Sachin Pilot के लिए BJP-कांग्रेस से बेहतर विकल्प नयी पार्टी है, बशर्ते...
सचिन पायलट (Sachin Pilot) के पास कोई और विकल्प हो तब भी - और न हो तब भी, बेस्ट ऑप्शन नयी पार्टी बनाना ही है. शर्त बस ये है कि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से आजिज आकर बीजेपी (BJP) के साथ सचिन पायलट ने भीतर ही भीतर कोई डील न कर रखी हो!
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) को स्पीकर के नोटिस पर हाई कोर्ट जाना चाहिये था या नहीं, बहस जारी है. कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सचिन पायलट को स्पीकर सीपी जोशी के एक्शन का इंतजार करना चाहिये था, फिर कोर्ट का रूख करते तो अच्छा होता. राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है और स्पीकर को 24 जुलाई तक कोई भी एक्शन लेने से रोक रखा है.
स्पीकर सीपी जोशी ने हाई कोर्ट की बात मानते हुए एक्शन तो नहीं लिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन दायर कर दिया है. दरअसल, कोर्ट के स्टे को वो अपने अधिकार क्षेत्र में दखल मान रहे हैं.
विशेषज्ञों की राय अपनी जगह हो सकती है, लेकिन हाई कोर्ट का रूख करने से सचिन पायलट को एक फायदा तो हुआ ही है कि वक्त काफी मिल गया है. ये वक्त जोखिम भरा भी हो सकता है अगर हवा रूख अशोक गहलोत के पक्ष में बहने लगे, लेकिन मामला लंबा खिंचा तो जरूरी नहीं कि अशोक गहलोत जैसा चाहते हैं सब कुछ वैसा ही हो. जब तक ये लड़ाई सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) रही, बात और रही, लेकिन जब से बीजेपी (BJP) भी मोर्चे पर आ डटी है, मामला पेंचीदा हो गया है. इनकम टैक्स, सीबीआई और ED की छानबीन की टाइमिंग में राजनीति और असर को समझा जा सकता है.
सचिन पायलट अब भी कांग्रेस में हैं और आखिरी विकल्प तो बचा ही है कि गांधी परिवार के दरबार में हाजिरी लगाकर आगे भी पार्टी में बने रह सकते हैं. अगर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को अपनी बात नहीं समझा पाते तो सचिन पाटलट के दूसरे हाथ में भी लड्डू है और बीजेपी भी ज्वाइन कर सकते हैं - लेंकिन ये मौका ऐसा है कि सचिन पायलट चाहें तो अपनी नयी पार्टी भी लांच कर सकते हैं.
नयी पार्टी बनाने का फायदा ही फायदा है
राजनीति का जो दस्तूर रहा है वही सचिन पायलट के लिए अपना मुकाम हासिल करने का मौका भी साबित हो सकता है. सचिन पायलट के पास फिलहाल तीन विकल्प हैं - एक, कांग्रेस में बने रहें. दो, बीजेपी ज्वाइन कर लें और तीन - अपनी नयी पार्टी बना लें.
पहले तो सचिन पायलट की कोशिश यही है कि अपनी छवि पर पड़ें छीटों के दाग धो लें. सरकार गिराने की डील में शामिल होने से लेकर, अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा, नकारा और कांग्रेस की पीठ में छुरा भोंकने वाला न जाने क्या क्या कह रखा है. सचिन पायलट ने आरोपों को खारिज करते हुए दुख जताया है और कहा है कि ये सब उनको हैरान नहीं कर रहे. साथ ही, सचिन पायलट ने ₹35 करोड़ की रिश्वत की पेशकश का आरोप लगाने वाले कांग्रेस विधायक को लीगल नोटिस भी भेज दिया है.
सचिन पायलट के पास कांग्रेस और बीजेपी से भी बेहतरीन विकल्प है
अगर सचिन पायलट को अब भी भरोसा है कि वो अपनी राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस के भीतर रह कर लड़ते हुए अशोक गहलोत को शिकस्त देकर अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा हासिल कर सकते हैं - फिर तो वो मुख्यमंत्री भी बन सकतें हैं.
अपनी पार्टी बनाने का मौका तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास भी था, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई. हो सकता है अपने पिता माधवराव सिंधिया के अनुभव देखते हुए वो कोई जोखिम न लेना चाहते हों. माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस से अलग होकर 'मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस' के नाम से अपनी अलग पार्टी भी बना ली थी, लेकिन बाद में वो कांग्रेस में लौट गये.
हो सकता है, सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के मन में एक जैसे ख्याल आये हों या फिर दोस्त होने के नाते दोनों ने अपने विचार एक दूसरे से शेयर भी किया हो. भारतीय राजनीति में ये धारणा तो बनती ही जा रही है कि चुनाव कोई भी कैसे भी जीते सरकार बनाने के बाद भी तख्ता पलट तय है. बाद में या तो बीजेपी खुद सरकार बनाएगी या नयी सरकार में हिस्सेदार. ताजा मिसाल मध्य प्रदेश है और पुराना बिहार.
अब नये स्टार्ट अप में जोखिम तो रहता ही है. देखा तो यही गया है कि जिसने भी हिम्मत दिखायी या मजबूरी में आगे बढ़े नया मुकाम बनाया ही है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ताजातरीन मिसाल हैं. जगनमोहन के पिता वाईएसआर रेड्डी जमीन से जुड़े नेता थे और चंद्र बाबू नायडू की हाई टेक सरकार को चुनाव में शिकस्त देकर कांग्रेस की सरकार बनवाये थे, लेकिन हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका. जगनमोहन के जेल जाने के बाद उनकी मां और बहन ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिल कर अपना पक्ष रखना चाहा, लेकिन हर बार ठोकर खाकर ही लौटना पड़ा. फिलहाल जगनमोहन रेड्डी न सिर्फ मुख्यमंत्री हैं, बल्कि लोक सभा में भी खासा दबदबा कायम कर रखा है.
