Sachin Pilot को अशोक गहलोत से लड़ाई में राहुल गांधी से मिला आश्वासन
सचिन पायलट (Sachin Pilot) की महीने भर देर से हुई राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात में कोई नयी बात नहीं हुई. अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के खिलाफ पायलट की शिकायतें वहीं हैं जो पहले रहीं - राहुल गांधी चाहते तो ये काम पहले भी कर सकते थे.
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अब तो कोई शक शुबहा कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर मंडराता खतरा टल गया है. कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा ने भी कह दिया है कि सरकार सुरक्षित है - और महत्वपूर्ण बात ये है कि शर्मा ने ये बात मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात के बाद कही है.
ये वही भंवरलाल शर्मा हैं जिनकी तलाश में राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप हरियाणा के होटल तक पहुंची थी और कई दिन तक जगह जगह छापेमारी होती रही. जिस वायरल ऑडियो क्लिप की बदौलत सरकार गिराने की प्रायोजित साजिश का ताना बाना बुना गया, भंवरलाल शर्मा उसके मुख्य किरदार बनाये गये थे. कांग्रेस की तरफ से यही बताया जा रहा था कि भंवरलाल शर्मा ही बीजेपी नेता से बात कर रहे थे. बहरहाल, अब जबकि एसओजी ने केस ही बंद कर दिया है, भंवरलाल शर्मा भी कहने लगे हैं कि वो गजेंद्र सिंह को तो जानते हैं लेकिन किसी शेखावत को नहीं जानते. शेखावत से आशय केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से है जिनका कल तक इस्तीफा मांगा जा रहा था. अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर लोक सभा सीट पर 2019 के आम चुनाव में हराने वाले गजेंद्र सिंह शेखावत को भी अशोक गहलोत के साथियों ने सचिन पायलट के समानांतर विलेन की तरह पेश करने की पूरी कोशिश की.
अब तो भंवरलाल शर्मा ऑडियो टेप होने की जानकारी से भी इंकार कर रहे हैं और संजय जैन के बारे में जानने तक से जो केस बंद करने के बाद कोर्ट की रिहाई के आदेश के बाद भी एसीबी के रिमांड पर हैं.
वैसे ये सब मुमकिन हुआ है दिल्ली में राहुल गांधी के साथ सचिन पायलट की मुलाकात के बाद. भंवरलाल शर्मा, पायलट गुट के विधायकों में से एक हैं जो दिल्ली से ग्रीन सिग्नल मिलते ही जयपुर में अशोक गहलोत से मिले हैं.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) की मुलाकात भी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की बदौलत संभव हो पायी बतायी जा रही है - मुलाकात में जो डील हुई है उसके नतीजे तो धीरे धीरे देखने को मिलेंगे, लेकिन राजस्थान का पॉलिटिकल ड्रामे का ये सीजन तो खत्म हो ही गया है.
पूरी कवायद में न तो अशोक गहलोत और न ही सचिन पायलट, बल्कि हार तो राजस्थान की जनता की हुई है - जिस मुश्किल वक्त में उसे सरकार को जनता के लिए काम करना चाहिये था पूरी मशीनरी विधायकों की रखवाली में लगी रही- जैसलमेर के जिस होटल में कांग्रेस के विधायकों को रखा गया है उसके आस पास के इलाके में कदम कदम पर जनता के टैक्स की गाढ़ी कमायी की बर्बादी के सबूत कदम कदम पर देखे जा सकते हैं.
अगर ये मुलाकात पहले ही हो गयी होती!
कांग्रेस नेतृत्व को बीजेपी का शुक्रगुजार होना चाहिये कि राजस्थान में उसकी सरकार पर कोई आंच नहीं आ पायी है. वो भी तब जबकि सरकार गिराने की साजिश को लेकर थाना पुलिस से लेकर कोर्ट कचहरी सब कुछ हो चुका है.
