बीमार कैदी होकर भी लालू यादव बिहार सरकार के लिए ताकतवर विपक्ष हैं!
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बीमार हैं. उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया है. करीब दो दशक पहले खुद लालू ने एक नारा दिया था- 'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू'. यह नारा इतना मशहूर हुआ कि आलू और लालू एक-दूसरे के पर्याय बन गए.
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साल 1997 में एक हिन्दी फिल्म आई थी Mr. And Mrs. Khiladi. इसमें बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार और एक्ट्रेस जूही चावला पर एक गाना फिल्माया गया. गाने का बोल था- जब तक रहेगा समोसे में आलू, तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू. इसे गाया था अभिजीत और पूर्णिमा ने. यह गाना बहुत पॉपुलर हुआ. उनदिनों बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की तूती बोल रही थी. वह साल 1990 से लगातार सूबे के सीएम बने हुए थे. लेकिन चारा घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने लालू यादव को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी से पहले लालू ने एक नारा दिया था- 'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू'. यह नारा इतना मशहूर हुआ कि आलू और लालू एक-दूसरे के पर्याय बन गए. आज लालू यादव बीमार हैं. उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया है. वह पिछले कई वर्षों से रांची स्थित जेल में बंद हैं. लेकिन भारतीय राजनीति में लालू यादव की जगह शायद ही कोई ले सकता है.
मोदी के विजय रथ को लालू ने ही बिहार में रोका था
लालू प्रसाद यादव को करिश्माई नेता कहा जाता रहा है. उनका नाम देश के उन गिने-चुने नेताओं में शामिल है, जिनके बारे में शायद सबसे ज़्यादा लिखा और सुना जाता रहा है. वह बॉलीवुड में भी उतने ही लोकप्रिय रहे हैं, जितने कि पाकिस्तानी आवाम के बीच. अपने ठेठ देहाती अंदाज में जब लालू प्रसाद यादव संसद, विधानसभा या किसी रैली में बोलते तो वहां हंसी के फव्वारे छूटने लगते. उनके रहने का अंदाज, पहनने का सलीका और बात करने का तरीका ऐसा कि आम आदमी भी उन्हें अपना समझने लगे. वह कभी किसी बड़े नेता के अंदाज में नजर नहीं आए, लेकिन जरूरत पड़ने पर बड़े-बड़े नेताओं की सियासी जमीन उनकी नाक के नीचे से खिसका दी. अपने जमाने के 'तुर्रम खां' नेताओं का विजय रथ भी लालू ने ही रोका.
याद कीजिए 1990 का वो दौर. केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी. इस सरकार को बीजेपी का समर्थन था और लालू यादव भी शामिल थे. उस वक्त अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था. इस मुद्दे को और ज्यादा हवा देने के लिए उस वक्त बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक 'रथयात्रा' निकालने की घोषणा कर दी. यह रथयात्रा सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक निकाली जानी थी, जिसे देश कई राज्यों-शहरों से होकर निकलना था. इस रथयात्रा के प्रबंधन की जिम्मेदारी देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई थी. 25 सितंबर को सोमनाथ से रथयात्रा शुरू हुई, जिसे 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन 23 अक्टूबर को लालू यादव ने आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार करा दिया.
बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में भूचाल आ गया. बीजेपी ने वीपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. सरकार गिर गई. लेकिन लालू यादव अपने फैसले पर अडिग रहे. हमेशा मजाकिया अंदाज में रहने वाले लालू का ये रूप पहली बार लोगों ने देखा. यही वजह है कि जब भी बिहार की राजनीति की बात हो और लालू प्रसाद यादव का नाम न आए, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. सभी पार्टियां एक तरफ और लालू अकेले दूसरी तरफ. मुकाबला जोरदार होता है. तभी तो जेल में रहने के बावजूद लालू हर चुनाव में अचानक ही सुर्खियों में चले आते हैं. आज भी बिहार में चुनाव लड़ने वाली किसी भी पार्टी के निशाने पर लालू ही होते हैं. चर्चा चाहे जैसी भी, लेकिन होती लालू की है.
6 साल पहले की ही तो बात है. देश की सियासत में नरेंद्र मोदी चमकते सूर्य की तरह उदय हुए. पूरे देश में उनके नाम का डंका बजने लगा. उनका कद अपनी पार्टी से भी बड़ा हो गया. लेकिन साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई. यह चुनाव मोदी बनाम लालू हुआ. लेकिन लालू यादव के करिश्मे के आगे नरेंद्र मोदी का जादू दम तोड़ गया. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई. नीतीश सीएम बने, तो लालू के छोटे बेटे तेजस्वी डिप्टी सीएम और बड़े बेटे तेज प्रताप कैबिनेट मंत्री. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिस तरह से जीत मिली थी, उसे देखकर कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि एक साल बाद बिहार में ऐसा हश्र होगा.
एक बार इंटरव्यू में लालू यादव से पूछा गया कि इतनी जबर्दस्त लोकप्रियता के साथ अलग-अलग वर्गों में अलग किस्म की छवि बनाने में आपने महारत कैसे हासिल की है? उन्होंने कहा, 'देखिए छवि बनाने से नहीं बनती है. देश ही नहीं परदेस में भी लोग मुझे अलग-अलग तरह से देखते हैं. कोई मुझे मजाकिया बोलता है, कोई जोकर बोलता है, कोई गरीबों का मसीहा कहता है. लोगों का अपना-अपना नजरिया है. हां, मैं खुद को आम लोगों से दूर नहीं रखता. पेट के अंदर जो बात है, जो सच्चाई है, उन बातों को लोगों को बता देता हूं. इसमें किसी तरह की कोई योजना या बनावटीपन नहीं है. भारत गांवों का देश है. मेरा जन्म भी गांव में हुआ और परवरिश भी वहीं हुई. वहां से जो संस्कार मिले. उसी के अनुरूप बात करता हूं.'
लालू प्रसाद यादव की यही बात उन्हें लोगों से कनेक्ट करती है. वह सर्वसुलभ नेता रहे हैं. वह आम लोगों की भाषा में उनकी बात कहते हैं. उनका दर्द समझ लेते हैं. जमीन से जुड़े रहने की वजह से ही उनका व्यक्तित्व करिश्माई बन पाया. वरना नरेंद्र मोदी जैसे राजनेता, रणनीतिकार और विजेता को चुनौती देने का दम बहुत कम लोगों में है. मोदी साल 1999 और 2015 को अपनी सियासी सोच से कभी मिटा नहीं पाएंगे. लालू यादव के जेल चले जाने और लगातार बीमार रहने की वजह से उनकी राजनीतिक सक्रियता कम या यूं कहें खत्म हो गई है. बिहार में उनके शासन के उत्तरकाल में जंगलराज का जो दाग लगा, यदि उसे लालू के बेटों ने भविष्य में धो दिया, तो आज भी उनकी जगह लेने वाला कोई नहीं है.
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