आत्म मुग्ध नेता का उदय
अगर मैं गलत नहीं हूँ तो राहुल गांधी को आध्यात्मिक शांति की खोज में गए हुए एक महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है.
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अगर मैं गलत नहीं हूँ तो राहुल गांधी को आध्यात्मिक शांति की खोज में गए हुए एक महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है. जहां उनके होने की उम्मीद है, उनमें से एक है म्यांमार, जहां हम में से कई जाना पसंद करेंगे. अगर समय और पैसा है तो वहां देखने के लिए बहुत कुछ है. हालांकि हम में से ज्यादातर के लिए खुद के लिए छुट्टी प्लान करना (जैसा कि गरीबों के मसीहा अरविंद केजरीवाल स्पा जाते हैं) मुश्किल काम है. हम कमिटमेंट और डेडलाइन से बंधे रहते हैं. आम तौर पर हम अपने काम के सिलसिले में ही यात्रा करते हैं. मैं शिकायत नहीं कर रही हूँ क्योंकि मेरे लिए काम एक मजेदार चीज है. जिसे मैं एन्जॉय करती हूँ. हालांकि युवा राहुल गांधी के लिए काम और राजनीतिक ऐसी जिम्मेदारी हैं जिन्हें दूर रहकर भी चलाया जा सकता है. और जितना दूर से इसे चलाया जाए, उतना बेहतर होता है.
आपको बता दें कि अगर ऐसा ब्रिटिश संसद में हुआ होता तो विनम्रता के साथ सांसद को पद छोड़ने के लिए कह दिया जाता. राहुल गांधी की कुछ तस्वीरें (जिनमें पता नहीं वह क्या कर रहे हैं) डेली मेल में हर रोज छप रही हैं. उन तस्वीरों में वह शर्मिंदा से नजर आते हैं. आखिरकार भारतीय करदाताओं ने एक बड़ी कीमत पर उन्हें सांसद पद की जिम्मेदारी दी है. जिस पर चुनाव आयोग ने भी भारी खर्च किया है. उनके लिए बेहतर तरीका तो यह है कि वह अस्थायी संन्यास ले लें या अमेठी जाकर अस्थायी कुटिया बना लें और वहां ध्यान लगाएं. आध्यात्मिक गुरु ने उनसे स्काइप से संपर्क किया होगा. और उसे ठीक मानकर कम से कम वे कुछ काम तो सकेंगे. जैसे केजरीवाल सही समय पर अपनी खांसी के इलाज के लिए अपने चुनाव क्षेत्र से दूर गए थे. मैं हैरान हूँ कि उनके इलाज पर हुए खर्च का भुगतान किसने किया था? क्या वो हम थे? क्या वह हमारी तरह सिर्फ घर पर रहकर बेनेड्रिल और भाप नहीं ले सकते थे? विश्वास कीजिए, जब मुझे दिल्ली की बदबूदार हवा से खांसी हुई थी, तो मैंने ठीक होने के लिए हल्दी और शहद ही खाया. स्पा? कौन खर्च करेगा इसके लिए और इतना वक्त किसके पास है?
कहीं यही तो नए राजनेताओं का उदय नहीं है? जिन्हें पुरानी पीढ़ी के नेताओं की फुलटाइम नेतागिरी के उलट छुट्टी पर जाना पसंद है. मैं एक और नेता का नाम बता सकती हूँ जो उस समय किसी आश्रम में योग कर रहे थे, जबकि उनके बारे में कई आरोप लगाए जा रहे थे. लेकिन मैं उनके नाम का खुलासा नहीं करूंगी क्योंकि मुझसे पहले ही पूछा जा चुका है कि मेरी हिम्मत कैसे हुई उनके बारे में सवाल पूछने की. जाहिर है ये भगवान या सांसद पहुंच से बाहर हैं. लेकिन मुद्दा यह है कि जिस गर्त में आम लोग जी रहे हैं, वहां इन नेताओं का काम फुलटाइम जॉब से अधिक होना चाहिए. इसे वक्त देना चाहिए, पूरी शिद्दत से, और यदि किसी के पास छुट्टी या खुद की समस्याओं से निजात पाने के लिए ध्यान करने का वक्त है या मसाज या मड-बॉथ लेने की इच्छा रखता है, तो यहां एक बड़ी गड़बड़ है.
जाहिर तौर पर उन लोगों की कुछ संसदीय जवाबदेही होनी चाहिए जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. और अगर वे अपना काम नहीं कर रहे हैं तो कम से कम उनके वेतन से इतने पैसे कटना चाहिए जितने उन्होंने किसी आश्रम या ध्यान केन्द्र में बिताए और खर्च किए.
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