2019 के आम चुनाव के नतीजे आये तो कमलनाथ बेहद खुश थे क्योंकि उनके बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा से चुनाव जीत गये थे. खुशी तो उनको गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार की भी रही होगी, लेकिन वो तब भी राहत महसूस किये होंगे जब CWC की भरी बैठक में उनके नेता राहुल गांधी अशोक गहलोत के साथ जलील कर रहे थे. कमलनाथ को एक बार फिर सारी बातें याद आ गयी होंगी क्योंकि वो बेटे की जीत की खुशी तो महसूस किये लेकिन सरकार चली गयी, जबकि गहलोत को सरकार बच जाने से बेटे की हार का गम भी गुम हो चुका होगा - बशर्ते, वास्तव में राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर कोई खतरे वाली बात रही होगी.
बात पते की ये है कि बीजेपी नेतृत्व को राजस्थान में उतनी दिलचस्पी नहीं थी जितनी कि मध्य प्रदेश में. राजस्थान में भी बीजेपी मध्य प्रदेश की तरह थाली सजाकर सरकार बनाने का न्योता चाह रही थी. बीजेपी नेतृत्व की दिलचस्पी न होने की वजह भी वसुंधरा राजे ही रहीं. बीजेपी नेतृत्व वसुंधरा राजे के लिए बहुत कुछ करने के मूड में तो रहा नहीं, मुश्किल तो ये भी रही कि बगैर वसुंधरा की मर्जी के दिल्ली में बैठे बैठे कुछ किया भी नहीं जा सकता था - फिर तो राहुल गांधी से लेकर अशोक गहलोत तक सभी को वसुंधरा राजे का भी आभारी होना चाहिये जिनकी बदौलत राजस्थान कांग्रेस मुक्त होने से बच गया.
सचिन पायलट के भी मजबूरी में संयम बरतने और धैर्य के साथ डटे रहने का फायदा हुआ कि दिल्ली दरबार में पेशी हुई और उनकी शिकायतें, शर्तें और डिमांड को पूरे तवज्जो के साथ सुना गया. वैसे लगता तो ऐसा है कि कांग्रेस नेतृत्व ने पहले से ही ऐसा ही रास्ता निकालने के इंतजार में रहा. परिस्थितियां अनुकूल हुईं तो प्रियंका गांधी और सचिन पायलट की जिन बातों से कोई नतीजा नहीं निकल रहा था वही नतीजे तक पहुंचाने में कामयाब भी रहीं.
खबरों के मुताबिक, मुलाकात में सचिन पायलट का जोर इसी बात पर रहा कि वो कांग्रेस खिलाफ कभी नहीं रहे न ही पार्टी छोड़ी थी, बल्कि वो तो बस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरोध में ये सब करते रहे.
राहुल गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत ने झगड़ा खत्म करने की कोशिश नहीं, बढ़ाने का इंतजाम किया है
मालूम नहीं राहुल गांधी राजस्थान की इस उठापटक को कैसे ले रहे होंगे. जिस मुलाकात और बातचीत के लिए राहुल गांधी ने अब वक्त निकाला, पहले भी निकाल सकते थे. सचिन पायलट तो मिल कर बस अपनी बात ही कहना चाहते थे. जो शिकायत उनकी अशोक गहलोत से पहले रही वो अब भी है. अपने हक को लेकर जो मांग सचिन पायलट की पहले रही वही अब भी है.
सचिन पायलट अपने विधायकों को लेकर दिल्ली आये तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात करने ही आये थे - दोनों में से कोई मिला नहीं और अहमद पटेल सबको हैंडल करने लगे. अब अहमद पटेल हैंडल करेंगे तो उतना ही कर सकते हैं जितना कोई मैसेंजर कर सकता है. वो तो प्रियंका गांधी की तरह ये आश्वासन देने की स्थिति में नहीं होते जैसे सचिन पायलट को मिला था - पहले प्रियंका गांधी ने बात करने के बाद सचिन पायलट से कहा था कि वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी से बात करेंगी.