सचिन पायलट के पास भी जमनमोहन जैसा ही मौका है. अगर सचिन पायलट भी जगनमोहन रेड्डी वाला रास्ता अख्तियार करते हैं तो संघर्ष तो करना ही पड़ेगा, लेकिन मंजिल तो किसी न किसी दिन मिलेगी ही, तय मान कर चलना होगा.
आखिर जगनमोहन रेड्डी ने भी तो वही राह चुनी जो कभी ममता बनर्जी, शरद पवार और मुलायम सिंह यादव ने चुनी थी - सबके सब अपने इलाके के क्षत्रप बने और अगर सत्ता में न भी रहे तो अप्रासंगिक तो कभी नहीं हुए. लालू प्रसाद तो बिहार से बाहर रांची के जेल में हैं, लेकिन शायद ही कोई दिन बीतता हो जब उनकी पार्टी आरजेडी को छोड़ भी दें तो बीजेपी और जेडीयू तो नाम लेना भूलते ही नहीं. बीजेपी नेता तो लालूवाद के जरिये लोगों को लालू यादव को भूलने नहीं देते.
मुश्किल में बड़ा मौका भी है
सचिन पायलट वैसे तो साफ तौर पर कह चुके हैं कि वो बीजेपी नहीं ज्वाइन करने जा रहे हैं. जब भी मौका मिल रहा है ये भी कह रहे हैं कि वो अब भी कांग्रेस में ही हैं. वो अपने ऊपर लग रहे आरोपों का बड़ी ही संजीदगी के साथ जवाब देते हुए अपना पूरा बचाव कर रहे हैं. अशोक गहलोत के खिलाफ भी बस इतना ही कहा है कि उनकी सरकार के पास बहुमत नहीं है - और दावा ये भी है कि वो कोई निजी फायदे की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि राजस्थान की जनता के साथ किये गये वादों की खातिर आवाज उठा रहे हैं.
बीजेपी में जाने पर भी सचिन पायलट के जिगरा की तारीफ तभी होगी जब वो सिंधिया जैसी सियासी ताकत दिखा पायें. अगर बीजेपी में जाते हैं तो डिप्टी सीएम से ज्यादा तो उम्मीद करनी भी नहीं चाहिये. वहां बहुत सारे रिजर्वेशन होते हैं.
डिप्टी सीएम बनना तो सचिन पायलट के लिए करीब करीब हर जगह संभव है. कांग्रेस में तो रहे ही, बीजेपी भी सरकार बनने पर भी सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है - और अपनी पार्टी बनाकर किसी और के साथ गठबंधन करें तो भी ये पद तो मिल ही जाएगा - लेकिन मुख्यमंत्री तो सचिन पायलट अपने ही दम पर अलग राह पर चल कर ही बन सकते हैं. सचिन के पास मौका भी बेहतरीन है. अगर सचिन पायलट बीजेपी न भी ज्वाइन करें तो राजस्थान को कांग्रेस मुक्त बनाने की लड़ाई में पार्टी साथ देने को तैयार तो हो ही सकती है. वैसे भी बीजेपी नेतृत्व को एक ट्रांजिशन फेज की सख्त जरूरत महसूस हो रही होगी, ताकि वो पार्टी में नयी लीडरशिप तैयार कर सके. वसुंधरा राजे भले ही गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद मैदान में उतर आयी हों, लेकिन मोदी-शाह के साथ मतभेद भी जगजाहिर ही हैं. सचिन पायलट बीजेपी को समझा सकते हैं कि अगर उनको सपोर्ट मिले तो वो वसुंधरा से पार्टी के छुटकारा पाने में मददगार भी बन सकते हैं. ये भी तो सचिन पायलट का ही आरोप है कि अशोक गहलोत कभी वसुंधरा राजे के खिलाफ नहीं जाते.
सचिन पायलट कैंप से जो बातें छन छन कर मीडिया रिपोर्ट के जरिये सामने आ रही हैं, उनसे तो यही मालूम होता है कि 18 के अलावा कांग्रेस में ऐसे कई विधायक और भी हैं जो सचिन पायलट के साथ हैं, लेकिन वो किसी भी सूरत में बीजेपी में नहीं जाना चाहते. ये वे विधायक हैं जिनकी पूरी जिंदगी कांग्रेस में बीत चुकी है और अब उनको अपनी विरासत की भी फिक्र है. आखिर सचिन पायलट भी तो पिता की विरासत की बदौलत ही तो राजनीति आये और यहां तक पहुंचे हैं.
ये बुजुर्ग विधायक सचिन पायलट के साथ नयी पार्टी बनने पर कांग्रेस छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन सचिन पायलट के साथ बीजेपी में जाने से बेहतर कांग्रेस को ही मानते हैं. इस हिसाब से अगर सचिन पायलट अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा करते हैं तो बहुत हद तक संभव है अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में होने का दावा भी सच साबित हो जाये.
सचिन पायलट के अलग पार्टी बनाने की सूरत में अगर समर्थक विधायकों की संख्या ज्यादा हो जाती है तो उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ेगी और अशोक गहलोत सरकार को वो आसानी से गिरा सकते हैं. बाद में सचिन पायलट के पास कम से कम दो विकल्प तो होंगे ही - या तो बीजेपी के सपोर्ट से खुद सरकार बना लें या फिर बीजेपी की सरकार को सपोर्ट कर दें. बीजेपी का मिशन भी पूरा हो जाएगा और सचिन पायलट भी अपने सम्मान को पहुंची चोट की भरपायी कर सकते हैं.
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