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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 21 जून, 2018 07:16 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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पीएम मोदी का मैजिक लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. ये आम लोगों में पीएम मोदी का क्रेज ही है जिसके चलते तमाम राज्यों में लगातार केसरिया ध्वज लहरा रहा है. एक ऐसे समय में, जब भारत की राजनीति अपने सबसे जटिल दौर से गुजर रही है. जरूरी हो जाता है तमाम दलों के लिए कि कैसे वो पीएम मोदी की आंधी को रोकें. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बात जब 21वीं सदी के ऐसे प्रमुख नेताओं की होती है जो पीएम मोदी के विरोध में सबसे आगे हैं तो तीन नाम हमारे सामने आते हैं- पहला कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी, दूसरे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और तीसरे आम आदमी पार्टी के संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.

राहुल गांधी, जन्मदिन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी  बड़ा सवाल ये है कि 21 वीं सदी के इन बड़े नेताओं में राजनीतिक रूप से कौन बड़ा है

ये तीनों ही तीन अलग दलों के नेता हैं. स्वाभाव से तीन अलग किस्म के लोग हैं. तीनों की विचारधारा से लेकर राजनीति करने का तरीका सब अलग है मगर ये पीएम मोदी और भाजपा का विरोध ही हैं जो इन्हें एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर लाता है. तो आइए जानें कि 21वीं सदी के इन तीनों ही नेताओं में कौन कहां है और कैसे वो मोदी विरोधी राजनीति को अंजाम दे रहा है.

राहुल गांधी, जन्मदिन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी  मौजूदा वक़्त में राहुल राजनीति में एक नाकाम खिलाड़ी साबित हो रहे हैं

राहुल गांधी

अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 48 साल के हो गए हैं और बात अगर इनकी राजनीतिक उम्र की हो तो 2004 में हिंदुस्तान की सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले राहुल गांधी ने इसी साल यानी 2004 में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़ा और अपना पहला ही चुनाव तकरीबन एक लाख मतों से जीता. राजनीतिक उम्र के लिहाज से 14 साल के राहुल गांधी के बारे में ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि. इनका शुमार देश के उन नेताओं में है जो अलग-अलग लेबलों से नवाजे गए हैं और लगातार इनके राजवंश पर हमला हो रहा है.

2007 में पार्टी के महासचिव फिर 2017 में पार्टी अध्यक्ष के पद तक आते आते भले ही राहुल को 10 साल का समय लगा हो. मगर ये अपने आप में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस लम्बे वक़्त में भी राहुल गांधी अपने को सिद्ध नहीं कर पाए और आज भी वहीं खड़े हैं जहां से इन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य की शुरुआत की थी. इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए हम उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक का उदाहरण ले सकते हैं.

उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से हाथ मिलाने के बावजूद राहुल कुछ विशेष नहीं कर पाए और इनसे जुड़ने के कारण अखिलेश को भी सूबे की जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. वहीं गुजरात में भी पार्टी का हाल वही ढाक के तीन पात जैसा था. जहां पार्टी ने जो भी हासिल किया वो हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश की बदौलत ही किया. इन दोनों राज्यों के अलावा कर्नाटक में भी राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी खतरे के निशान से कुछ ऊपर दिखी.

इन सारी बातों के बाद कहना गलत नहीं है कि राहुल ने 14 साल के राजनीतिक भविष्य में अब तक जो भी हासिल किया वो उन्हें केवल उनके उपनाम के कारण मिला है. यदि राहुल से उनका उपनाम ले लिया जाए तो राजनीति की दौड़ में वो केवल एक हारा हुआ घोड़ा हैं.

राहुल गांधी, जन्मदिन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी  अखिलेश के तेवर से साफ है उन्होंने अपनी गलती से सबक लिया है और सधी हुई पारी खेल रहे हैं

अखिलेश यादव

2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे का मुख्यमंत्री रहने वाले अखिलेश उम्र में भले ही 44 साल के हों और राहुल गांधी से 4 साल छोटे हों. मगर बात जब राजनीति की आती है तो ये राहुल से कहीं ऊपर हैं. 2000 में अपने राजनीतिक भविष्य की शुरुआत करने वाले अखिलेश यादव ने 2000 में 13वीं लोक सभा के लिए उत्तर प्रदेश के कन्नौज से उप-चुनाव लड़ा और उसे जीता. इस दौरान अखिलेश खाद्य, नागरिक आपूर्ति और सार्वजनिक वितरण समिति के सदस्य भी थे.

