कर्नाटक चुनाव में नोहरा शेख का चेहरा कांग्रेस का कितना खेल बिगाड़ पाएगा
कर्नाटक में चुनाव नजदीक है ऐसे में अगर बात मुस्लिम ध्रुवीकरण की बात न हो तो फिर ये चुनाव अधूरे हैं. राज्य में मुस्लिम वोट कांग्रेस से लेकर भाजपा तक किसी की भी बाजी पलट सकते हैं. अतः दोनों ही दलों के सामने नोहरा शेख एक बड़ी चुनौती हैं.
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कर्नाटक चुनाव के लिए 12 मई को वोट डाले जायेंगे और 15 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम आएंगे. जैसे-जैसे चुनाव की तारिख नजदीक आ रही है. कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का डर बढ़ता जा रहा है. इस डर की वजह बीजेपी या प्रधानमंत्री मोदी नहीं बल्कि एक मुस्लिम महिला हैं. 45 साल की नोहरा शेख हैदराबाद में कई हीरे की कम्पनियों की सीईओ हैं, उनकी कंपनी दुनियाभर में हीरे के साथ-साथ और भी कई उत्पादों को बेचने का काम करती है.
नोहरा शेख ने नंवबर 2017 में अपनी एक पार्टी बनायी थी, जिसका उन्होंने नाम रखा था आल इंडिया महिला एम्पावरमेंट पार्टी (एमईपी) बताया जा रहा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में नोहरा शेख की पार्टी (एमईपी) सभी 244 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जिसके कारण मुस्लिम वोटों, खासकर मुस्लिम महिला वोटरों का कांग्रेस से छिटकने का डर पैदा हो गया है, कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के डर का यही कारण है.
कर्नाटक चुनाव में कई मायनों में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को मुश्किलों में डाल सकते हैं
दक्षिण भारत में केरल के बाद कर्नाटक सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला राज्य है. कर्नाटक में लगभग 14 फिसदी मुस्लिम आबादी है. गुलबर्गा, धारवाड़, बीदर और रायचूर जैसे इलाकों में मुस्लिम वोटर्स बहुत ही निर्णायक भूमिका निभाते आये हैं. कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से लगभग 60 सीटों पर तो काफी प्रभावशाली माने जाते हैं जो किसी भी पार्टी का खेल बना और बिगाड़ सकते हैं.
हीरों का बिजनेस करने वाली नोहरा शेख की पार्टी का चुनाव निशान भी हीरा ही है. नोहरा शेख की आल इंडिया महिला एम्पावरमेंट पार्टी (एमईपी) कर्नाटक की चुनावी बिसात में कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. नोहरा शेख एक सफल बिजनेसमैन के साथ-साथ एक उदारवादी महिला की छवि भी रखती हैं. इसके साथ वो कई तरह के सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हुई हैं, और स्थानीय लोगों में काफी लोकप्रिय हैं.
दिलचस्प बात ये है की सिद्धारमैया और कांग्रेस खुल के नोहरा शेख की आलोचना भी नहीं कर सकते हैं. यदि वो ऐसा करते हैं तो मुस्लिम वोटरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है. नोहरा शेख के चुनावी मैदान में आने से सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को मिलना तय है, जितना अधिक नोहरा शेख की पार्टी को वोट मिलेंगे उतना अधिक कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा पहुंचेगा.
मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने के लिए चंद महीने पहले कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने एक विशाल बैठक भी की थी. जिसमे ये तय किया गया था की उत्तर प्रदेश की तरह कर्नाटक में मुस्लिम वोटों को बिखरने से रोकना होगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो बीजेपी उत्तर प्रदेश की तरह कर्नाटक में भी अपने मंसूबों में सफल हो जायेगी.
हालांकि नोहरा शेख के चुनावी मैदान में आ जाने के बाद इस तरह की सम्भावना पर कुछ हद तक विराम लग गया है. नोहरा शेख की पार्टी कोई सीट जीते या न जीते लेकिन उनकी पार्टी और खुद नोहरा शेख की बढ़ती लोकप्रियता ने कांग्रेस और सिद्धारमैया के मन में मुस्लिम वोटों को लेकर एक डर जरूर पैदा कर दिया है.
कंटेंट - वेद प्रकाश सिंह (इंटर्न इंडिया टुडे)
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