New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 03 जनवरी, 2020 10:22 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (CAA NRC Protest) पर जारी विवाद अपने पूरे शबाब पर है. प्रदर्शन की आग में सारा देश जल रहा है. प्रदर्शनकारियों की सरकार से मांग है कि वो कानून वापस ले. प्रदर्शनकारियों तक दे रहे हैं कि इस कानून के माध्यम से, सरकार देश बांटने का काम कर रही है. विरोध की आग से मुंबई (CAA protest in Mumbai) भी सुलग रहा है. मुंबई में भी कानून के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं और आए रोज ही कोई न कोई प्रोगाम आयोजित हो रहा है. विपक्ष के नेताओं से लेकर आम आदमी तक सभी मंच पर आ रहे हैं और अपने मन की बात कर सरकार की आलोचना कर रहे हैं. आने वाले दिनों में ऐसा ही एक कार्यक्रम मुंबई में जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) दोबारा आयोजित कराने वाली है. प्रोग्राम का निमंत्रण तमाम बड़े लोगों की तरह शिवसेना नेता संजय राउत (Shiv Sena leader Sanjay Raut to join Anti CAA prrotest) को भी भेजा गया है. दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने नियंत्रण स्वीकार कर लिया है. ध्यान रहे कि किसी ज़माने में महाराष्ट्र की राजनीति में फायर ब्रांड नेता के रूप में मशहूर संजय राउत, महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के बाद से काफी 'लिबरल' हो गए हैं. इस नए राजनीतिक समीकरण के बाद राउत ऐसा बहुत कुछ कर चुके हैं जो उनकी विचारधारा से मेल नहीं खाता है.

बाल ठाकरे के 'मुस्लिम तुष्टिकरण' को उद्धव से ज्यादा सीरियसली ले रहे हैं संजय राउत! सरकार बनते ही पहले से कहीं ज्यादा लिबरल हो गए हैं फायर ब्रांड संजय राउत

बता दें कि जमात-ए-इस्लामी हिंद मुंबई, मराठी पत्रकार संघ और एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) जैसी संस्थाएं अपने साझा प्रयासों से इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि कार्यक्रम में शामिल होने के लिए संजय राउत को भी निमंत्रण भेजा गया था जिसे उन्होंने कंफर्म कर लिया है. कार्यक्रम में राउत के अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई और वरिष्ठ वकील यूसुफ मुछाला भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ होने वाली चर्चा में  अपने मन की बात रखेंगे.

मुंबई के पत्रकार भवन में आयोजित होने वाले इस प्रोग्राम पर सबकी निगाहें हैं. तमाम लोग ऐसे हैं जो जानना चाहते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून और NRC पर संजय राउत क्या तर्क पेश करते हैं.

संजय राउत की इस कार्यक्रम में उपस्थिति इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि शिवसेना ने नागरिकता संशोधन बिल पर लोकसभा में तो समर्थन किया था, लेकिन जब बात राज्यसभा में मतदान की आई तो पार्टी ने वाकआउट कर दिया था. राज्यसभा से वाकआउट के बाद पार्टी की तीखी आलोचना हुई थी और पार्टी के बचाव में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आए थे. उद्धव ने कहा था कि महाराष्ट्र में एनआरसी को लागू नहीं करेंगे. साथ ही ऊन्होने ये भी कहा था कि वो सीएए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही किसी तरह का कोई निर्णय लेंगे. बात अगर संजय राउत की हो तो जैसे ही नागरिकता संशोधन बिल कानून बना वो सीएए और एनआरसी के खिलाफ मोदी सरकार पर हमलावर हो गए और से जमकर खरी खोटी सुनाई.

बाल ठाकरे के सच्चे वारिस निकले संजय राउत

जमात-ए-इस्लामी हिंद के प्रोग्राम में जाने की बात कहकर संजय राउत ने विपक्ष को आलोचना का मौका दे दिया है. लेकिन जब हम इस बात का गहनता से अध्ययन करें तो मिलता है कि अपने को सच्चा वारिस साबित करते हुए संजय  राउत ने कुछ वैसा ही किया है जिसे आज से31 साल पहले 1989 में करके बाल ठाकरे ने देश को अपनी राजनीतिक समझ से रू-ब-रू कराया था.

क्या किया था बाल ठाकरे हैं

बात 80 के दशक की है. शिवसेना के गठन को तीन दशक हो चुके थे. तब तक शिवसेना की पहचान एक ऐसे दल के रूप में हो चुकी थी जिसकी विचारधारा कट्टर और जो मुसलमानों के खिलाफ ज्वलनशील बयान देता था. तब शिवसेना ने अपने दुशमन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के साथ गठनबंधन किया था.

दिलचस्प बात ये है कि तब हिंदू हृदय सम्राट बाल ठाकरे ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के कट्टरपंथी मुस्लिम नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला के साथ स्टेज भी साझा किया था. ध्यान रहे कि IUML नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला को शिवसेना विशेषकर बाल ठाकरे का प्रबल आलोचक माना जाता था. तब ऐसे तमाम मौके आए थे जब बनातवाला ने बल ठाकरे के लिए तीखी टिप्पणियां की थीं. सेना ने 1970 में अपना मेयर बनाए जाने के लिए मुस्लिम लीग से गठबंधन कर मदद ली थी.

तब क्या तर्क थे लोगों के

तब इस बात ने महाराष्ट्र की सियासत को कितना प्रभावित किया था? इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि उस समय शिवसेना और मुसलमानों के साथ आने को एक बड़े मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा गया था. ऐसा इसलिए भी था क्योंकि तब शिवसेना और मुस्लिम लीग दोनों ही एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. 1978 में बाल ठाकरे ने मुंबई स्थित नागपाड़ा के मस्तान तलाव मैदान में रैली की और इलाके के मुसलमानों के सामने अपना पक्ष रखा.

बात अगर उस रैली की हो तो रैली के दौरान भी कई ऐसे मौके आए थे जब शिवसेना और मुस्लिम लीग के बीच का मतभेद साफ़ दिखाई पड़ रहा है. माना जाता है कि तब शिवसेना और मुस्लिम लीग दोनों ही दलों का राजनीतिक भविष्य अधर में लटका था और दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत थी इसलिए दोनों ने साथ आना जरूरी समझा और राजनीतिक लाभ लिया.

बहरहाल अब जबकि संजय राउत जमात-ए-इस्लामी हिंद के प्रोग्राम में जा रहे हैं तो हमें इसलिए भी हैरत में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ये परंपरा शिवसेना में दशकों से चली आ रही है. संजय की राजनीति का गोल्डन फेज है. संजय जानते हैं कि बिना सबको साथ लिए वो या फिर उनका दल ज्यादा समय तक महाराष्ट्र और मुंबई में अपनी बादशाहत कायम नहीं कर सकता. यानी कहा ये भी जा सकता है कि जो आज संजय को करना पड़ रहा है वो कहीं न कहीं उनकी राजनीतिक मज़बूरी है. 

ये भी पढ़ें -

शिवसेना ने सामना में BJP को समझा दिया है गठबंधन का प्लान B

शिवसेना ने किया बुलेट ट्रेन का विरोध, लेकिन निशाना हैं गुजरात यानी मोदी

नागरिकता बिल पर JDU-शिवसेना जो भी स्टैंड लें - फायदा BJP को ही होगा

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय