राहुल को पुन:स्थापित करने में जुटी है कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा तो सिर्फ बहाना है!
भारत जोड़ो यात्राकांग्रेस को पुन:स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि साल 2004 में सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले राहुल गांधी को भी स्थापित करने का एक जरिया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस यात्रा के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी ही नजर आ रहे हैं.
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कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा इन दिनों सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रही है. इस यात्रा के केंद्र में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दिखाई दे रहे हैं. यात्रा की शुरुआत में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता एकजुटता के साथ पैदल यात्रा कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे तमाम नेता नदारद हो गए. अब राहुल गांधी ही यात्रा के केंद्र बिंदु की तरह नजर आ रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को राहुल गांधी के राजनीतिक करियर को बूस्ट देने वाली यात्रा के तौर पर भी देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि कांग्रेस राहुल गांधी को लोकसभा चुनाव से पूर्व स्थापित करना चाहती है.
सवाल ये है कि अपनी भारत जोड़ो यात्रा से क्या राहुल गांधी मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में अपने को स्थापित कर पाएंगे?
दो नेताओं ने मिलाया कंधे-से-कंधा
राहुल गांधी के साथ दो नेता कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं तो दूसरे पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल. इन दोनों नेताओं के राहुल गांधी का साथ नहीं छोड़ा है और ये वही दोनों नेता हैं, जो चाहते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाले. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ यही दोनों नेता ही ऐसा चाहते हैं. इनके अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई अन्य नेता राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष पद पर फिर से देखना चाहते हैं लेकिन राहुल गांधी इस पद को स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं.
150 दिनों की यात्रा से पहले ही मिल जाएगा अध्यक्ष
कन्याकुमारी से शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर तक जाएगी और इस 3500 किमी की यात्रा में तकरीबन 150 दिन का समय लगने वाला है. इसे लोकसभा चुनाव की दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है. लेकिन इस यात्रा के रूट में गुजरात जैसे राज्य नहीं पड़ते हैं, जहां पर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस की क्या रणनीति है, यह स्पष्ट नहीं हो पा रही है. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि 20 लोकसभा सीटों वाले केरल के लिए कांग्रेस ने 18 दिनों का समय निर्धारित किया है, जहां पर राहुल गांधी पार्टी कार्यकर्ताओं समेत आम जनमानस से मुलाकात कर रहे हैं.
लोगों को गले लगा रहे हैं लेकिन 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में यह यात्रा महज 2 दिनों की रहने वाली है. कांग्रेस की रणनीति समझ के परे है, लेकिन राजनीति में कहते हैं जो दिखता नहीं है वो होता है और जो दिखाया जाए, जरूरी नहीं की वो हो ही. कांग्रेस को दिवाली से पहले नया अध्यक्ष मिल जाएगा, राहुल गांधी इस पद के लिए तैयार नहीं हैं, ऐसे में कई उम्मीदवार पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं, जिनमें तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर का भी नाम सामने आ रहा है.
ऐसे में गांधी परिवार का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ लोकसभा चुनाव की ओर है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां जहां तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अपना जनादेश बनाने की दिशा की ओर निकल चुकी है और भीड़ देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी को जनता का समर्थन मिल रहा है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि रैलियों, रोड-शो और सभाओं में भीड़ से ही समर्थन का अंदाजा लगाया जाता है.
कांग्रेस का चेहरा होंगे राहुल गांधी
भारत जोड़ो यात्रा से एक बार तो स्पष्ट तौर पर समक्ष में आ रही है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस का चेहरा होंगे. भले ही वो पार्टी अध्यक्ष पद स्वीकार न करें लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा राहुल गांधी ही होंगे. ज्ञात हो तो कांग्रेस साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के चेहरे को लेकर मैदान में उतरी थी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ सीधे मुकाबला किया था.
हालांकि इस चुनाव में राहुल गांधी को मुंह की खानी पड़ी थी और उन्होंने हार की व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद राहुल गांधी की युवा टीम का बिखराव शुरू हुआ था और प्रवास अभी तक समाप्त नहीं हो पाया. इसके अतिरिक्त राहुल गांधी कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी भी हार गए थे और फिर पार्टी में नेतृत्व संकट पैदा हो गया था. कई बैठकों के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में फैसला लेने का निर्णय लिया था और उन्हें अंतरिम अध्यक्षा नियुक्त किया गया था, उसके बाद से पार्टी आंतरिक द्वंद्व का सामना कर रही है.
कांग्रेस जोड़ो यात्रा की भी है जरूरत
कांग्रेस को न सिर्फ राहुल गांधी को स्थापित करने के बारे में सोचना चाहिए. बल्कि पार्टी को भी जोड़ने की दिशा पर पहल करने की जरूरत है. जिन लोगों को यह लगता है कि संगठनात्मक चुनाव करा देने मात्र से नेताओं का पलायन समाप्त हो जाएगा तो शायद वो गलत हो सकते हैं क्योंकि मौजूदा राजनीतिक परिपेक्ष्य में दिन प्रतिदिन कांग्रेस ने अपनी साख को कमजोर किया है. अभी देश के सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, जहां पर अगले साल चुनाव होने वाले हैं.
राहुल गांधी की साल 2004 में राजनीतिक एंट्री हुई थी और उन्हें स्थापित करने के लिए कांग्रेस नेताओं और पार्टी ने सबसे ज्यादा कोशिशें की हैं, उनके स्थान पर अगर दूसरा कोई व्यक्ति होता तो शायद उसे इतने मौके नहीं मिलते लेकिन गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राहुल गांधी को कांग्रेस के एक तबका अपना नेता स्वीकार कर चुका है. ऐसे में पार्टी को राहुल गांधी को स्थापित करने की कोशिशों के साथ-साथ पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए संवाद प्रक्रिया को आसान बनाने की जरूरत है.
फोटो-वीडियो में कारगर सिद्ध हो रही यात्रा
कांग्रेस की राहुल गांधी को पुन:स्थापित करने की रणनीति को अच्छा रिस्पास मिल रहा है. भाजपा ग्रैंड ओल्ड पार्टी को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही, ऐसे में टीआरपी की दृष्टि से भी राहुल गांधी खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. ऊपर से पार्टी का सोशल मीडिया टीम तो वीडियोज और फोटोज के माध्यम से राहुल गांधी की ब्रांड रागा (RG) को बहाल करने में जुटे हुए हैं. जिसे पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से काफी नुकसान पहुंचा था मगर राहुल गांधी ने सोशल मीडिया में अपनी सक्रियता को बढ़ाते हुए इसे सुधारने का प्रयास भी किया.
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