बात अगर अखिलेश की राजनीतिक उम्र की हो तो 44 साल के अखिलेश राजनीतिक रूप से 18 साल के एक बालिग नेता है और अगर 48 साल के राहुल, 44 साल के अखिलेश को राजनीतिक रूप से बड़े भइया कहें तो ये कहीं से भी गलत न होगा. अखिलेश के बारे में ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये एक जुझारू नेता हैं और बात जब मोदी विरोधी राजनीति की होती है तो आज न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि सम्पूर्ण देश में मोदी विरोध की कमान अखिलेश यादव ने संभाल रखी है.

उदाहरण के लिए हम प्रदेश में बीते दिनों हुए 4 उप चुनावों गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और नूरपुर के परिणाम और रणनीति देख सकते हैं. जिस साफगोही से अखिलेश ने मोदी और भाजपा विरोध के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती और आरएलडी से हाथ मिलाया उसने कई राजनीतिक विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया.

वर्तमान परिदृश्य में अखिलेश यादव के तेवर देखकर साफ है कि जिस तरह पिछले विधानसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेकर ये सधी हुई राजनीतिक चालें चल रहे हैं. ये न सिर्फ इनके आलोचकों के माथे पर चिंता के बल पैदा कर रही हैं बल्कि पीएम मोदी को भी अहम मोर्चों पर कड़ी चुनौती देती नजर आ रही हैं.

अखिलेश यादव का चाल, चरित्र और चेहरा देखकर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि ये आने वाले वक़्त में पीएम मोदी के लिए एक टेढ़ी खीर साबित होंगे. साथ ही ये भी कि वर्तमान में जो अखिलेश का राजनीतिक कद है उसे देखकर इस बात का भी अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि भविष्य में इनका व्यक्तित्व और अधिक मजबूत होगा.

राहुल गांधी, जन्मदिन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी  केजरीवाल का वर्तमान देखकर लग रहा है कि इनका भविष्य उज्जवल है

अरविंद केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. 2011 में इंडिया अगेंस्ट करप्शन या फिर अन्ना आंदोलन में सुर्खियां बटोरने वाले केजरीवाल ने उस वक़्त लोगों को हैरत में डाल दिया था जब इन्होंने राजनीति से इंकार के बाद अपनी 2012 में अपनी पार्टी "आम आदमी पार्टी" बना ली थी. राहुल और अखिलेश के मुकाबले उम्र में बड़े केजरीवाल राजनीतिक रूप से 6 साल के हैं मगर जब उनके इन 6 सालों का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि केजरीवाल ने इन 6 सालों में जो भी किया वो कई मायनों में नामुमकिन है.

बात जब मोदी विरोध की आती है तो ऐसे कई मौके आए हैं जब केजरीवाल ने अलग-अलग मंचों से पीएम मोदी और उनकी नीतियों की तीखी आलोचना की है. ये शायद केजरीवाल की राजनीतिक सूझबूझ ही थी जिसके चलते आज केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. मोदी विरोध के मद्देनजर दिल्ली के मुकाबले किसी अन्य राज्य में केजरीवाल एक नाकाम राजनेता हैं. चाहे गोवा हो या फिर पंजाब ज्यादातर जगहों पर केजरीवाल को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया था.

पहले तमाम तरह के आरोप लगाकर माफ़ी मांगने वाले केजरीवाल को आज भले ही लोग राजनीति में गंभीरता से नहीं लेते मगर जिस तरह अभी हाल फ़िलहाल में उनके रैली में चंद्र बाबू नायडू, ममता बनर्जी, एचडी कुमारस्वामी ने शिरकत की कहना गलत नहीं है कि ये सब बातें आने वाले वक़्त में पीएम मोदी को बड़ा सिर दर्द दे सकती हैं.

उपरोक्त सभी बातों के बाद हम ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि 2019 का चुनाव न सिर्फ देश की जनता के लिए रोमांचक होगा बल्कि ये चुनाव राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के भविष्य का भी निर्धारण करेगा. बात अगर मौजूदा वक़्त की हो तो जहां एक तरफ राजनीति की रेस में अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल किसी तेज धावक की तरह काफी आगे निकल गए हैं तो वहीं राहुल के जूते की लेस बार-बार खुल रही है और वो बेचारे हर बार कुछ दूर चलकर उसे कसने में लग जाते हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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