिन एक ही रात में पूरा का पूरा फोकस यूपी गेट यानी गाज़ीपुर बार्डर पर जा पहुंचा है. जिस तरह हर आंदोलन से एक चेहरा निकलकर सामने आता है उसी तरह अब किसान आंदोलन को भी एक चेहरा मिल गया है और इस किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा बनकर उभरे हैं राकेश टिकैत. यह नाम कोई नया नाम नहीं है, यह नाम पहले भी कई आंदोलन का चेहरा बन चुका है लेकिन इस आंदोलन ने राकेश टिकैत को एक नई पहचान दे डाली है. देश में किसानों के सबसे बड़े मसीहा की अगर बात होगी तो सबसे पहला नाम जो पूरे देश में गूंजेगा वह है पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह का, वह आज़ाद भारत में अबतक के सबसे बड़े किसान नेता के रूप में अबतक जाने जाते हैं. उनके बेटे और पोते अभी भी किसानों से जुड़ाव तो रखते हैं लेकिन यह लोग अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं. स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के बाद इस देश में किसानों के नेता के तौर पर महेंद्र सिंह टिकैत पहचाने जाते थे. जोकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे. इस यूनियन का गठन वर्ष 1987 में हुआ था.
राकेश टिकैत के आंसुओं ने उनकी राजनीति को नयी धार दे दी है
दरअसल उस समय उत्तर प्रदेश में बिजली के दाम बढ़ा दिए गए थे. बिजली के दाम के बढ़ जाने से किसान भड़क उठे और उत्तर प्रदेश के शामली में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृव्य में एक बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया. इसी आंदोलन में प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकर्ता दो किसान जयपाल और अकबर की मौत पुलिस की गोली लगने से हो गई. यहीं से भारतीय किसान यूनियन की बुनियाद पड़ गई और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को इस यूनियन का अध्यक्ष चुन लिया गया. तबसे हर बार किसानों के हित के लिए महेंद्र सिंह टिकैत सरकारों से भिड़ते रहे. कभी उत्तर प्रदेश सरकार से तो कभी केंद्र सरकार से लोहा लेते हुए महेंद्र सिंह टिकैत का नाम देश के हर हिस्से में जाना जाने लगा.
चौधरी राकेश टिकैत इन्हीं महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे हैं. महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु के बाद भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को बनाया गया और उनके दूसरे बेटे राकेश टिकैत को यूनियन का प्रवक्ता बनाया गया था. हालांकि सारे फैसले राकेश टिकैत के हाथों ही होता है नरेश टिकैत केवल और केवल उनके फैसले का साथ देते नज़र आते हैं. राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में काम करते थे, साल 1993-94 में उनके पिता और उनके बड़े भाई किसानों के हित के लिए दिल्ली के लालकिले पर आंदोलन कर रहे थे.
चूंकि आंदोलन का नेतृव्य कर रहे महेंद्र सिंह टिकैत का बेटा ही दिल्ली पुलिस में कार्यरत था तो सरकार ने बेटे के ज़रिए ही बाप से आंदोलन खत्म करने का दबाव बनवाया. जब राकेश टिकैत के ऊपर प्रशासन की ओर से अत्यधिक दबाव पड़ने लगा तो उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और खुद भी किसान आंदोलन का हिस्सा बन गए. धीरे धीरे किसानों के बीच राकेश टिकैत ने अपनी छाप छोड़ दी वह किसानों के असली नेता और महेंद्र सिंह टिकैत के वारिस के तौर पर खूब पहचाने जाने लगे.
देश के कई राज्यों में वह किसान आंदोलन का हिस्सा बनते गए. केंद्र की मोदी सरकार द्धारा नए कृषि कानून पास किए जाने के बाद से ही देश में अलग अलग जगहों पर किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया लेकिन पंजाब और हरियाणा का आंदोलन ही सुर्खियां बटोरता था. जब पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली कूच करने का ऐलान किया तो उत्तर प्रदेश से भी बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की ओर चल दिए. दिल्ली पुलिस ने किसानों को दिल्ली में इंट्री करने से रोक दिया तो किसान बार्डर पर ही तंबू गाड़कर बैठ गए.
सिंघू बार्डर पर सबसे अधिक किसान जुटे जबकि गाज़ीपुर बार्डर, टिकरी बार्डर, खेड़ा बार्डर और बदरपुर बार्डर पर सीमित संख्या में ही किसान जुटे. इस पूरे आंदोलन में सबसे ज़्यादा सिंघु बार्डर ही चर्चा में शामिल होता रहा. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने सभी बार्डर से ट्रैक्टर रैली निकालने का ऐलान किया लेकिन पुलिस के साथ बातचीत में केवल तीन बार्डर पर ही परेड करने की परमीशन प्राप्त हुयी. 26 जनवरी के सुबह ये परेड अपने तयशुदा समय से पहले और बेतरतीब तरीके से निकाली जाने लगी जिसके बाद ये पूरी परेड हिंसात्मक हो गई.
परेड के विवादों में घिर जाने से किसानों के बीच फूट पड़ गई. कुछ किसान संगठनों ने इस पूरे आंदोलन से खुद को अलग कर लिया, तमाम किसान नेताओं के खिलाफ पुलिस ने आपराधिक मामले दर्ज कर लिए और सुरक्षाबलों की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफा कर दिया. गाज़ीपुर बार्डर पर 200-250 किसान ही बचे रह गए थे जबकि हज़ारों की संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती कर दी गई थी. बिजली से लेकर पानी तक की व्यवस्था पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई.
माना जा रहा था कि अगले ही कुछ घंटो में किसानों को बार्डर से खदेड़ दिया जाएगा या फिर गाजीपुर बार्डर के आंदोलन का नेतृ्व्य कर रहे किसान नेता राकेश टिकैत को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. कुछ भी होता इससे पहले ही राकेश टिकैत मीडिया के सामने आ गए और बेहद भावुक होकर अंतिम सांस तक किसानों के साथ रहकर लड़ने की बात कह डाली, उन्होंने कहा कि वह आत्महत्या कर लेंगे लेकिन बगैर कानून को खत्म कराए घर वापसी नहीं करेंगे.
राकेश टिकैत का भावुक होना किसानों के अंदर जोश पैदा कर दिया. किसान बड़ी संख्या में गाज़ीपुर बार्डर कूच कर गए, रातोंरात आंदोलन में हज़ारों की संख्या में किसान पहुंच गए. राकेश टिकैत के बड़े भाई और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने महापंचायत बुला डाली. देखते ही देखते राकेश टिकैत का नाम पूरे भारत में जाना पहचाना जाने लगे. एक टूट चुके आंदोलन में राकेश टिकैत के आंसुओं ने एक नयी जान फूंक डाली.
अलग अलग आंदोलन का हिस्सा बनकर 44 बार जेल की सलाखों तक पहुंचने वाले राकेश टिकैत से आंदोलन को खत्म करा पाना सरकार के लिए अब टेढ़ी खीर साबित होता दिखाई दे रहा है. राकेश टिकैत एक मज़बूत नेता के तौर पर उभरे हैं और वह इस आंदोलन को किस मोड़ पर लेकर जाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा. फिलहाल राकेश टिकैत ने पूरे आंदोलन को मजबूती प्रदान कर सरकार पर गहरी चोंट दे दी है.
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