संघ की मुहिम अच्छी तो है, मगर मुमकिन भी है क्या?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू समाज में कायम जातिवाद, छुआछूत के खिलाफ मुहिम चलाने का फैसला किया है. संघ की नई मुहिम सुनने में बेशक अच्छी है, पर हकीकत में कैसे तब्दील हो पाएगी, ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू समाज में कायम जातिवाद, छुआछूत के खिलाफ मुहिम चलाने का फैसला किया है. संघ की नई मुहिम सुनने में बेशक अच्छी है, पर हकीकत में कैसे तब्दील हो पाएगी, ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
संघ की मुहिम के सामने चुनौतियां:
1. सदियों से हिंदू समाज जातीय व्यवस्था में जकड़ा हुआ है. लोगों को अपना धर्म बदलने की आजादी तो है, मगर कोई अपनी जाति चुनना चाहे तो नामुमकिन है. अगर कोई राजपूत या बनिया है और ब्राह्मण बनना चाहे तो ये संभव नहीं है. किसी भी जाति का होने के लिए उस जाति में पैदा होना जरूरी होता है. ये व्यवस्था खत्म करने के लिए संघ क्या ठोस कदम उठाएगा और उसकी बात कौन सुनेगा ये सवाल उठना लाजिमी है?
2. बताया गया है कि संघ का इरादा जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म कर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों को एकजुट करना है. इसके साथ ही, संघ की योजना उन लोगों को भी फिर से हिंदू धर्म के दायरे में लाने की है, जिन्होंने कोई और धर्म स्वीकार कर लिया है. तो इस कथित घर वापसी की स्थिति किसी को कौन सी जाति में रखा जाएगा ये साफ नहीं है जो संघ के लिए एक बड़ी चुनौती है.
3. जब जातियों के आधार पर राजनीति होती हो, चुनावों में टिकट बांटे जाते हों फिर जातीय व्यवस्था खत्म होने की कैसे उम्मीद की जाए. चुनावों के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में राजनीतिक पार्टियों के जातिगत सम्मेलनों पर रोक लगा दी थी. तब इतना जरूर हुआ कि जातियों के नाम से कार्यक्रम सार्वजनिक तौर पर बंद हो गए. सवाल ये है कि इससे निबटने के लिए संघ क्या उपाय करेगा और वो कितना कारगर होगा?
4. कुछ लोग मानते हैं जाति-व्यवस्था तभी खत्म हो पाएगी जब अलग-अलग जातियों के बीच संबंध बनेंगे. उनके बीच समानता और सम्मान का भाव पैदा हो पाएगा. मंडल आयोग की सिफारिशों को भी कुछ लोग मील का पत्थर मानते थे पर क्या उसके साइड इफेक्ट कभी कोई भूल पाएगा. संघ इस दिशा में कैसे आगे बढ़ेगा तस्वीर अभी साफ नहीं है.
5. संघ ने सभी हिंदुओं के लिए 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान भूमि' की अवधारणा पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. इस प्रोजेक्ट के लिए तीन साल का वक्त तय किया गया है. अगर तीन साल में इस दिशा में थोड़ी भी उपलब्धि हासिल हुई तो बड़ी होगी. संघ को इसी बात का यकीन दिलाना होगा जो किसी भी तरीके से आसान नहीं है.
राजनीति के लिए धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण भले ही संभव हो, पर हिंदू समाज को संगठित करना ही संघ के लिए सबसे चुनौती भरा काम रहा है. जातीय आधार पर हिंदू समाज इस कदर बिखरा पड़ा है कि उसे एकजुट करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा लगता है. इस पहल के साथ संघ का देर से आना अहम नहीं रह जाएगा, बशर्ते वो दुरुस्त होकर आए.
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