दिल्ली में AAP को मिले वोट केजरीवाल सरकार के लिए रेफरेंडम ही हैं
दिल्ली के रुझान आम आदमी पार्टी के लिए खतरे की घंटी जोर जोर से बजा रहे हैं. दिल्ली की सभी सातों सीटें जीतने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल के उम्मीदवार ज्यादातर सीटों पर दूसरी पोजीशन के लिए जूझ रही है - आगे क्या होगा?
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आम चुनाव के रुझान राहुल गांधी से भी बुरे अरविंद केजरीवाल के लिए हैं. अब भले ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली में बीजेपी की जीत के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार बताते रहें - सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी के हाथ से दिल्ली फिसल रही है.
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में साल भर से भी कम का वक्त बचा है - और आलम ये है कि विरोधियों से पहले उम्मीदवारों की घोषणा कर सबसे ज्यादा चुनाव प्रचार करने के बावजूद आम आदमी पार्टी के हाथ शून्य लग रहा है. चूंकि दिल्ली की सातों सीटें एक बार फिर बीजेपी के खाते में जा रही है, इसलिए शून्य तो कांग्रेस को भी हासिल हो रहा है, लेकिन आप के लिए तो ये अस्तित्व का सवाल है - क्योंकि अरविंद केजरीवाल का जो भी जनाधार है वो दिल्ली में ही है.
दिल्ली वालों ने AAP को विधानसभा की 70 में से 67 सीटें की सौगात के साथ सत्ता सौंपी थी. MCD चुनावों के बाद और विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी आप के लिए दिल्ली में एक भी संसदीय सीट न जीत पाना - खतरे की घंटी है.
दिल्ली में दूसरी पोजीशन के लिए लड़ी आप
दिल्ली की सात सीटों पर आप का हाल ये है कि सिर्फ दो जगह आप उम्मीदवार दूसरे स्थान पर हैं और चार जगह तीसरे स्थान पर.
उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट पर बीजेपी के हंसराज हंस आप के गुग्गन सिंह को हरा रहे हैं जबकि कांग्रेस के राजेश लिलोटिया को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ रहा है. इसी तरह दक्षिण दिल्ली सीट पर बीजेपी के रमेश विधूड़ी आप के राघव चड्ढा को मात दे रहे हैं जबकि कांग्रेस उम्मीदवार बॉक्सर विजेंदर सिंह तीसरे स्थान पर पहुंच गये हैं.
दिल्ली की चांदनी चौक सीट पर बीजेपी के हर्षवर्धन ने कांग्रेस के जेपी अग्रवाल को शिकस्त दी और आप उम्मीदवार पंकज गुप्ता तीसरे स्थान पर पहुंच गये. पूर्वी दिल्ली सीट पर बीजेपी उम्मीदवार क्रिकेटर गौतम गंभीर कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली को पछाड़ रहे हैं जबकि आप की आतिशी मार्लेना तीसरे स्थान पर पहुंच गयी हैं. नई दिल्ली सीट पर मीनाक्षी लेखी ने कब्जा बरकरार रखा है और कांग्रेस के अजय माकन को हरा कर आप के बृजेश गोयल तीसरे स्थान पर छोड़ दिया है.
क्या आम चुनाव के नतीजे केजरीवाल सरकार के लिए रेफरेंडम है?
उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित को हराते हुए सीट बचा ली है, जबकि आप के दिलीप पांडेय तीसरे स्थान पर पहुंच गये हैं.
अलावा इन सभी के, पश्चिम दिल्ली लोक सभा सीट पर बीजेपी के परवेश सिंह वर्मा से कांग्रेस के महाबल मिश्रा और आप के बलबीर जाखड़ जूझ रहे हैं और दोनों में दूसरी पोजीशन की लड़ाई जारी है.
केजरीवाल के इस्तीफे की मांग
एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद ही मयंक गांधी ने आम नेताओं से अरविंद केजरीवाल को नेता बनाये रखने पर विचार करने की अपील कर डाली थी. मयंक गांधी कभी महाराष्ट्र आप के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे लेकिन नवंबर, 2015 में उन्होंने नेशनल एक्जीक्यूटिव की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
मयंक गांधी का कहना है कि छह साल पहले अरविंद केजरीवाल को आप का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया और आज पार्टी लोक सभा में चार सीटों से शून्य पर पहुंच गयी है. मयंक गांधी ने दो सवाल पूछे हैं.
1. क्या केजरीवाल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये?
2. क्या केजरीवाल को इस्तीफा नहीं देना चाहिये या हटा दिया जाना चाहिये?
Over 6 years ago, kejriwal was made National Convenor
Today, Aap is decimated across India. Instead of 4 LS seats in 2014, they may get 0 or maybe 1 seat. Votes hv reduced everywhere.
Should National Convenor not be held accountable? Should he not resign or be removed?
— Mayank Gandhi (@mayankgandhi04) May 19, 2019
दिल्ली के नतीजे रेफरेंडम नहीं तो क्या हैं?
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को मिली जीत ऐतिहासिक थी. 2014 में शुरू हुई मोदी लहर पर आम आदमी पार्टी ने ही पहली बार दिल्ली में स्पीडब्रेकर लगा दिया - और ऐसा झटका दिया कि बिहार में भी बीजेपी गच्चा खा गयी. दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तो तीन सीटें मिलीं भी - कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला.
दिल्ली में उम्मीदवारों की सूची सबसे पहले जारी करने वाली आम आदमी पार्टी ने चुनाव प्रचार भी उसके बाद ही शुरू कर दिया था. गठबंधन के नाम पर कांग्रेस तो आप की बातों में उलझी ही रही, बीजेपी ने भी तब तक प्रत्याशी घोषित नहीं किये जब तक गठबंधन पर तस्वीर साफ नहीं हो गयी. दिल्ली में गठबंधन न हो पाने की जिम्मेदारी कांग्रेस पर थोपने के बाद आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली की सभी सीटें जीतने का दावा करते रहे - और एग्जिट पोल का तो मजाक ही उड़ाते रहे.
अरविंद केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव प्रचार में दिल्लीवासियों को समझाया जाता रहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाने के बाद क्या क्या फायदे होंगे. लोगों को केजरीवाल ये नहीं समझा पाये कि सातों सीटें जीत कर भी वो कैसे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिला पाएंगे. 2016 में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की मांग को लेकर रेफरेंडम कराने की भी बात कर रहे थे.
After UK referendum, delhi will soon have a referendum on full statehood
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 24, 2016
एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार को ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार के लिए रेफरेंडम माना जा रहा था. क्या ताजा जनादेश को एक और रेफरेंडम नहीं माना जा सकता? खासकर तब जबकि 2020 जनवरी तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं. 2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी का नारा था - 'पांच साल केजरीवाल'. अरविंद केजरीवाल और आप नेताओं ने दिल्लीवासियों से जो मांगा था उससे कहीं ज्यादा मिला था - अब आगे क्या होगा? सवाल यही है.
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