मोदी का आदर्श गांव जयापुर आइना है इस सरकार का !
नवंबर 2014 से अब तक जब मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं, इस गांव ने भी वीआइपी होने का तमगा पाकर काफी कुछ हासिल किया. लेकिन क्या वाकई उसने गांववालों की जिंदगी बदली या नहीं?
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दो बैंक, बीएसएनएल का बड़ा सा टॉवर, धूप से बचने के लिए विश्रामालय, और हर 100 मीटर पर लगा सोलर लैम्प. जैसे ही आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए आदर्श गांव में कदम रखते हैं तो पहली नजर इन सभी आधुनिक सुविधाओं पर पड़ती है. बड़े से बोर्ड पर नरेंद्र मोदी की फोटो लगा संदेश और स्वच्छता बनाए रखने की अपील करते पोस्टर से स्वागत होता है.
ये सब देखकर ढाई साल पहले के जयापुर की तस्वीर सामने आ जाती है, जब मोदी इस गांव को गोद लेने पहली बार यहां आए थे. तब बुनियादी सुविधाओं को तरसते जयापुर ने आस लगाई थी तरक्की और बदलाव की. नवंबर 2014 से अब तक जब मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं, इस गांव ने भी वीआइपी होने का तमगा पाकर काफी कुछ हासिल किया. लेकिन क्या वाकई उसने गांववालों की जिंदगी बदली या नहीं ये जानने हम पहुंच गए जयापुर और जाना की आखिर क्या कह रहा है जयापुर.
रीऐलिटी चेक
डिजिटल इंडिया
अब गांव में दो बैंक हैं. यूनियन बैंक में 400 और सिंडिकेट बैंक में 350 के करीब अकाउंट्स हैं. पोस्ट ऑफिस भी है. इसमें करीब 300 अकाउंट्स हैं. बीएसएनएल ने मोबाइल टावर लगवाया है और पंचायत भवन के 100 मीटर के दायरे में फ़्री वाइफाई की सुविधा भी है.
हकीकत- बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए सुविधा बेमतलब सिर्फ प्रभावशाली लोगों तक सीमित.
नहीं बदली पीने के पानी की समसया
तीन साल पहले जयापुर में पीने के पानी की हालत ऐसी थी कि हर दूसरे दिन इस पानी से बच्चे बीमार रहते थे. इसके लिए टैंकर और पानी की टंकी लगाने की योजना तो बनी लेकिन अब तक पानी आया नहीं.
नतीजा- आज भी महिलाएं कुंए से पानी भरने को मजबूर हैं. कुछ घरों में हैंडपम्प हैं लेकिन उसका पानी भी खारा. लिहाजा ये शिकायत जयापुर की महिलाएं आज भी मोदी से कर रही हैं कि प्रधानमंत्री उन्हें पानी मुहैया कराएं.
बदहाल सड़कें
गांव में घुसते ही खराब सड़कें आपका स्वागत करती हैं. पूछने पर गांव के प्रधान कहते हैं कि सड़क का काम शुरू है और जल्दी बनकर तैयार हो जाएगी लेकिन गांव वालों का मानना है कि बरसों से वो टूटी सड़कों से जूझ रहे हैं और अब भी हाल बेहाल है.
हर घर टॉयलेट
सांसद सीआर पाटिल की तरफ से 400 टॉयलेट बनवाए गए हैं. इनमें से 150 खराब हैं. 16 बायो टॉयलेट भी इस्तेमाल करने की हालत में नहीं हैं. क्लीन इंडिया कैम्पेन के तहत पक्के टॉयलेट भी बन रहे हैं. और 80 प्रतिशत घरों में टॉयलेट लगभग बनकर तैयार हैं.
हकीकत- हमारा कैमरा जब ऐसे घरों में पहुंचा तो पाया कि जागरुकता की कमी के चलते लोग उन टॉयलेट को स्टोर रूम बना चुके हैं और घर का सामान रखने के काम में उसका इस्तेमाल हो रहा है. ज़्यादातर टॉयलेट के दरवाजे तोड़ दिए गए हैं, खासकर मोबाइल टॉयलेट जर्जर हालत में हैं.
सोलर ऊर्जा से हर घर रोशनी
25-25 किलो वाट के सोलर प्लांट हैं. 800 घरों में दो बल्ब और मोबाइल चार्जिंग के हर महीने 20 रुपए देने होते हैं.
हकीकत- लोग मान रहे हैं की इस योजना से उन्हें फायदा हुआ क्योंकि गर्मी के मौसम में जहां चार से पांच घंटे बिजली आया करती थी वहां अब 12 से 15 घंटे आती है, खासकर रात में बच्चे पढ़ सकते हैं.
सड़क पर सोलर लैम्प से रोशनी
पूरे जयापुर में हर 100 मीटर की दूरी पर आधुनिक सोलर लैम्प लगे हैं जिससे रात के समय आने जाने वालों को असुविधा ना हो.
अब बेकार हो गए हैं ये सोलर लैंप्स
हकीकत- ये योजना थी तो अच्छी लेकिन दुःख की बात ये है कि इनमें से एक भी सोलर लैम्प अब काम नहीं कर रहा, वजह बैटरी का चोरी हो जाना. गांववालों के मुताबिक एक बैटरी जो लगभग 4 से 5000 की थी, चोरों ने चोरी कर ली और पुलिस भी नहीं तलाश पाई कि आखिर बैटरी गई कहां. नतीजा ये सोलर लैम्प अब सिर्फ शो पीस बन कर रह गए हैं.
महिला सशक्तिकरण
खादी ग्रामोद्योग की ओर से सिलाई-बुनाई केंद्र और सूत कातने का सेंटर खोला गया है. इनमें करीब 35 महिलाएं ट्रेनिंग लेती हैं. सिलाई ट्रेनिंग में 250 रुपए महीने और काम करने वाली महिलाएं 4 हजार से 5 हजार कमाती हैं.
हकीकत- प्रधानमंत्री का आशीर्वाद हासिल होने के कारण जयापुर को पैसा और योजना देने के लिए कई एनजीओ और बैंक आगे आ रहे हैं जिसका फायदा महिलाओं को भी मिल रहा है. बच्चों के लिए स्कूल में स्मार्ट क्लास शुरू है और इंटर कॉलेज की स्थापना भी होने जा रही है.
जमीन के दाम बढ़े
गांव में खेती लायक जमीन का रेट 3.5 लाख से 4 लाख है, जो पहले 1 से 1.5 लाख था. सड़क से लगने वाली जमीन का रेट 12 से 14 लाख बिसवा है जो पहले 6 से 7 लाख रुपए था. कुल मिलाकर प्रॉपर्टी की कीमत दो से तीन गुना तक बढ़ गई है. हालांकि नोटबंदी का असर जयापुर में भी हुआ जिसने दाम फिर कुछ कम किए.
जयापुर के बारे में ये जरूर कहा जा सकता है कि भविष्य की योजनाओं पर नजर डालें तो लगता है आने वाले दिनो में गांव की तकदीर बदलेगी, फिलहाल तो आधुनिक से ज्यादा बुनियादी जरूरतों को पूरा करना जरूरी है और इस दिशा में काम की गति धीमी है.
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