जो कुछ अब जाकर हुआ है, वो सब महीना भर पहले ही हो गया होता अगर राहुल गांधी राजी होते और सचिन पायलट से मिलकर उनकी बातें सुन लिये होते - लेकिन तब एक बड़ी बाधा रही क्योंकि अशोक गहलोत ने बता रखा था कि सचिन पायलट 'निकम्मा हैं, नकारा हैं' उनकी 'रगड़ाई' ठीक से हुई नहीं है - और वो 'सरकार गिराने की साजिश में शामिल' होकर 'कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंप' रहे हैं.
अब क्या राहुल गांधी, अशोक गहलोत से पूछना चाहेंगे कि जादू का वो मायाजाल कैसे और क्यों फैलाया गया था?
ये सब इतना भी नहीं आसां!
राहुल गांधी को लगता है कि उनके पास भी एक रीसेट बटन है. वैसे ही जैसे मोबाइल फोन या किसी सिस्टम में होता है. फैक्ट्री रीसेट, ऐसा करते ही सारी चीजें पहले जैसी हो जाती हैं. जो कुछ बाद में हुआ होता है वो सब खत्म हो जाता है. सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों को देखने से तो ऐसा ही लगता है.
राहुल गांधी ने सचिन पायलट की बातें गौर से सुनीं और सारी समस्याओं को दूर करने का आश्वासन भी दिया. सबसे खास बात तो ये रही कि राहुल गांधी ने सचिन पायलट को फिर से पहले की तरह राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष का पद और डिप्टी सीएम की पोस्ट का भी ऑफर दे डाला. वाकई ये राहुल गांधी ही कर सकते हैं और शायद कांग्रेस में ही संभव भी है.
सचिन पायलट की डिप्टी सीएम पर वापसी तो कोई मुश्किल काम नहीं है. मुख्यमंत्री के कहने पर राजभवन में फिर से मंत्री पद की शपथ दिला कर इसकी घोषणा की जा सकती है - लेकिन क्या अध्यक्ष पद पर भी वैसा करना उतना ही आसान होगा?
किसी को महीने भर के लिए अध्यक्ष बनाने के बाद उसे हटाकर फिर पुराने आदमी को उस कुर्सी पर बिठाना भी उतना ही आसान होगा? अभी तक तो सचिन पायलट और अशोक गहलोत का आपस में ही विरोध रहा अब एक नया प्लेयर भी मैदान में उतार देना कहां कि बुद्धिमानी है?
सचिन पायलट ने भले ही पांच साल तक बीजेपी और वसुंधरा राजे के खिलाफ लड़ाई लड़ कर कांग्रेस को सत्ता दिलायी हो, लेकिन अब भी वो राजस्थान में बाहरी ही माने जाते हैं और अशोक गहलोत इस वजह से भी पायलट पर भारी पड़ते हैं - क्या गोविंद डोटासरा को हटाकर फिर से सचिन पायलट को पीसीसी अध्यक्ष बनाये जाने पर समर्थकों में गलत मैसेज नहीं जाएगा - राहुल गांधी क्या ये सब बातें कभी नहीं सोचते?
जहां तक सचिन पायलट की बात है, अपनी तरफ से वो बता चुके हैं कि वो चाहते हैं कि उनके समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाये या फिर किसी बोर्ड, न्यास या निगम का प्रमुख बनाया जाये जो मंत्री रैंक जैसा हो. सचिन पायलट तो ये भी चाहते हैं कि अगले मुख्यमंत्री के तौर पर उनके नाम की घोषणा की जाये और सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया जाये कि राहुल गांधी की तरफ से कांग्रेस के मैनिफेस्टो में जो वादे किये गये थे वे लागू किये जाएंगे.
राहुल गांधी की तरफ से मिले आश्वासनों का आखिरी संदेश ये रहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात और और मुद्दों को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई जाएगी - ठीक वैसे ही जैसे हाल फिलहाल कोरोना संकट को लेकर एक कमेटी बनायी गयी थी और हर चुनावी हार के बाद एके एंटनी की अगुवाई में जांच कमेटी की परंपरा रही है.
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